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संभल की रानी की बावड़ी : इतिहास के गर्त से निकली अनमोल धरोहर

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- राज्य पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने इसका सर्वे शुरू कर दिया है

- हिंदूवादी कार्यकर्ता की शिकायत के बाद प्रशासन ने खुदाई शुरू करवाई

संभल। संभल जिले के चंदौसी क्षेत्र में हाल ही में खुदाई के दौरान एक गहरी बावड़ी मिली है, जो सहसपुर के राजपरिवार द्वारा बनवाई गई थी। यह बावड़ी अपने इतिहास और वास्तुकला के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है। राज्य पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने इसका सर्वे शुरू कर दिया है। बावड़ी के साथ जुड़े कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं ने इसे चर्चा का विषय बना दिया है।

लक्ष्मणपुर मोहल्ले में स्थित इस बावड़ी का इलाका कूड़े-कचरे से ढका हुआ था और आसपास मकानों से घिरा हुआ था। हिंदूवादी कार्यकर्ता कौशल किशोर की शिकायत के बाद प्रशासन ने इस स्थान पर खुदाई शुरू करवाई। प्रारंभिक जांच में पता चला कि यह बावड़ी 150 वर्ष पुरानी है। प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने और बावड़ी की संरचना को उजागर करने के लिए मजदूरों की एक टीम लगाई।

बावड़ी की संरचना -

चंदौसी की यह बावड़ी तीन मंजिला है और लगभग 30 फीट गहरी बताई जाती है। अभी तक 14-15 फीट की खुदाई हो चुकी है। इस बावड़ी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:

1. मंजिलों का निर्माण :

     • दो मंजिल ईंटों से बनी हैं।

     • एक मंजिल पत्थरों से निर्मित है।

2. सीढ़ियाँ और गलियारे :

     • लाल पत्थरों की पक्की सीढ़ियाँ नीचे उतरने के लिए बनी हुई हैं।

     • बावड़ी में चारों ओर पांच गलियारे मिले हैं।

3. कुआँ और सुरंग :

      सबसे निचले तल पर एक कुआँ है।

     • एक सुरंग भी मिली है, जिसका रास्ता पास के राधाकृष्ण मंदिर तक जाता है।

4. कमरे :

     • ऊपर की मंजिलों पर छोटे-छोटे दरवाजों वाले कमरे बनाए गए हैं।

इतिहास और सहसपुर का राजपरिवार -

इस बावड़ी का निर्माण सहसपुर के राजपरिवार ने करवाया था। यह राजपरिवार मुरादाबाद, बिजनौर, संभल और बदायूँ जैसे क्षेत्रों पर शासन करता था।

बाबर से संघर्ष- इस राजवंश ने मुगल सम्राट बाबर के खिलाफ युद्ध लड़ा था। हालांकि, पराजय के बाद उन्हें पंजाब की ओर पलायन करना पड़ा। बाद में, औरंगजेब के समय में यह परिवार पुनः अपने क्षेत्र में लौटा।

अंग्रेजों के साथ संबंध- राजा प्रद्युमन कृष्ण सिंह ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों की सहायता की, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें इनामस्वरूप कई अधिकार प्राप्त हुए। उनकी शासन अवधि 1839 से 1880 तक रही।

राजा प्रद्युमन कृष्ण सिंह के वंशजों में रानी सुरेन्द्र बाला ने अपनी सम्पत्तियों को अपने गोद लिए हुए बेटे विष्णु कुमार को सौंप दिया। रानी सुरेन्द्र बाला की पोती शिप्रा गैरा ने 1995 तक इस बावड़ी की देखरेख की। इस बावड़ी का उपयोग सैनिकों, स्थानीय निवासियों और खेती के लिए पानी की आपूर्ति हेतु होता था। इसकी मजबूत संरचना और गुप्त सुरंगें इसे सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाती हैं।

संभल की रानी की बावड़ी न केवल एक वास्तुकला का नमूना है, बल्कि यह एक इतिहास का पन्ना भी है, जो राजपरिवारों की कहानी और उनके संघर्षों को उजागर करता है। प्रशासन और पुरातत्व विभाग की कोशिशें इस धरोहर को संरक्षित करने और इसके इतिहास को उजागर करने में महत्वपूर्ण साबित हो रही हैं। यह बावड़ी भविष्य में क्षेत्रीय इतिहास और पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र बन सकती है।