गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तिकरण की दिशा में गाजियाबाद ने एक अनोखी पहल की है। अब यहां गोबर केवल खेतों तक सीमित नहीं रहेगा, अपितु हर दीवार पर इको-फ्रेंडली पेंट बनकर चमकेगा और इस परिवर्तन की धुरी बनेंगी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं। कचरे से कंचन, गोबर से स्वर्ण और महिलाओं से सशक्त समाज की परिकल्पना अब वास्तविकता में बदल रही है। गाजियाबाद नगर निगम ने महिलाओं के हाथों में रोजगार, आत्मनिर्भरता और पर्यावरण बचाने की ताकत सौंप दी है। गोबर से बनने वाला यह पेंट पूरी तरह से प्राकृतिक, इको-फ्रेंडली और जैविक है। रासायनिक पेंट से जहां पर्यावरण को नुकसान होता है, वहीं गोबर से बना पेंट वातावरण को शुद्ध करता है। दीवारों को मजबूती भी देता है और तापमान नियंत्रित रखता है। यह पहल न मात्र शहर को स्वच्छ बनाएगी अपितु हर सांस को शुद्ध करने का संकल्प भी है। जहां कभी महिलाएं सीमित संसाधनों और अवसरों में जीवन यापन करती थीं, वहीं अब उनके हाथों में हुनर, रोजगार और आर्थिक स्वतंत्रता का मजबूत जरिया आ गया है। स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अब पेंट निर्माण से लेकर उसकी बिक्री तक पूरे कार्य में भागीदार होंगी।
गोबर, जिसे कभी बेकार समझा जाता था, आज आय का सशक्त स्रोत बन रहा है। गीले कचरे से खाद और गोबर से पेंट—गाजियाबाद का यह मॉडल ‘कचरे से कंचन’ की जीवंत मिसाल है। यह पहल न केवल रोजगार सृजन का माध्यम बनेगी, अपितु हर नागरिक को ‘स्वच्छता ही सेवा’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र से जोड़कर आत्मनिर्भर भारत की ओर प्रेरित करेगी। पर्यावरण संरक्षण के इस आंदोलन में महिलाएं नायक बनी हैं। स्वच्छ शहर, स्वावलंबी महिलाएं और प्रदूषण मुक्त वातावरण—यह त्रिवेणी अब गाजियाबाद में साकार हो रही है। यह मात्र एक योजना नहीं, अपितु एक क्रांति है। एक ऐसी क्रांति जिसमें महिलाएं पर्यावरण रक्षक भी हैं, नवाचार की वाहक भी और आत्मनिर्भरता की मिसाल भी।