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संघ दर्शन

संघ की पहली अग्नि परीक्षा

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संघ की पहली अग्नि परीक्षा

संघ -3  1945 से 1955 

संघ यात्रा श्रृंखला में इस बार हम बात करेंगे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीसरे दशक 1945 से 1955 तक की यात्रा की। अब तक संघ भारतीय जनमानस के हृदय में स्थापित हो चुका था। गांधी जी द्वारा चलाए गए 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जनमानस के साथ हजारों स्वयंसेवक भी जुटे थे लेकिन आन्दोलन को अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। इसके पूर्व  1940 में लाहौर में मुस्लिम लीग द्वारा ‘पाकिस्तान प्रस्ताव’ पारित किए जाने के  पश्चात भारत के मुस्लिम वर्ग की मानसिकता भी कट्टर मजहबी रूप ले चुकी थी। 1946 में मुस्लिम लीग द्वारा डायरेक्ट एक्शन डे की घोषणा के फलस्वरूप कोलकाता में हिन्दुओं का भारी नरसंहार किया गया। ऐसे में पीड़ित हिन्दू समुदाय की रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जमीनी स्तर पर कार्य किया। मजहब के आधार पर मातृभूमि के विभाजन की चर्चा होने लगी थी। 3 जून 1947 को कांग्रेस ने विभाजन का अप्रत्याशित निर्णय ले लिया। श्री गुरुजी ने प्रत्येक स्वयंसेवक को इस कठिन परिस्थिति में मातृभूमि और विधर्मियों से अपने हिन्दू भाई-बहनों की रक्षा के लिए कमर कसने का आह्वान किया। 15 अगस्त 1947 को देश स्वाधीन होने के साथ ही खंडित भी हो गया। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में दंगे भड़क उठे, हिन्दुओं की रक्षा के लिए स्वयंसेवक अपने प्राणों की परवाह किए बिना दंगाग्रस्त क्षेत्रों में जुटे। 10 सितंबर 1947 को मुस्लिम लीगियों द्वारा दिल्ली में हिन्दू अधिकारियों व मंत्रियों की हत्या की योजना को संघ के स्वयंसेवकों ने सरदार पटेल और नेहरू को समय पर सूचना देकर विफल किया था। अंग्रेजों ने देश विभाजन के बाद देशी राज्यों को पाकिस्तान या भारत किसी में भी शामिल होने की छूट दे दी थी, इसे लेकर कश्मीर के हिन्दूपरायण राजा हरि सिंह दुविधा में पड़ गए थे क्योंकि उनके राज्य के मार्ग इत्यादि पाकिस्तानी क्षेत्र से जुड़े थे। ऐसे समय में प्रांत संघचालक प्रेमनाथ डोगरा ने महाराजा से मिलकर उनसे भारत में विलय के लिए अनुरोध किया। संघ स्वयंसेवकों के जनजागरण द्वारा महाराजा के पास कश्मीर और आस-पास के राज्यों से भारत में विलय हेतु हजारों टेलीग्राम भेजे गए। 14 अगस्त को श्रीनगर के डाकघर पर मुस्लिम बलवाइयों ने पाकिस्तानी झंडा फहरा दिया। संघ के स्वयंसेवकों ने व्यवस्था बनाकर न केवल उस झंडे को उतारा बल्कि रातों-रात सैकड़ों तिरंगे झंडे संघ कार्यालय में तैयार कर लोगों में वितरित किए, इसी का प्रभाव था कि 15 अगस्त की सुबह श्रीनगर के अधिकांश घरों और दुकानों पर भारत का तिरंगा लहरा रहा था। सरदार पटेल ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए श्री गुरूजी को महाराजा से वार्ता करने को कहा और 17 अक्टूबर 1947 को श्री गुरुजी विमान द्वारा श्रीनगर पहुंचे और महाराजा हरि सिंह को भारत के साथ विलय हेतु सहमत किया। कश्मीर पर कब्जे की नीयत से 23 अक्टूबर को पाकिस्तानी सेना ने कबाइलियों के भेष में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। ऐसे समय में संघ के स्वयंसेवकों ने पाकिस्तान समर्थक मुसलमानों का डटकर सामना किया, इसके साथ ही 500 स्वयंसेवकों ने जम्मू हवाई पट्टी को चौड़ा करने का तात्कालिक कार्य किया जिसके कारण भारतीय सेना के डकोटा विमान वहां उतर सके। मीरपुर में फंसे हजारों हिन्दुओं के जीवन और सम्मान की रक्षा करते-करते जम्मू के सैकड़ों स्वयंसेवकों ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया। इस दौरान भारतीय सेना का सहयोग भी किया।  

राष्ट्रवादी पत्रकारिता के उद्देश्य से 1947-48 में संघ की प्रेरणा से ‘राष्ट्रधर्म’ और ‘पांचजन्य’ पत्रों की स्थापना हुई।  

1948 तक राजनीतिक विद्वेष के चलते संघ की बढ़ती शक्ति को तत्कालीन कांग्रेसी नेता अपने लिए एक बड़ी चुनौती मानने लगे थे। उसी समय 30 जनवरी 1948 को दुर्भाग्यपूर्ण रूप से महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई। यहां यह बात ध्यान देने की है कि गांधी जी की हत्या से एक दिन पहले ही 29 जनवरी 1948 को पंडित नेहरू ने अमृतसर में कहा था कि, ‘हम संघ को जड़ मूल से नष्ट करके ही रहेंगे।’ श्री गुरुजी ने स्वयं और संघ के प्रांत स्तर के नेताओं ने अपने-अपने स्तर पर गांधी जी की हत्या की निंदा की और बयान दिए। शोक हेतु शाखाओं के दैनिक कार्यक्रम 13 दिनों के लिए स्थगित कर दिए गए। स्वयंसेवकों द्वारा नागपुर में भी शोक सभा का आयोजन किया गया। संघ विरोधियों ने गांधी जी की हत्या को एक अवसर के रूप में देखा और षड्यंत्रपूर्वक गांधी जी की हत्या में संघ समर्थक व्यक्ति के सम्मिलित होने का झूठा प्रचार किया। 1 फरवरी को श्री गुरुजी को गिरफ्तार कर लिया गया तथा 4 फरवरी 1948 को संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बीस हजार स्वयंसेवकों को गिरफ्तार कर लिया गया। प्रधानमंत्री नेहरू ने बिना जांच-पड़ताल भाषण देना प्रारंभ कर दिया कि संघ गांधी जी का हत्यारा है। हजारों स्वयंसेवकों ने अत्याचार सहते हुए लंबे समय तक सत्याग्रह किया और गिरफ्तारियां दीं। एक लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद संघ इस मिथ्या आरोप से निर्दाेष सिद्ध हुआ। 

इस बात के भी साक्ष्य उपलब्ध हैं कि सरदार पटेल चाहते थे कि संघ जैसा राष्ट्रवादी एवं राष्ट्रभक्त संगठन कांग्रेस में सम्मिलित होकर उनके हाथ मजबूत करे। सरदार पटेल ने प्रतिबंध हटाने की एक शर्त के रूप में यह बात श्री गुरुजी के समक्ष भी रखी थी जिसे श्री गुरुजी ने अस्वीकार कर दिया था। 

प्रतिबंधकाल में संघकार्य में व्यवधान उत्पन्न हुआ था किन्तु इस अग्नि परीक्षा से संघ और अधिक निखर गया। श्री गुरुजी के मार्गदर्शन में संघकार्य पुनः द्रुत गति से आगे बढ़ने लगा।  26 जनवरी 1950 को देश गणतंत्र बन गया, श्री गुरुजी ने सभी स्वयंसेवकों को इस पर्व को मनाने का निर्देश दिया। मार्च 1950 में प्रथम अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बैठक आयोजित हुई। इसी वर्ष असम में आई बाढ़ और भूकंप में भी स्वयंसेवकों ने राहत कार्य किया। पंडित नेहरू ने 1950 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ एक संधि की, जिसे उनके मंत्रिमंडल के सदस्य डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दू हितों के साथ विश्वासघात मानकर अपना त्यागपत्र दे दिया। 1950 में पूर्वी बंगाल और आज के बांग्लादेश में रह रहे हिन्दुओं का भयंकर नरसंहार हुआ, बड़ी संख्या में हिन्दू जान बचाकर पश्चिम बंगाल और असम में आ गए। कांग्रेस का रुख देख डॉ. मुखर्जी समझ चुके थे कि कांग्रेस के स्वभाव में ही मुस्लिम तुष्टिकरण है। बाद में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का श्री गुरुजी के साथ चिंतन-मनन हुआ और इसके परिणामस्वरूप भारतीय अस्मिता, इतिहास, धर्म-संस्कृति मूल्यों और परंपरा में निष्ठा रखने वाले राजनीतिक दल के रूप में 21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जन संघ की स्थापना हुई। सितंबर 1952 में देश के नागरिकों एवं विभिन्न संगठनों ने व्यापक गोवध बंदी आंदोलन किया, जिसमें संघ की बड़ी भूमिका थी। पूरे देश में जन जागरूकता के लिए श्री गुरुजी स्वयं स्थान-स्थान पर जाकर जनता को संबोधित करते थे। 7 दिसम्बर 1952 को स्वयंसेवकों द्वारा 85,000 नगरों और गांवों से एकत्र 1,75,39,813 हस्ताक्षरों से युक्त पत्रों को दिल्ली लाया गया और 8 दिसम्बर को देश के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सौंपा गया। संघ द्वारा किया गया यह व्यापक जनसंपर्क था। वर्ष 1952 में ही वनवासी क्षेत्र में सेवा कार्य करने हेतु वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना भी की गई। 23 जून को संदेहास्पद स्थिति में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की कश्मीर जेल में मृत्यु हो गई। उदित होते जनसंघ के लिए यह बड़ी हानि थी।   

स्वाधीनता के बाद भी दादरा नगर हवेली और गोवा जैसे स्थानों को पुर्तगालियों से मुक्त कराने के लिए संघर्ष चालू था। 2 अगस्त 1954 को पुणे के संघचालक विनायक राव आप्टे के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने दादरा और नगर हवेली को पुर्तगालियों से मुक्त कराया। 1955 में गोवा के स्वतंत्रता आन्दोलन में भी स्वयंसेवकों ने बड़ी भूमिका निभायी। पणजी सचिवालय पर सर्वप्रथम तिरंगा झंडा भी एक स्वयंसेवक ने ही फहराया था। वामपंथियों ने भारतीय श्रमिक वर्ग पर शिकंजा कस लिया था। भारतीय आर्थिक चिंतन को केंद्र में रखकर वरिष्ठ कार्यकर्ता दत्तोपंत ठेंगडी ने 1955 में श्रमिकों के मध्य कार्य करने हेतु भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की।

- इस श्रृंखला में यहीं तक अगली कड़ी में बात करेंगे संघ यात्रा के अगले दशक की...