अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड
जहां एक ओर विकास की दौड़ में ग्रामीण क्षेत्रों की पहचान खोती जा रही थी, वहीं अल्मोड़ा की पहाड़ियों से एक नया आत्मनिर्भर भारत आकार ले रहा है। हिमाद्री हैंडलूम कोई सरकार की योजना भर नहीं, अपितु महिलाओं के हाथों में थमी बुनाई की वह लकीर है जो पहाड़ की संस्कृति, परंपरा और आजीविका को एक नई दिशा दे रही है। हिमाद्री हैंडलूम का पुनर्जीवन आज नारी शक्ति, सांस्कृतिक विरासत और आत्मनिर्भरता के त्रिवेणी संगम का प्रतीक बन चुका है। कभी अल्मोड़ा की सांस्कृतिक पहचान और महिला बुनकरों की कला का जीवंत प्रतीक रहा हिमाद्री हैंडलूम समय के थपेड़ों में ठहर गया था। पर अब जिला प्रशासन के प्रयास और महिलाओं की मेहनत से इसे फिर से एक नई ऊर्जा मिली है। हिमाद्री 2.0 के नाम से पुनर्जीवित इस ब्रांड ने कुमाऊं की परंपरागत बुनाई को आधुनिक बाजार की जरूरतों से जोड़ा है।
शाल, स्टाल और पारंपरिक वस्त्र न केवल पहाड़ों की खुशबू और संस्कृति समेटे हुए हैं, अपितु अब ये स्थानीय महिलाओं के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता का मजबूत आधार बन चुके हैं। यह पहल केवल वस्त्र उत्पादन तक सीमित नहीं, अपितु एक आंदोलन बन रही है – जहां हर करघे की ध्वनि आत्मनिर्भरता का घोष करती है, हर धागा संघर्ष की कहानी बुनता है और हर उत्पाद एक स्वाभिमानी भविष्य का संकेत देता है। अब हिमाद्री न मात्र कुमाऊंनी हस्तकला का ब्रांड है, अपितु यह एक सशक्त नारी स्वावलंबन मॉडल बन चुका है, जिससे अन्य पहाड़ी क्षेत्रों को भी प्रेरणा मिल रही है। हिमाद्री 2.0 आत्मनिर्भर भारत की उस तस्वीर को साकार कर रहा है, जिसमें महिलाएं केवल घर की सीमा तक सीमित नहीं, अपितु रोजगार, पहचान और संस्कृति की वाहक बनकर उभर रही हैं। यह केवल उत्पाद नहीं बेच रहा अपितु आत्मसम्मान, परंपरा और भविष्य बुन रहा है।