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बेजुबानों की आवाज बनी उत्तराखंड की यह निर्भीक बेटी

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देहरादून, उत्तराखण्ड

आज जब अधिकतर युवा बेहतर करियर और ऊंची सैलरी के पीछे भाग रहे हैं, ऐसे में कोई अगर अपनी स्थायी और सम्मानजनक नौकरी छोड़कर मूक प्राणियों के अधिकारों की लड़ाई में उतर जाए, तो यह मात्र एक करुणा नहीं अपितु आत्मनिर्भरता और महिला सशक्तिकरण का जीवंत उदाहरण बन जाता है। देहरादून की रुबीना मित्तल अत्रया ऐसी ही एक प्रेरणादायी महिला हैं, जिन्होंने फार्मा कंपनी में लगभग 18 वर्षों की सफल नौकरी छोड़कर पशुओं के अधिकार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। रुबीना ने न केवल पशुओं की भूख और दर्द को समझा, अपितु उनकी पीड़ा को अपनी ध्वनी बना ली। उन्होंने देखा कि रेहड़ी-पटरी वाले, कुछ दुकानदार और पशु पालक जानवरों का शोषण करते हैं। उनसे जबरन काम लिया जाता है, उन्हें भूखा रखा जाता है और बीमार होने पर इलाज तक नहीं कराया जाता। इसी अन्याय ने रुबीना को झकझोर दिया और उन्होंने ठान लिया कि अब ये मूक प्राणी अकेले नहीं रहेंगे। रुबीना आज ‘पशु अधिकार जागरूकता अभियान’ के माध्यम से न केवल पशुओं को राहत पहुंचा रही हैं, अपितु समाज में संवेदनशीलता और कानूनी जागरूकता भी फैला रही हैं। उन्होंने बताया कि बहुत से अधिकारी भी नहीं जानते कि पशुओं के लिए भी अधिकार निर्धारित हैं और उनके प्रति अन्याय करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई संभव है।

रुबीना की कहानी मात्र करुणा की नहीं, अपितु आत्मनिर्भरता और साहस की भी है। एक महिला जिसने वर्षों की मेहनत से हासिल की गई नौकरी छोड़ दी, वह आज बिना किसी सरकारी सहयोग के अपने दम पर बेज़ुबानों के लिए खड़ी हैं। वह महिलाओं को यह संदेश देती हैं कि सशक्त होने का मतलब केवल नौकरी करना नहीं, अपितु समाज में बदलाव लाने की क्षमता रखना है। उन्होंने फार्मा क्षेत्र में अपने अनुभव का उपयोग कर पशुओं की जांच, टीकाकरण और रेस्क्यू जैसी दायित्व को वैज्ञानिक ढंग से निभाया है। इसके साथ ही वह पशु व्यापार को वैधानिक बनाने के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया का भी समर्थन कर रही हैं ताकि अवैध गतिविधियों पर रोक लगाई जा सके। रुबीना मित्तल अत्रया आज न केवल उत्तराखंड अपितु पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गई हैं। जहां एक ओर वह मूक प्राणियों की ध्वनी बनी हैं, वहीं दूसरी ओर वह महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं। उनका यह कदम बताता है कि आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं होती, अपितु इसमें मानवीय मूल्यों के लिए खड़े होने की ताकत भी शामिल है। रुबीना जैसे लोग समाज को वह दिशा देते हैं जो संवेदनशीलता, करुणा और न्याय की ओर ले जाती है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि इरादे नेक हों और जुनून सच्चा हो, तो कोई भी बदलाव लाया जा सकता है — चाहे वह इंसानों के लिए हो या फिर मूक प्राणियों के लिए।