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हाथों से तैयार होती है 100 तरह की जड़ी-बूटियां

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गोंडा, उत्तर प्रदेश

जब पूरी दुनिया मशीनों पर निर्भर होती जा रही है, ऐसे समय में उत्तर प्रदेश का गोंडा जिला स्वदेशी आत्मनिर्भरता की अद्भुत मिसाल पेश कर रहा है। विकासखंड इटियाथोक का जयप्रभा गांव आज आयुर्वेद का जीवंत गढ़ बन चुका है। यहां वैद्य अपने हाथों से 100 से अधिक किस्म की जड़ी-बूटियां तैयार करते हैं। जयप्रभा ग्राम के वैद्य नंदू प्रसाद बताते हैं कि यहां अधिकांश जड़ी-बूटियां स्वयं गांव में ही उगाई जाती हैं। जो पौधे स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं होते, उन्हें बाहर से मंगाया जाता है, लेकिन उनकी प्रक्रिया, पीसाई और मिश्रण सब हाथों से ही किया जाता है। महीनों की साधना और परिश्रम के बाद एक जड़ी-बूटी तैयार होती है। यही कारण है कि यहां बनी औषधियां पूरी तरह शुद्ध, प्राकृतिक और असरदार मानी जाती हैं। इस पहल की जड़ें महान समाजसेवी नानाजी देशमुख की सोच से जुड़ी हैं। नानाजी देशमुख की कल्पना थी कि आने वाली पीढ़ियों को आयुर्वेद और वनस्पतियों का महत्व समझाने के लिए एक जीवंत गार्डन तैयार हो। उनका मानना था कि यदि आयुर्वेद और जड़ी-बूटियों का ज्ञान बच्चों और युवाओं तक नहीं पहुंचा, तो आने वाला समाज कृत्रिम दवाओं पर आश्रित हो जाएगा। यही वजह है कि आज जयप्रभा गांव स्वदेशी चिकित्सा और परंपरागत उपचार का केंद्र बन चुका है। गोंडा जिले में चल रही 'दादी मां बटुआ योजना' इस स्वदेशी आंदोलन को और मजबूत बना रही है। 15 गांवों में औषधीय पौधों के गार्डन तैयार किए जा रहे हैं। प्रत्येक गांव में एक कार्यकर्ता लोगों को इन पौधों के महत्व और आयुर्वेदिक उपचार के बारे में जागरूक करता है। यह योजना केवल स्वास्थ्य ही नहीं अपितु ग्रामीण आत्मनिर्भरता और स्वदेशी गर्व का भी प्रतीक है। गोंडा का यह गांव हमें याद दिलाता है कि असली ताकत मशीनों और विदेशी दवाओं में नहीं अपितु हमारी मिट्टी, हमारी परंपरा और हमारी जड़ों में छुपी है। जयप्रभा गांव न केवल आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का केंद्र है अपितु यह भारत की स्वदेशी आत्मा और गौरवशाली विरासत का प्रतीक भी है। यह पहल बताती है कि यदि गांव-गांव में स्वदेशी पद्धति से औषधियां तैयार हों, तो भारत आत्मनिर्भर बन सकता है और विदेशी दवाओं की निर्भरता से मुक्त हो सकता है।