- 20 किलो की चाबी से अहंकार का ताला खोलने की प्रेरणा
- पिछले 14 वर्षों से अपने सिर पर जौ, चना, गेहूं और बाजरा उगा रहे हैं
प्रयागराज। महाकुंभ 2025 में इस बार दो अनोखे संतों ने श्रद्धालुओं का ध्यान खींचा है। एक तरफ हैं अनाज बाबा, जो सिर पर फसल उगाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं, और दूसरी ओर कबीरा बाबा, जो 20 किलो की चाबी से अहंकार का ताला खोलने की प्रेरणा दे रहे हैं।
अनाज बाबा: पर्यावरण संरक्षण का संदेश -
सोनभद्र के मूल निवासी बाबा अमरजीत, जिन्हें लोग "अनाज बाबा" के नाम से जानते हैं, पिछले 14 वर्षों से अपने सिर पर जौ, चना, गेहूं और बाजरा उगा रहे हैं। उनका मानना है कि यह उनकी "हठयोग साधना" का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य लोगों को हरियाली और पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है।
बाबा का कहना है,
"पेड़ों की कटाई और पर्यावरण की क्षति को रोकने के लिए मैंने यह कदम उठाया है। हरियाली ही जीवन है।" बाबा ने बताया कि मौनी अमावस्या के दिन उनकी फसल तैयार होगी, जिसे वह प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटेंगे। बाबा की एक फीट लंबी जौ और चने की फसल को देखकर श्रद्धालु हैरान हैं। वे बाबा से इस अनोखी साधना के रहस्य के बारे में पूछते हैं और उनके साथ सेल्फी लेते हैं।
कबीरा बाबा: अहंकार के ताले खोलने का संदेश -
दूसरी ओर, रायबरेली के हरिश्चंद्र विश्वकर्मा, जिन्हें "कबीरा बाबा" कहा जाता है, अपने 20 किलो वजन वाली चाबी और बिना इंजन वाले रथ के साथ महाकुंभ पहुंचे हैं। यह चाबी अहंकार का ताला खोलने का प्रतीक है, जिस पर लिखा है। बाबा ने कहा "हे मानव, सत्य, न्याय और धर्म के मार्ग पर चलो।"
कबीरा बाबा का कहना है कि उन्होंने 16 साल की उम्र में समाज में फैली बुराइयों और नफरत से लड़ने का संकल्प लिया था। तब से वह पूरे देश में भ्रमण कर रहे हैं और हर स्थान पर एक चाबी बनाकर अपने रथ में जोड़ते हैं। बाबा ने कहा "अध्यात्म कहीं बाहर नहीं, बल्कि इंसान के भीतर ही है। मैं लोगों को यह संदेश देने आया हूं, लेकिन आज के समय में किसी के पास सुनने का वक्त नहीं है।"
दोनों संतों के संदेश पर विचार -
महाकुंभ में अनाज बाबा और कबीरा बाबा जैसे संतों ने भक्तों को न केवल आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित किया, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और समाज सुधार का भी गहरा संदेश दिया। श्रद्धालु इनके अनूठे प्रयासों से प्रेरणा ले रहे हैं और इन्हें महाकुंभ का विशेष आकर्षण मान रहे हैं।
महाकुंभ में इन संतों की उपस्थिति यह बताती है कि धर्म और अध्यात्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह समाज, पर्यावरण, और मानवता के कल्याण का भी माध्यम है।