संघ संस्मरण
'मातृपूजन' ग्रन्थ का प्रकाशन समारोह दिनांक 4.10.1969 को पुणे में श्री गुरुजी के हाथों सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर उन्होंने आदिशक्ति 'मातृत्व' ' के विविध रूपों का सरल वर्णन करते हुए कहा, "मातृत्व के सम्बन्ध में कोमलता और पवित्रता के विचार तो सर्वत्र प्रस्तुत किए जाते हैं। रोमन कैथोलिकों में मेडोना और उसके पुत्र येशु के ऐसे चित्र जो हृदय को स्पर्श करने वाले अत्यन्त प्रेमवान हैं, पूजे जाते हैं। अपने यहां ज्ञानदायी, करुणामयी, जगत का धारण करने वाली होने के साथ-साथ 'विनाशाय सर्वभूतानाम्' स्वरूपिणी शक्ति, इन तीनों रूपों में उसका वर्णन हुआ है। जगन्माता का यह स्वरूप अन्य लोगों के ध्यान में नहीं आया। हमारे यहां माता, मातृभूमि और जगन्माता, मातृत्व के ये त्रिविध रूप बताए गए हैं। “सर्वज्ञान-प्रदायिनी शक्तिदात्री जगन्माता की वास्तविक भावना के अभाव और केवल स्वार्थ-सीमित दृष्टि से ही उसकी ओर देखने के कारण जीवन पशुतुल्य बनता जा रहा है। कामप्रधान जीवन सुसंस्कृत मनुष्य के जीवन का लक्षण नहीं है। अन्तःकरण में यदि कृतज्ञता का भाव नहीं रहा, तो जीवन जंगली हो जाता है। इसलिए सुसंस्कृत होकर माता के प्रति अपनी भक्ति इन त्रिविध स्वरूपों में नित्य करना अत्यावश्यक है।"
।। श्री गुरूजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा, पृष्ठ - 126-27 ।।




