प्लास्टिक प्रदूषण और इसका पर्यावरण पर प्रभाव
विज्ञान और प्रौद्योगिकी की तरक्की ने मनुष्य को असीमित सुविधाएँ दी हैं। इन्हीं में से एक है प्लास्टिक, जो आज हमारी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। चाहे वह बोतल हो, बैग हो, पैकेजिंग हो या खिलौने- हर जगह प्लास्टिक की मौजूदगी स्पष्ट दिखाई देती है। लेकिन यह सुविधा अब हमारे पर्यावरण के लिए अभिशाप बनती जा रही है। प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक संकट का रूप ले चुका है, जिससे पृथ्वी का हर जीव, हर पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हो रहा है। प्लास्टिक की विशेषताएँ और उपयोगिता:- प्लास्टिक हल्का, मजबूत, लचीला, सस्ता और टिकाऊ होता है। यह पानी, रसायनों और बैक्टीरिया से आसानी से खराब नहीं होता, इसलिए इसका उपयोग व्यापक स्तर पर होता है। चिकित्सा, निर्माण, खाद्य पैकेजिंग, वाहन निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र उद्योग आदि में प्लास्टिक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन यही विशेषताएँ इसे विनाशकारी भी बनाती हैं क्योंकि यह प्राकृतिक रूप से नष्ट नहीं होता।
प्लास्टिक प्रदूषण का अर्थ:- प्लास्टिक प्रदूषण का अर्थ है वातावरण में प्लास्टिक कचरे का अनियंत्रित और असंगठित रूप से जमा होना। यह कचरा न केवल भूमि पर बिखरा होता है, बल्कि नदियों, झीलों और महासागरों तक में पहुंचकर वहां के जीवन को भी प्रभावित करता है। जब प्लास्टिक को जलाया जाता है, तो यह विषैली गैसें उत्सर्जित करता है, और जब इसे फेंका जाता है, तो यह सैकड़ों वर्षों तक मिट्टी या जल में बना रहता है।
प्लास्टिक प्रदूषण के प्रमुख स्रोत:- सिंगल यूज प्लास्टिक (Single-use Plastic) जैसे पानी की बोतलें, थैलियाँ, स्ट्रॉ, कप आदि जिन्हें एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है। उद्योगों से निकलने वाला कचरा:- फैक्ट्रियों में उपयोग की गई प्लास्टिक सामग्री, पैकेजिंग वेस्ट आदि।
-घरेलू अपशिष्ट:- प्लास्टिक रैपर, कंटेनर, खिलौने, टूटी हुई वस्तुएँ।
-समुद्री गतिविधियाँ:- मछली पकड़ने के जाल, नावों से गिरा प्लास्टिक कचरा।
-कृषि क्षेत्र:- प्लास्टिक मल्चिंग, पाइपलाइन, कीटनाशक बोतलें।
प्लास्टिक प्रदूषण के पर्यावरणीय प्रभाव
1. भूमि प्रदूषण:- प्लास्टिक कचरा मिट्टी में वर्षों तक पड़ा रहता है। यह मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित करता है, जल संचयन को रोकता है और भूमि की प्राकृतिक संरचना को बदल देता है। जब यह माइक्रोप्लास्टिक में बदलता है, तो यह मिट्टी में घुलकर पौधों और जीवाणुओं को नुकसान पहुंचाता है।
2. जल प्रदूषण:- नदियों, झीलों और समुद्रों में प्लास्टिक पहुँचकर जलचर जीवों के लिए घातक जाल बन जाता है। कछुए, मछलियाँ, पक्षी आदि प्लास्टिक को भोजन समझकर निगल लेते हैं जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है। महासागरों में फैला प्लास्टिक ‘प्लास्टिक द्वीप’ का रूप ले चुका है।
3. वायु प्रदूषण:- जब प्लास्टिक को जलाया जाता है, तो इससे डाइऑक्सिन, फ्यूरन जैसी विषैली गैसें निकलती हैं जो वायु प्रदूषित करती हैं और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालती हैं, जैसे अस्थमा, कैंसर, हार्माेनल असंतुलन आदि।
4. वन्य जीवों पर प्रभाव:- जंगलों में फैला प्लास्टिक कचरा जंगली जानवरों द्वारा खा लिया जाता है, जिससे उनकी पाचन क्रिया बाधित होती है और मृत्यु तक हो जाती है। पक्षी प्लास्टिक के टुकड़ों से अपने घोंसले बनाते हैं जो उनके लिए खतरनाक होते हैं।
5. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:- माइक्रोप्लास्टिक हमारे जल और भोजन के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर रहा है। अनुसंधान बताते हैं कि यह हमारे शरीर में अंतःस्रावी तंत्र को प्रभावित कर सकता है, जिससे गंभीर बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।
प्लास्टिक प्रदूषण के सामाजिक- आर्थिक प्रभाव
-कृषि पर असर:- मिट्टी की गुणवत्ता में कमी आने से फसल उत्पादन घटता है।
- मत्स्य उद्योग को हानि:- समुद्री जीवों की मृत्यु और जहाजों को प्लास्टिक से क्षति होने पर मछली पालन उद्योग को नुकसान होता है।
- पर्यटन प्रभावित:- गंदे समुद्रतट और सार्वजनिक स्थलों पर फैला प्लास्टिक कचरा पर्यटकों को हतोत्साहित करता है।
- स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ:- प्लास्टिक जनित बीमारियों से स्वास्थ्य पर आर्थिक दबाव बढ़ता है।
प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के उपाय
1. सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध:- सरकारों को सख्त कानून बनाकर सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिए और इसके विकल्पों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
2. वैकल्पिक सामग्री का उपयोग:- कागज, जूट, कपड़े, बांस और बायोडिग्रेडेबल पदार्थों से बने उत्पादों को बढ़ावा देना चाहिए।
3. जन जागरूकता अभियान:- स्कूलों, कॉलेजों और मीडिया के माध्यम से जनता को शिक्षित करना आवश्यक है कि प्लास्टिक का सीमित उपयोग करें।
4. रिसाइक्लिंग और पुनः उपयोग:- उपयोग की गई प्लास्टिक वस्तुओं को पुनः उपयोग में लाना और पुनर्चक्रण की प्रक्रिया को सरल व सुलभ बनाना।
5. साफ-सफाई और कचरा प्रबंधन:- नगर निगमों और पंचायतों को मिलकर ठोस कचरा प्रबंधन प्रणाली को मजबूत करना चाहिए जिससे प्लास्टिक पृथक कर नष्ट किया जा सके।
6. "3R" सिद्धांत को अपनाना:- Reduce (कम करना), Reuse (पुनः प्रयोग), Recycle (पुनर्चक्रण) को दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना।
सरकारी प्रयास और वैश्विक पहल: भारत सरकार ने 2 अक्टूबर 2019 से सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का संकल्प लिया।
-स्वच्छ भारत अभियानष् के तहत प्लास्टिक कचरा प्रबंधन को प्राथमिकता दी गई।
-संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा "Beat Plastic Pollution" नामक अभियान चलाया जा रहा है।
-कई देशों ने प्लास्टिक बैग टैक्स, प्रतिबंध और रिसाइक्लिंग नियम लागू किए हैं।
प्लास्टिक एक ऐसा संकट बन चुका है जिससे निपटने के लिए व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी स्तर पर मिलकर प्रयास करने होंगे। आज आवश्यकता है कि हम अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएँ, और प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रखते हुए प्लास्टिक के वैकल्पिक विकल्पों को अपनाएँ। यदि समय रहते हमने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया, तो आने वाली पीढ़ियाँ एक प्रदूषित और विषैली पृथ्वी पर जीने को मजबूर होंगी।