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पर्यावरण से जुड़ी है सनातन संस्कृति

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पर्यावरण से जुड़ी है सनातन संस्कृति 

सनातन धर्म प्रकृति से अनन्य रूप से जुड़ा हुआ है। प्रकृति को देवी-देवताओं के विभिन्न रूपों में पूजा जाता है। सनातन संस्कृति के सभी तीज, त्यौहार और पर्व एवं परंपराएं प्रकृति और पर्यावरण से जुड़े हुए हैं। हिन्दुओं के पर्व मौसम परिवर्तन की सूचना देते हैं। भारत के मौसम और ऋतु परिर्वतन के साथ परंपराओं को जोड़ा गया है। भारत भूमि में छह ऋतुएं होती हैं, शरद, बसंत, हेमंत, ग्रीष्म, वर्षा और शिशिर। बसंत, ग्रीष्म और वर्षा ऋतुओं को देवी ऋतुएं माना जाता है और शरद, हेमंत और शिशिर ऋतुओं को पितर ऋतुएं कहा जाता है। भारत के ऋषियों ने मानव के स्वास्थ्य, मनोविज्ञान, अध्यात्म क्षेत्र आदि का ध्यान रखते हुए, वैज्ञानिक ढंग से, ऋतुओं के आधार पर पर्व-त्यौहारों का निर्धारण किया है। 

बसंत में जब प्रकृति अपने यौवन को प्रदर्शित कर रही होती है, चारों ओर हरियाली छायी रहती है, पुष्प खिल रहे होते हैं, मौसम एक नए उल्लास से भरा हुआ रहता है, ऐसे में भारतीय नववर्ष, धुलेंडी और नवरात्र मनाये जाते हैं। ग्रीष्म (अषाढ़) में देवशयनी एकादशी, और गुरु पूर्णिमा के त्यौहार पड़ते हैं। वर्षा ऋतु में भगवान भोलेनाथ के महापर्व श्रावण सोमवार का महीने भर उत्साह पर्व रहता है। शरद ऋतु में शारदीय नवरात्र और देवोत्थान एकादशी का पर्व मनाया जाता है। हेमंत ऋतु में दीपावली और गोवर्धन पूजा के त्यौहार मनाए जाते हैं। शिशिर ऋतु में मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि के पर्व धूमधाम की धूम रहती है। सनातन संस्कृति के त्यौहारों में प्रकृति संबंध के गहरे वैज्ञानिक सूत्र छिपे हुए हैं, जो मानवीय स्वास्थ्य और विकास के साथ जुड़े हुए हैं। 

नवसंवत्सर- इसे सनातन नववर्ष या भारतीय नववर्ष भी कहा जाता है। नवसंवत्सर प्रकृति में नवजीवन का पर्व है। इसकी शुरुआत चैत्र प्रतिपदा को होती है। चैत्र हिन्दू कैलेंडर का पहला महीना होता है। चैत्र प्रतिपदा से सूर्य की गति उत्तर की ओर होने लगती है। नवसंवत्सर पर्व को देश में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे युगदि या उगादि, सिंधु क्षेत्र में चेटी चेडो के नाम से और कश्मीर में इसे नौरोज के नाम से मानाया जाता है। 

संक्रांति- सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है। सूर्य का एक महीना जिसे सौर मास कहा जाता है वह राशि परिवर्तन ही है, जिसे सौर संक्रांति कहा जाता है। सूर्य संक्रांति 12 हैं। चार संक्रांतियां विशेष महत्वपूर्ण हैं, जिसमें कर्क, मकर, मेष, तुला शामिल हैं। कर्क संक्रांति से सूर्य दक्षिणायन होता है और मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण होता है। 

बसंत पंचमी- हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। बसंत में पशु-पक्षी, मानव, प्रकृति सभी उल्लास से भर जाते हैं। खेतों में पीले पुष्पों से लदी सरसों लहलहाने लगती है। जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगती हैं। आम के पेड़ बौराने लगते हैं। प्रसन्नता और प्रकृति के नव यौवन के साथ बसंत का पर्व मनाया जाता है। 

गंगा दशहरा- सनातन संस्कृति में गंगा दशहरा का विशेष महत्व है। इस दिन श्रद्धालु जीवनदायिनी गंगा नदी की पूजा अर्चना और स्नान करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुईं थीं। भगवान शिव ने अपनी जटाओं से गंगा के वेग को थामा था। गंगा दशहरा सनातन धर्म की नदियों के प्रति सम्मान प्रकट करने का त्यौहार है। हिंदू संस्कृति ने प्राचीन काल से ही नदियों के महत्व को समझा है। सनातन ग्रंथों में नदियों को जीवन देने वाली धारा कहा है। अनेकों ऋषियों ने नदियों के अस्तित्व बचाए रखने के लिए सूत्र गढ़े हैं। 

होली- होली का त्यौहार मौसम परिर्वतन की सूचना देता है। शिशिर ऋतु की समाप्ति के साथ मौसम में गर्मी बढ़ने लगती है, जिसके कारण पर्यावरण में बैक्टीरिया की वृद्धि हो जाती है। लोगों का स्वास्थ्य भी खराब होना इस मौसम परिर्वतन में आम है। इसलिए होली पर्व के पास साफ सफाई और अग्नि का महत्व बढ़ जाता है। खानपान में भी उसी प्रकार के व्यंजनों का सेवन इस त्यौहार पर किया जाता है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़कर रोगों से लड़ने में सक्षम बना दो। 

शीतला अष्टमी - इस त्यौहार पर वट वृक्ष की पूजा की जाती है। इस त्यौहार पर वट वृक्ष की पूजा करने का उद्देश्य प्रकृति से एकाकार होकर पर्वों को मनाने से है। 

आंवला पूजा- यह त्यौहार दीपावली के बाद कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को मनाया जाता है। इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है। यह त्यौहार संदेश देता है कि प्रकृति की पूजा और संरक्षण करने से आध्यात्मिक लाभ और पुण्य प्राप्त होता है। इस त्यौहार पर संदेश जाता है कि वृक्षों में देवताओं का निवास होता है, उनका संरक्षण किया जाना चाहिए। यदि यह कहा जाए की वृक्ष साक्षात देव होते हैं तो यह भी गलत नहीं होगा। ज्योतिष के अनुसार भी जिन व्यक्तियों का बुध अनुकूल न हो उन्हें वृक्षारोपण करना चाहिए और उनकी देखभाल करनी चाहिए, इससे मन को प्रसन्नता मिलने के साथ ग्रह नक्षत्र भी अनुकूल हो जाते हैं। 

वट सावित्री- वट को बरगद भी कहा जाता है, मान्यता है कि वृक्ष के नीचे पूजा कर जो कामना की जाती है वह पूर्ण होती है। प्रकृति के प्रति श्रद्धा का इससे अच्छा उदाहरण कहां हो सकता है, जिसमें वृक्ष में ईश्वर का निवास मानकर उसकी आरधना की जाए, उससे अपनी कामना की जाए। हिंदू संस्कृति में वट सावित्री का त्यौहार ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। महिलाएं वट सावित्री त्यौहार पति की लंबी आयु और उन्नति के लिए करती हैं। इसके लिए वे वट वृक्ष की पूजा करती हैं।  

तुलसी विवाह -  भारत में तुलसी पौधे का विशेष धार्मिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़ा महत्व है। तुलसी में सभी देवताओं का निवास माना जाता है। मान्यता के अनुसार जिन घरों में तुलसी लगी होती है, वहां सौभाग्य सदैव निवास करता है। तुलसी के प्रति अपनी अगाध भक्ति को प्रदर्शित करने के लिए कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु और तुलसी की आराधना की जाती है। 

गोवर्धन पूजा-  दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का त्यौहार मनाया जाता है। इसे अन्नकूट पर्व के रूप में भी जाना जाता है। प्रकृति पूजा की दृष्टि से इस पर्व का विशेष महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज भूमि को अतिवृष्टि से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाया था। इसका यह संदेश भी है कि प्रकृति के संरक्षण द्वारा सूखा और अतिवृष्टि जैसी आपदाओं से बचा जा सकता है। इस त्यौहार पर गाय आदि के गोमय गोवर्धन को पूजा जाता है। यानि गोवर्धन भगवान के विग्रह का निर्माण गोबर से बनाकर प्रकृति में महत्व को इंगित किया जाता है। कार्तिक प्रतिपदा को मनाए जाने वाला यह त्यौहार प्रकृति सहचर के महत्व को बताता है। 

अश्वत्थोपनयन पूजा - अश्वत्थ का अर्थ होता है ‘पीपल’। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो यह वृक्ष सर्वाधिक ऑक्सीजन छोड़ने के लिए जाना जाता है। यह वृक्ष रात्रि में भी ऑक्सीजन देता है, जबकि अन्य वृक्ष रात्रि में कार्बनडाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। वैदिक ऋषियों ने इसकी विशेषताओं को देखते हुए इसे पूजन परंपराओं में विशेष महत्व दिया है। इसके लिए अश्वत्थ उपनयन भी कराया जाता है। अश्वत्थ वृक्ष की पूजा वैशाख माह में की जाती है। 

हिन्दू संस्कृति के अनुसार जीवन की उत्पत्ति पांच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु से मिलकर हुई है। प्रकृति के साथ सहचर ही हिंदू संस्कृति की विशेषता है। जहां पूरी दुनिया पृथ्वी को आपदाओं से बचाने के लिए अनेक प्रयास कर रही है, ऐसे में सनातन संस्कृति के प्रकृति सूत्र विशेष सहायक हो सकते हैं। इन सूत्रों में विज्ञान भी है और परंपरा भी जो पृथ्वी को प्राकृतिक संकटों से बचा सकते हैं।