सांस्कृतिक उत्सवों का दिसम्बर
दिसंबर का महीना भारत में केवल मौसम का बदलाव नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्भुत संगम है। ठंडी हवाओं का आगमन, हल्की धूप और खेतों में तैयार फसल के साथ ही पूरे देश में उत्सवों का जीवंत वातावरण देखने को मिलता है। यह महीना न केवल धार्मिक श्रद्धा, बल्कि सामाजिक समरसता और लोककला के उत्सव का प्रतीक है। भारत के हर राज्य, हर गांव, हर जनजाति और शहर में अपने अनूठे रीति-रिवाज, लोकगीत, नृत्य, रंग-बिरंगे परिधान और पारंपरिक व्यंजन इस महीने को खास बनाते हैं। दिसंबर का महीना यह याद दिलाता है कि भारतीय उत्सव केवल मनोरंजन या परंपरा तक सीमित नहीं हैं, वे कृषि, धर्म, लोककथाएं और समाज के गहरे बंधन का प्रतीक हैं।
संगीत और नृत्य के बिना ये उत्सव अधूरे हैं। विद्वानों का मानना है कि जो जनजातियां नाचती-गाती नहीं हैं, उनकी संस्कृति धीरे-धीरे मुरझा जाती है। इसलिए भारत में नृत्य और संगीत का इतिहास मंदिरों से शुरू हुआ, जहां कला को ईश्वर तक पहुंचने का माध्यम माना जाता था। आज भी यह परंपरा जीवित है, और देश-विदेश से पर्यटक इन उत्सवों का अनुभव लेने आते हैं।
दिसंबर की शुरुआत ही उत्सवों की भव्य श्रृंखला से होती है। ओडिशा में 1 से 5 दिसंबर तक आयोजित कोणार्क नृत्य महोत्सव प्राचीन सूर्य मंदिर के सामने आयोजित होता है। यहां देशभर के नर्तक अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। भरतनाट्यम, ओडिसी, कथक, कुचिपुड़ी और मोहिनीअट्टम जैसे शास्त्रीय नृत्य अपनी पूर्ण भव्यता के साथ सामने आते हैं। हर नृत्य में इतिहास की झलक और देवी-देवताओं की कथा दिखाई देती है। दर्शक यहां शास्त्रीय और लोक नृत्य का अद्भुत संगम देख सकते हैं, जिसमें रंग-बिरंगे परिधान, संगीत की गूंज, हाथों और आंखों की अभिव्यक्ति हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती है। इसी अवधि में पुरी और चंद्रभागा तट पर अंतरराष्ट्रीय रेत कला महोत्सव भी आयोजित होता है। यहां कलाकार विशाल और जटिल रेत की कलाकृतियां बनाते हैं, जो समुद्र की लहरों और सूरज की पहली किरण में जीवंत हो उठती हैं। यह महोत्सव पुरी की परंपरागत रेत कला और सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने का अद्भुत माध्यम है।
1 दिसंबर को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के अवसर पर यह पर्व आयोजित होता है, और 15 नवंबर से 5 दिसंबर तक अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव का आयोजन कुरुक्षेत्र में किया जाता है। ब्रह्म सरोवर के आस-पास 300 से अधिक राष्ट्रीय स्टॉल लगाए जाते हैं और 75 तीर्थों पर गीता पूजन, गीता यज्ञ, अंतरराष्ट्रीय गीता सेमिनार, वैश्विक गीता पाठ और संत सम्मेलन आयोजित होते हैं। श्रद्धालु 48 कोस परिक्रमा करके महोत्सव में भाग लेते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यही स्थल है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। यहां का प्राचीन सरोवर और पवित्र अक्षय वट गीता उपदेश के साक्षी माने जाते हैं। गीता के 18 अध्याय और 700 श्लोक जीवन, धर्म और नीति का सार प्रस्तुत करते हैं। इस महोत्सव का अनुभव किसी आध्यात्मिक यात्रा से कम नहीं है। यहां की हवा, मंदिर की घंटियों की आवाज, गीता पाठ की गूँज और श्रद्धालुओं की भक्ति का समागम आत्मा को शांति और प्रेरणा प्रदान करता है।
पूर्वाेत्तर भारत में नागालैंड की 60 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है, इसलिए वहाँ का हॉर्नबिल उत्सव (1-10 दिसंबर) कृषि और वीरता का प्रतीक है। यह उत्सव नागा जनजातियों की परंपराओं, लोकगीत, लोकनृत्य और पारंपरिक व्यंजनों का अनोखा संगम प्रस्तुत करता है। हॉर्नबिल पक्षी के नाम पर आयोजित इस उत्सव में लोग पंखों से सजते हैं, बहादुर नायकों की प्रशंसा में गीत गाए जाते हैं और पारंपरिक नृत्यों में भाग लिया जाता है। देश-विदेश से पर्यटक इसे देखने आते हैं और नागा संस्कृति का अनुभव करते हैं।
राजस्थान के कुंभलगढ़ किले में कुंभलगढ़ महोत्सव (1-3 दिसंबर) आयोजित होता है। यह महोत्सव विभिन्न संस्कृतियों के लोकगीत, नृत्य और शौर्य प्रदर्शन प्रस्तुत करता है। यहां कलाकार अपनी परंपरागत कला, शिल्प और व्यंजन प्रस्तुत करते हैं, जिससे दर्शक राजस्थान की सांस्कृतिक समृद्धि का अनुभव कर पाते हैं।
4 दिसंबर को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का सम्मिलित रूप माना जाता है। वे महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र थे। उनके भक्त उन्हें गुरु के रूप में पूजते हैं और देशभर के पादुका स्थलों पर पूजा-अर्चना करते हैं। नरसिंहवाडी में उनका भव्य मंदिर है, जिसे दत्त भक्तों की राजधानी कहा जाता है।
कर्नाटक में 5 दिसंबर को पुथरी तिरुअप्पम मनाया जाता है। यह मुख्य फसल उत्सव है, जो नए चावल की फसल पर आधारित है। इस दिन घर सजाए जाते हैं, परिवार पारंपरिक पोशाक पहनता है और धान की कटाई की खुशी में अप्पम जैसे व्यंजन बनाता है। स्थानीय संगीत, नृत्य और उत्सव का आनंद देखने और अनुभव करने योग्य होता है।
7 दिसंबर को महाराष्ट्र में संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है, जिसे ‘सकट’ भी कहा जाता है। इस दिन गणेश जी की चार कथाएं सुनाई जाती हैं और प्रत्येक कथा के बाद तिल का लड्डू भोग में वितरित किया जाता है। उत्सव के समय बच्चों की उत्सुकता, लड्डू की मिठास और माता-पिता द्वारा सुनाई जाने वाली कथाएं परिवार में खुशी और श्रद्धा का संचार करती हैं।
10 से 16 दिसंबर तक मणिपुर में तंगुल नागा चुम्फा महोत्सव मनाया जाता है। यह फसल उत्सव है, जिसमें पुरुष और महिलाएं विभिन्न सांस्कृतिक प्रदर्शनों और अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। रंग-बिरंगे परिधान, पारंपरिक वाद्ययंत्र और उत्साही गीत पूरे उत्सव को जीवंत बना देते हैं। महोत्सव का समापन भव्य जुलूस और सामूहिक लोकनृत्य के साथ होता है, जो हर दर्शक को मंत्रमुग्ध कर देता है।
13 दिसंबर को कार्तिगई दीपम मनाया जाता है। यह त्यौहार तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और श्रीलंका में रोशनी और ज्योति का प्रतीक है। केरल में इसे त्रिकार्तिका कहा जाता है, जो देवी कार्तियेनी भगवती के स्वागत का अवसर है। घर, मंदिर और सड़कें दीयों और रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगाती हैं।
14 दिसंबर को केरल में पेरुमथिट्टा थरवड विरासत गृह समारोह आयोजित होता है, जो स्थानीय वास्तुकला, जीवनशैली और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को दर्शाता है। इसी दिन लद्दाख में गलदान नामचोट उत्सव मनाया जाता है, जिसमें बौद्ध भिक्षु नाटक और सांस्कृतिक प्रदर्शन करते हैं। पर्वतीय हवा, हिमालय की पृष्ठभूमि और रंग-बिरंगे वेशभूषा वाले प्रदर्शन इसे एक अनोखा अनुभव बनाते हैं।
मध्य दिसंबर से चेन्नई में नृत्य एवं संगीत समारोह शुरू होता है और लगभग एक महीने तक चलता है। यह कार्यक्रम शास्त्रीय और लोक नृत्य का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है, जिसे देश-विदेश के संगीत प्रेमी, दर्शक और कलाकार देखने आते हैं।
18 दिसंबर को छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास जयंती मनाई जाती है। 19 से 21 दिसंबर तक गोवा में सनबर्न फेस्टिवल आयोजित होता है। 21 से 30 दिसंबर उदयपुर में शिल्पग्राम महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें देशभर की संस्कृति, कला, खानपान और वेशभूषा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
23 से 28 दिसंबर शांतिनिकेतन में पौष मेला आयोजित होता है, जिसमें बाउल और छाऊ जैसे पारंपरिक लोक नृत्यों में भाग लिया जा सकता है। 26 दिसंबर से 1 जनवरी तक पंचमढ़ी उत्सव आयोजित होता है। 26 दिसंबर को महाराष्ट्र में चंपा षष्ठी मनाई जाती है।
27 से 29 दिसंबर रणथंभौर में संगीत और वन्यजीव महोत्सव आयोजित होता है। उसी दिन केरल के अयप्पा मंदिर में मंडला पूजा संपन्न होती है, जो 16 नवंबर से चलने वाले 41 दिवसीय उपवास और तपस्या उत्सव का समापन है।
29 और 30 दिसंबर को माउंट आबू विंटर फेस्टिवल आयोजित होता है। 30 और 31 दिसंबर हिमाचल हिल्स फेस्टिवल मनाया जाता है।
दिसंबर का महीना भारतीय संस्कृति, लोककला, संगीत और आध्यात्मिकता का जीवंत दर्शन कराता है। इस समय हर उत्सव में लोग मिलते हैं, परिवार और समाज एक साथ होते हैं, और देशभर में उत्सवों की धूम रहती है। संगीत, नृत्य, लोककथाएं, पूजा, फसल और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम पाठक को महसूस कराता है कि भारत की सांस्कृतिक समृद्धि अनंत है।




