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संघ दर्शन

प्राकृतिक आपदा हो या कारसेवा प्रण-प्राण से जुटे स्वयंसेवक

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प्राकृतिक आपदा हो या कारसेवा प्रण-प्राण से जुटे स्वयंसेवक

संघ यात्रा - 07 (1985-1995)

 इस शृंखला में हम बात करेंगे संघ यात्रा के 1985 से 1995 दशक की। 

वर्ष 1986 की फरवरी में ईसाई धर्मगुरु पोप का रांची में आगमन हुआ, मध्य प्रदेश से पूर्वाेत्तर तक फैला यह वनवासी क्षेत्र ईसाई मिशनरी का कार्य क्षेत्र बना हुआ था। बड़ी संख्या में वनवासी लोगों का मतान्तरण किया जा रहा था। इस अवसर पर ईसाई मिशनरी की योजना एक विराट आयोजन करने की थी जिसके प्रभाव से भोले-भाले जनजातीय बंधुओं का मतान्तरण किया जा सके। वनवासी कल्याण आश्रम के सैंकड़ों स्वयंसेवकों ने गाँव-गाँव जाकर वनवासी बंधुओं को जागरूक किया और परिणामस्वरूप पोप का वह कार्यक्रम हवाई अड्डे के परिसर तक ही सीमित करना पड़ा। इसी वर्ष ‘निष्कलंक’ पत्रिका द्वारा वनवासी क्षेत्रों में मिशनरियों द्वारा फैलाई गयी झूठी अफवाहों का निराकरण करने हेतु स्वयंसेवक वनवासी क्षेत्रों के भीतर गये। इस कार्य को करते हुए 9 हिन्दू बलिदान हुए। सिख नरसंहार के बाद सिखों में असुरक्षा की भावना घर कर गयी थी और पंजाब में भी अलगाववादी गतिविधियां जोर पकड़ रही थी। पंजाब के लुधियाना में एक शाखा पर आतंकवादी हमले में दो स्वयंसेवक बलिदान हुए। अलगाववादी गतिविधियों को देखते हुए स्वयंसेवकों ने पूरे देश में इस विषय को लेकर अनेक कार्यक्रम किए। सिख समुदाय में उपजे आक्रोश को लेकर 31 अगस्त 1986 को दिल्ली में देश भर के सिख स्वयंसेवकों का बड़ा सम्मेलन हुआ जिसमें समाज के दोनों वर्गों के बीच एकता को सुदृढ़ करने और अलगाववादियों के षड्यंत्रों को विफल करने पर चर्चा हुई। 11 मई को दिल्ली में 10 अखिल भारतीय श्रमिक संगठनों का राष्ट्रीय एकात्मता सम्मलेन हुआ और 9 अगस्त को इसी प्रकार के एकात्मता सम्मलेन प्रान्तों की राजधानियों में भी हुए। देश की सीमाओं से घुसपैठ रोकने में सरकार असफल रही थी, इस विषय और केंद्र की पंजाब को लेकर नीति के विरोध में भाजपा ने एक बड़ा जन आह्वान किया जिसमें राष्ट्रहित विषय को देखते हुए संघ के स्वयंसेवकों ने भी इसे सफल बनाने का प्रयास किया परिणामस्वरूप 23 फरवरी 1987 को दिल्ली में 5 लाख से अधिक लोगों का जनसम्मेलन हुआ। पंजाब की बिगडती स्थिति को संभालने हेतु 28 फरवरी से 9 मार्च तक विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा सद्भाव यात्रा का आयोजन किया गया। 400 साधुजनों के सद्भावना मंडल ने समूचे पंजाब के 42 स्थानों की यात्रा की। 17 मार्च 1987 को राष्ट्रीय सिख संगत का राष्ट्रीय अधिवेशन नागपुर में हुआ। 25 जून 1989 को पंजाब के मोगा जनपद में आतंकवादी हमले में 18 स्वयंसेवक बलिदान हो गए। शाखाओं पर होने वाले हमले स्पष्ट कर रहे थे कि स्वयंसेवकों की जागरूकता गतिविधियों से आतंकवादी बौखला गये थे।  इसी वर्ष पूज्य बालासाहब देवरस जी के आह्वान पर देश भर के सैंकड़ों स्थानों पर गुरु तेग बहादुर बलिदान दिवस मनाया गया। 25 नवम्बर 1987 को गुरु नानक जन्म दिवस पर ‘शहीद सन्देश ज्योति यात्रा’ अमृतसर में गुरु तेगबहादुर के जन्म स्थल ‘गुरु का महल’ से प्रारंभ हुई और पंजाब-हरियाणा का चक्कर लगाते हुए 10 दिसम्बर 1987 को उनके बलिदान स्थल गुरुद्वारा शीशगंज पर समाप्त हुई।  

1987 में होन्गासान्द्रा वेण्कटरमइया शेषाद्री जी सरकार्यवाह चयनित हुए। 6 दिसम्बर को सरसंघचालक श्री बाला साहब देवरस डॉ. भीम राव अम्बेडकर को श्रद्धांजलि देने हेतु चैत्य भूमि गये। परम पूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी का जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में वर्ष 1988 में स्वयंसेवकों ने राष्ट्रीय स्तर पर जन सम्पर्क अभियान चलाकर एक लाख पचास हजार परिवारों में सम्पर्क किया; 76,000 से अधिक बैठकें की और सेवा निधि के रूप में 11 करोड़ रूपये समाज से एकत्र किए।  भारत के पूर्वाेत्तर में राष्ट्रविरोधी तत्व स्थानीय निवासियों को भ्रमित कर उन्हें अपने निहित स्वार्थों के लिए उपयोग कर रहे थे, संघ के स्वयंसेवक एवं प्रचारक उस दुर्गम क्षेत्र में जाकर वहां की समस्याओं पर काम कर रहे थे, फरवरी 1988 को इन्हीं प्रयासों से हरेका परिषद् का वार्षिक सम्मेलन हुआ जिसमें प्रमाणिक स्वीकृति बनी कि हरेका जनजाति वास्तव में हिन्दू हैं।  एक ओर संघ के स्वयंसेवक मतान्तरण के विरूद्ध चट्टान बनकर खड़े थे तो दूसरी और पंजाब और पूर्वाेत्तर के अलगाववादी संगठनों के रास्ते में भी दीवार बनकर डटे थे, इसी समय देश में हिन्दू अस्मिता और हिन्दू आस्था के केंद्र श्री राम जन्मभूमि को लेकर भी संघ परिवार निरंतर सक्रिय था। संघ यह अनुभव कर रहा था कि अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि पर मंदिर का निर्माण मात्र एक धर्म स्थल का विषय नहीं है, यह विषय सम्पूर्ण हिन्दू समाज की आस्था और अस्मिता से जुड़ा है। तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने पूर्व में ही स्वयंसेवकों को कहा था कि श्री राम मंदिर के विषय को लेकर तीन दशकों की लड़ाई के लिए तैयार रहें। इसलिए इस विषय को लेकर संघ बहुत गंभीर था। वर्ष 1990 की 30 अक्टूबर को श्री राम जन्म भूमि अयोध्या में कारसेवा हुई। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार के प्रतिबंधों के बावजूद यह कारसेवा की गई। स्वयंसेवकों ने इस विषय को पूरे भारत के घर-घर पहुंचाया, श्री राम जन्म भूमि आन्दोलन में संघ के आनुषांगिक संगठनों सहित बड़ी संख्या में जनमानस उमड़ पड़ा। श्री राम जन्म भूमि से जुड़ी प्रत्येक गतिविधियों में संघ के लाखों स्वयंसेवक प्रभु श्री राम के प्रति श्रद्धा और राष्ट्रीय अस्मिता के प्रति भाव के साथ जुटे। 1987 में रामनवमी को उत्तर प्रदेश में अभूतपूर्व बंद, 1989 प्रयागराज कुम्भ अवसर पर तीसरी धर्म संसद में श्री राम मंदिर शिला न्यास संकल्प, देश भर में 275 लाख गांवों और विश्व के 26 देशों से श्री राम शिलाएं अयोध्या पहुंचाना जैसी अनगिनत गतिविधियों में संघ के लाखों स्वयंसेवक जनमानस के साथ जुटे।

1987-88 में गुजरात राज्य में दुर्भिक्ष पड़ा। लाखों लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। 18,275 गाँवों में से 15,000 से अधिक गाँवों को अभावग्रस्त घोषित कर दिया गया था। स्वयंसेवकों ने ‘दुष्काल पीड़ित सहायता समिति’ स्थापित कर 1,45,310 पशुओं के लिए 123 शिविर खोले, 21,000 गौवंश को काल के ग्रास बनने से बचाया। भारतीय किसान संघ के कार्यकर्ताओं ने स्थानीय किसानों के सहयोग प्रकल्प से 2 करोड़ 40 लाख किलोग्राम हरे चारे का उत्पादन किया। महाराष्ट्र के स्वयंसेवकों ने भी नाम मात्र की दर पर 2000 मीट्रिक टन घास के चारे का प्रबंध किया। 405 निःशुल्क छाछ वितरण केंद्र खोले गये, 5000 से अधिक परिवारों को कई माह तक निःशुल्क अनाज दिया गया। 16,800 स्वयंसेवकों ने माताओं बहिनों के सहयोग से 2,10,000 परिवारों से 262 टन पौष्टिक रोटी-सुखडी का संग्रह कर 65,000 के आस-पास लोगों को इसका लाभ पहुंचाया। संघ कार्य पद्धति और सेवा, समर्पण और सामाजिक समरसता का यह अनुपम उदाहरण देखकर पूरा देश हतप्रभ था। संघ के स्वयंसेवकों का ऐसा ही सेवा भाव 8 जुलाई 1988 को केरल की रेल दुर्घटना में दिखा जहां पानी में डूबे हुए बुरी तरह सड़ चुके दुर्गन्धयुक्त शवों को निकालने में स्वयंसेवक जुटे रहे, जिसे स्थानीय समाचार पत्रों ने भी छापा। 20 अक्टूबर 1991 को उत्तरकाशी में भयंकर भूकंप आया 20,000 से अधिक घर धराशायी हो गये, तब भी स्वयंसेवकों ने बुरी तरह प्रभावित 500 गांवों को चिह्नित कर आपदाग्रस्त अपने बंधु-बांधवों को भोजन, चिकित्सा, धन उपलब्ध कराने, घरों और मंदिरों के पुनर्निर्माण में युद्ध स्तर पर कार्य किया। 1993 में महाराष्ट्र के लातूर के विनाशकारी भूकंप में भी संघ के स्वयंसेवक बड़े स्तर पर राहत कार्य में जुटे और देशभर से तथा विदेशों से भी धन एकत्रीकरण कर राहतकार्य किया। 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों द्वारा अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचा ढहा दिया गया। इस घटना को लेकर संघ पर 10 दिसम्बर 1992 को तीसरा प्रतिबन्ध लगाया गया। 1993 में न्यायालय ने संघ पर प्रतिबन्ध को अन्यायपूर्ण बताया जिसके फलस्वरूप 4 जून 1993 को संघ पर से प्रतिबन्ध हटा लिया गया।  इसी वर्ष अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद् का गठन किया गया। 11 मार्च 1994 को रज्जू भैय्या संघ के चतुर्थ सरसंघचालक बने। इसी वर्ष अखिल भारतीय सेवा विभाग और लघु उद्योग भारती भी स्थापित हुए।

इस शृंखला में इतना ही, अगली शृंखला में चर्चा करेंगे संघ यात्रा के अगले दशक की...