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संघ दर्शन

जब गणतंत्र दिवस की परेड में स्वयंसेवकों ने प्रतिभाग किया

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जब गणतंत्र दिवस की परेड में स्वयंसेवकों ने प्रतिभाग किया

संघ यात्रा - 4  (1955 से 1965 )

तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी के कुशल मार्गदर्शन में संघ आगे बढ़ रहा था। 1953 में पहले राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन हुआ। आयोग ने 30 सितंबर 1955 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की उसके आधार पर 1956 में नए राज्यों का निर्माण हुआ जिसमें आंध्र प्रदेश के निर्माण के बाद महाराष्ट्र और गुजरात भी भाषा के आधार पर अलग राज्य बनाए गए। भाषाई आधार पर राज्य निर्माण होने के विरोध में महाराष्ट्र में बड़ा आंदोलन हुआ। श्री गुरुजी भी भाषा के आधार पर राज्यों के गठन को अनुचित मानते थे। संघ प्रारंभ से एक देश, एक राज्य का समर्थक रहा है, भारतीय परम्परा के अनुरूप सारा विश्व एक राज्य बने संघ के स्वयंसेवक ऐसी कल्पना के पक्षधर थे। विभिन्न भाषा-क्षेत्र वाली संस्कृतियों की बात करने वाले राजनेताओं को उन्होंने कहा कि ‘आसेतु हिमाचल’ हमारी एक ही संस्कृति है और वही संस्कृति हमारे राष्ट्र की आत्मा भी है। हमें देश की संस्कृति, परंपरा, राष्ट्र धर्म की रक्षा करनी चाहिए।  देश को धर्मशाला बनाकर काम नहीं चलेगा। राजनीतिक सौदेबाजी की भाषा छोड़कर हमें राष्ट्र का विचार करना चाहिए। इसके बाद पंजाब में भी विवाद शुरू हुआ और पंजाब तथा हरियाणा भी दो अलग-अलग राज्य बने। तब श्री गुरुजी ने दुखी मन से कहा था कि भाषा का प्रेम यदि विच्छेद के लिए प्रयुक्त हो तो त्याज्य ही मानना चाहिए। 

1956 में वरिष्ठ कार्यकर्ता एकनाथ जी रानाडे सरकार्यवाह चयनित किए गए। 1956 में ही वरिष्ठ स्वयंसेवक बाला साहब देशपांडे जी के प्रयासों से ‘कल्याण आश्रम’ की स्थापना हुई जिसके माध्यम से वनवासी क्षेत्रों में संघ के स्वयंसेवक सेवा कार्यों में जुटे।

1959 में जातिवादी एवं सांप्रदायिक निष्ठाओं के इर्द-गिर्द घूमने वाली केरल की वोट की राजनीति का लाभ उठाकर संसदीय लोकतांत्रिक पद्धति को पूर्णतया अस्वीकार कर देने वाली कम्युनिस्ट पार्टी केरल में सत्तारूढ़ हो गयी जबकि उसे आम चुनाव में केवल 35 प्रतिशत मत मिले थे और आधी से कम सीटें प्राप्त हुई थी। कम्युनिस्ट पार्टी ने पांच स्वतंत्र विधायकों का समर्थन प्राप्त कर 5 अप्रैल 1957 को अपना मंत्रिमंडल बनाने में सफलता प्राप्त कर ली थी। कम्युनिस्ट दल की भौतिकवादी विचारधारा, अधिनायकवादी प्रवृत्तियां एवं देशबाह्य निष्ठाओं के कारण संघ का इससे मौलिक मतभेद रहा है। तब स्वाभाविक रूप से संघ के स्वयंसेवकों का झुकाव केरल के कम्युनिस्ट विरोधी आंदोलन की तरफ हुआ। केरल में कम्युनिस्ट विरोधी आंदोलन को देखते हुए पाञ्चजन्य ने केरल विशेषांक निकालने की योजना बनाई और उस विशेषांक के लिए श्री गुरुजी से आशीर्वाद मांगा गया। जिसका प्रतिउत्तर उन्होंने एक व्यक्तिगत पत्र द्ववारा पाञ्चजन्य संपादकीय टोली के सदस्य देवेंद्र स्वरूप जी को दिया। पत्र में श्री गुरु जी का स्पष्ट मंतव्य था कि केरल के विषय में योग्य वृत्त (सटीक जानकारी) आने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी चेताया कि सत्ताधिष्ठित दल को अपदस्त करना एवं स्वयं सत्ता प्राप्त करना ही उचित दिखता हो ऐसा संविधान के प्रति सर्वथा अनादर है। उन्होंने देश के संविधान में श्रद्धा रखते हुए संवैधानिक मर्यादानुकुल आचरण का महत्व सामने रखा था। यदि किसी दल विशेष से वैचारिक मतभेद हैं तो भी संवैधानिक विधि से ही उसे सत्ता से बाहर करने के उचित अवसर की प्रतीक्षा पर बल दिया था। श्री गुरु जी ने स्पष्ट किया था कि देश एक विशिष्ट संवैधानिक ढांचे के भीतर कार्य करता है उस ढांचे पर किसी प्रकार का प्रहार कदापि उचित नहीं ठहराया जा सकता है। 

भारत चीन युद्ध और संघ: तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन की साम्यवादी नीतियों से प्रभावित होकर तिब्बत को भी चीन का हिस्सा स्वीकार कर लिया था, तिब्बत के धार्मिक गुरु दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी थी उसके बाद भी नेहरू जी चीन को लेकर नहीं चेते। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को चीन से कदापि यह अपेक्षा नहीं थी। जबकि श्री गुरुजी चीन की नीतियों को लेकर पहले से ही आशंकित थे। 1962 में अपने राजस्थान प्रवास पर चित्तौड़ की एक सभा में उन्होंने स्पष्ट कहा था कि मेरे पास पक्की जानकारी है कि चीन भारत पर आक्रमण करने वाला है, दो दिन बाद उन्होंने अलवर में भी इसी बात को दोहराया था। श्री गुरुजी की दूरदृष्टि इस बात से ही आंकी जा सकती है कि वर्ष 1960 में उन्होंने बम्बई में पत्रकारों के साथ वार्ता में चीनी आक्रमण की बात की थी, जिसे एक दैनिक पत्र के संपादक ने तब गैर जिम्मेदाराना बताया था। चीनी आक्रमण के समय असम की स्थिति भी गंभीर थी। वहां कानू डेका, पदम प्रसाद तथा पदमजाकांत सेनापति  नाम के स्वयंसेवकों  ने अपने स्थानीय साथियों के साथ मिलकर सेना के अधिकारियों से संपर्क किया और उनकी सहायता से रात-दिन पहरेदारी कर खाली हुए घरों को पूर्वी पाकिस्तानी घुसपैठियों के हाथों लुटने से बचाया। श्री गुरु जी के निर्देशन में स्वयंसेवक असम के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी सेना के जवानों की सहायता के लिए जी जान से समर्थन के लिए जुट गये।  इसके साथ ही चीनी आक्रमण के समय संघ के स्वयंसेवकों ने अपने नागरिक कर्तव्यों का पालन करते हुए विशेष दायित्व का निर्वहन किया। इस योगदान को देखते हुए संघ को कुचल देने का स्वप्न देखने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की सरकार ने पहली बार 26 जनवरी 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में संघ की एक टुकड़ी को राजपथ पर परेड के लिए आमंत्रित किया। आमंत्रण केवल 2 दिन पहले मिला था इसके बावजूद ढाई हजार स्वयंसेवकों ने अपने पूर्ण गणवेश के साथ गर्व से राजपथ पर परेड में भाग लिया।  

वर्ष 1963 में स्वामी विवेकानंद का जन्म शताब्दी वर्ष मनाया गया और इस अवसर पर संघ ने कन्याकुमारी में स्वामी विवेकानंद की स्मृति में एक भव्य स्मारक बनाने का प्रस्ताव पारित किया। वर्ष 1963 में ही 12 जनवरी 1963 को भारत विकास परिषद् की संकल्पना की गयी, इसे  साकार रूप 10 जुलाई 1963 को (पंजीकरण हो जाने पर) मिला। इसके प्रथम अध्यक्ष महान राष्ट्रवादी एवं दिल्ली के भूतपूर्व महापौर लाला हंसराज गुप्ता एवं प्रथम महामंत्री सेवाभावी सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. सूरज प्रकाश बने। परिषद् में भारत माता को आराध्य और स्वामी विवेकानन्द को पथ प्रदर्शक स्वीकार किया गया। ‘वन्दे मातरम्’ को प्रारम्भिक प्रार्थना और राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ को समाप्त गीत का स्थान दिया गया। 

संपूर्ण विश्व के हिन्दू समुदाय को संगठित करने के उद्देश्य से 29 अगस्त 1964 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ पर्व पर भारत की संत शक्ति के आशीर्वाद के साथ विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना की गई। विहिप का उद्देश्य हिन्दू समाज को संगठित करना, हिन्दू धर्म की रक्षा करना और समाज की सेवा करना था।  भारत अभी चीन से युद्ध की विभीषिका से उबर भी नहीं पाया था कि 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। ऐसे समय में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने राजनीतिक नेताओं के साथ-साथ सामाजिक एवं सांस्कृतिक नेता के रूप में तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी को विचार विमर्श के लिए आमंत्रित किया। श्री गुरुजी ने शास्त्री जी को कहा कि जिन-जिन कामों के लिए पुलिस और अर्धसैनिक बलों का प्रयोग होता है वहां हमारे स्वयंसेवक कार्य कर सकते हैं। आप अर्धसैनिक बलों को अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में लगा सकते हैं। युद्ध काल में संघ के स्वयंसेवकों ने विभिन्न नागरिक दायित्वों की व्यवस्थाओं को संभालने में सरकारी कर्मचारियों की सहायता की। श्री गुरुजी ने शास्त्री जी को यह परामर्श भी दिया था कि यदि पाकिस्तान की सेना भारतीय क्षेत्र में घुसकर आक्रमण कर सकती है तो हमारी सेना को भी उनके क्षेत्र में भीतर घुसकर आक्रमण करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए जिसे शास्त्री जी ने सहर्ष स्वीकार किया था। शास्त्री जी के ताशकंद जाने से पूर्व श्री गुरुजी को कहीं से कोई संदेश मिला था तब उन्होंने श्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक पत्र लिखकर शास्त्री जी को संदेश भिजवाया था कि वे ताशकंद की यात्रा पर न जाए परंतु वे पहले ही जा चुके थे। वहां उनकी षड्यंत्रपूर्ण मृत्यु हो गयी। 1965 में मधुकर दत्तात्रेय देवरस उपाख्य बाला साहब देवरस संघ के सरकार्यवाह चुने गए। 1965 में विदर्भ में एक बड़ा प्रांतिक शिविर हुआ जिसमें 5000 से अधिक स्वयंसेवकों ने भाग लिया। 

इस अंक में इतना ही अगली शृंखला में बात करेंगे संघ यात्रा के अगले दशक की...