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‘बेटी की पाठशाला’: महिलाओं को बना रही सशक्त और स्वावलंबी

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‘बेटी की पाठशाला’: महिलाओं को बना रही सशक्त और स्वावलंबी  

सामाजिक समरसता किसी भी राष्ट्र व समाज को सशक्त बनाने की एक मजबूत नींव है। जिसके तहत ही स्वस्थ समाज का निर्माण सम्भव है। विश्व पटल पर जिस किसी भी देश ने सामाजिक समरसता का अनुपालन किया है आज वह सुख समृद्धि से ओत-प्रोत है तथा विकास के मार्ग पर निरंतर अग्रसर है। भारतवर्ष की सनातनी सांस्कृतिक परम्परा में समरसता का स्थान बहुत महत्वपूर्ण रहा है। भारत ने विश्व स्तर पर अखण्डता में एकता संजोकर अपनी एक अद्भुत पहचान बनायी है। यहाँ हर राज्य की सभ्यता, पहनावा, रहन-सहन, बोली भाषा भिन्न-भिन्न है। इस देश में 122 विभिन्न भाषाएँ तथा 1599 उपभाषायें बोली जाती हैं। फिर भी यह देश एकता के सूत्र में पिरोया हुआ एक अद्भुत राष्ट्र है। इसे षड्यंत्रकारी आक्रांताओं ने कई बार विखंडिंत करने का प्रयास किया लेकिन यह देश हर बार उठ खड़ा हुआ।

पिछले कई दशकों से विश्व स्तर पर अशान्ति देखने को मिल रही है। कई देश आतंक और युद्ध के दंश की चपेट में हैं। समाज में अस्थिरता का वातावरण बहुत तेजी से फैला है। तकनीकी होड़ में जीवन के उपयोगी मूल्यों का दोहन हो रहा है। जीवन जीने के लिए उपयोगी हवा, पानी आदि की गुणवत्ता का मानक स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है। आज आतंक, युद्ध तथा सामाजिक विखण्डता का प्रभाव भारतवर्ष में भी दिखने लगा है। जिस वजह से देश की समरसता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा दिखाई दे रहा है। देश में बढ़ती गरीबी, बेरोजगारी तथा सामाजिक अशान्ति गम्भीर समस्या बनकर उभर रही है जो की आर्थिक व्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। सरकारें भिन्न-भिन्न योजनाओं की मदद से देश की अर्थव्यवस्था, सामाजिक भेदभाव तथा धार्मिक उन्माद के उन्मूलन के लिए प्रयासरत हैं। भारत के कई शुभचिन्तक, विचारक, लेखक, सामाजिक शिल्पकार अलग-अलग माध्यमों से जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। कुछ कर्मवीर अपने निजी प्रयासों से अपने नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए इस दिशा में काम कर रहे हैं। ऐसा ही एक पहल अनुज भाटी जी की है जो कि खुले आसमान के नीचे दिल्ली की सड़कों के किनारे बच्चों को शिक्षित करने के लिए निःशुल्क पाठशाला चला रहे हैं। वह गरीब बेसहारा बेटियों को शिक्षित तथा सशक्त बनाने के लिए निःशुल्क किताब, कॉपी, पेन के साथ भोजन की भी व्यवस्था कराते हैं। इनकी पाठशाला आईआईटी दिल्ली की सड़कों के पास, दिल्ली के मशहूर कालकाजी मंदिर के पास, कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर के पास तथा लाजपत नगर के फ्लाइओवर के पास लगती हैं। 2016 में इन्होंने अपने प्रयास को एक एनजीओ का रूप दिया जहाँ लगभग 200 से भी अधिक बच्चे शिक्षा, गीत - संगीत, खेलकूद तथा नाना प्रकार की प्रगतिशील गतिविधियों में शामिल होकर सशक्त व स्वावलंबी बन रहे हैं। अनुज भाटी जी के सकारात्मक प्रयास से आज कई घरों की बेटियाँ आत्मनिर्भर होकर समाज में अपना योगदान भी दे रही हैं।

अनुज भाटी जी गढ़गंगा गाँव चकनवाला अमरोहा उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। उनके पिता एक किसान हैं तथा उनका निजी जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा है। उन्होंने स्नातक तक की शिक्षा स्वयं के खर्चे पर मजदूरी कर पूर्ण की। वर्ष 2012 में दिल्ली में आकर उन्होंने कर्ज लेकर एमबीए की डिग्री पूरी की और कुछ वर्षों तक बैंकिंग सेक्टर में कार्य भी किया। गरीबी के संघर्ष के दौरान उन्होंने कई ऐसी घटनाएँ देखी जहाँ बेटियों पर हो रहे अत्याचार की घटनाओं ने उनको झकझोर दिया। वह एक वाक्या तो अपने ही घर का ही बताते हैं जहाँ उनके पिता को अपनी बेटी की शादी के लिए अस्सी हजार रुपये कर्ज लेने पड़े और कहतें हुए उनका गला रुँध जाता है कि उनके पिता ने वह कर्ज बहुत मुश्किल से चुकाया। कई वर्षों तक वह संघ से जुड़े रहे और वहीं से उन्होंने सेवा भाव का गुण सीखा। देश और समाज के लिए संघ कार्यकर्ताओं के समर्पण भाव को देख कर उनमें समाज की कुरीतियों से लड़ने की हिम्मत जागी और इसी से प्रेरणा लेकर उन्होंने बेटियों को सड़को के किनारे निःशुल्क शिक्षा देना शुरू कर दिया। अपने रोज के काम से समय निकालकर गरीब बेसहारा बेटियों को स्वावलंबी बनाने के जुनून ने भाटी जी को पूर्ण रूप से समाज सेवा के भाव से ओत-प्रोत कर दिया और वह अपनी नौकरी छोड़ कर अपना पूरा समय समाज सेवा में देने लगे। आज दिल्ली एनसीआर के कई क्षेत्रों में उनकी 30-30 सदस्यों की कई टोली बनी हुई है जिसमे हर टोली के 6 से 7 लोग बिना किसी लाभ के सक्रियता से काम कर रहे हैं। वर्तमान में वे कई शैक्षिक संस्थानों से जुड़ कर बेटियों तथा महिलाओं को उनके दायित्व व अधिकारों के प्रति जागरूक करने का काम कर रहे हैं। उन्होंने बेटी रक्षक एक संगठन भी बनाया हुआ है जिसमें अभी तक लगभग 25000 से भी अधिक स्वयंसेवक जुड़े हुए हैं। अब तक वह लगभग 50 से अधिक बालिका विद्यालयों का दौरा कर चुके हैं। बेटी रक्षक संगठन के तहत  वह हर स्कूल में बेटियों व अन्य लोगों को शपथ दिलाने का कार्य भी करते हैं कि ”न अपराध करेंगे न ही अपराध होने देंगे“ वह इन सभी स्कूलों में बेटियों को सरकार द्वारा दी गई योजनाओं और उनकी सुरक्षा में किए जाने वाले रक्षा संबंधी कार्यों की जानकारियों से भी अवगत कराते हैं ताकि महिलायें तथा बेटियाँ उसका सही उपयोग कर सकें। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वह आईआईएमसी के साथ मिलकर कई योजनाओं का क्रियान्वयन कर रहे हैं। इसी क्रम में वह हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर समाज के लिए योगदान देने वाली महिलाओं को सम्मानित करने का भी काम करते हैं। अनुज भाटी जी का मानना है कि हर बच्चे को शिक्षा लेने का पूर्ण अधिकार है तथा देश में शैक्षिक तथा लैंगिक भेद को पूर्णरूप से समाप्त करना अति आवश्यक है, इसलिए अपने नागरिक कर्तव्य का अनुपालन करते हुए वह गरीब बेसहरा बच्चियों को शिक्षा का उपहार देने का पूर्ण प्रयास कर रहे है। 

बेटी की पाठशाला नाम से पंजीकृत यह एनजीओ बेटियों की स्वच्छता का भी ध्यान रखते हुए उन्हें मुफ्त सैनिटरी पैड का भी वितरण करती है। साथ ही यह बेटियों को सम्मान दिलाने के उद्देश्य से कन्या पूजन जैसे कार्यक्रमों का भी आयोजन करवाते हैं। इसके अलावा इनका एनजीओ उपयुक्त वर तलाश कर बेटियों का सामूहिक विवाह का आयोजन भी करवाता हैं। यह एनजीओ गरीब बच्चों की आवश्यकता अनुसार औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार से खुले स्थान पर अपनी पाठशाला चलाती है जिसकी वजह से अधिक से अधिक गरीब बच्चे इसका लाभ उठा पा रहे हैं। साथ ही मदद करने वाले लोग भी इन तक सुगमता से पहुँच कर अपना योगदान दे पा रहे हैं। इस एनजीओ के साथ अपनी स्वेच्छा से काम करने वाले स्वयंसेवक अपने निजी कार्यक्रम से समय निकालकर इस संस्थान को अपना योगदान दे रहे हैं। इन सभी प्रयासों का मूल उद्देश्य देश में एकता, भाईचारा और सदभाव कायम कर लोगों में समरसता का भाव पैदा करना तथा भारत को प्रगति के मार्ग पर प्रशस्त करना एवं देश की बेटियों को सफलता की उचाईयों तक पहुँचाना है।