"हिन्दू साम्राज्य दिवस" वीरता, नीति और स्व का उत्सव...
एक ऐसा राजा.... जिसके सिर पर धर्म की छत्रछाया हो.. जो राजा होने का अर्थ समझता हो, जिसका लक्ष्य हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना हो... जो आक्रांता मुक्त भारत बनाने का हठ लिए बैठा हो... ऐसे ही व्यक्तित्व का नाम है- छत्रपति शिवाजी महाराज।
16वीं सदी में अरब सागर के पास छोटे से भाग में मराठा रहते थे... लगभग सम्पूर्ण भारतवर्ष में मुस्लिम आक्रांता अपना अधिकार जमाए बैठे थे। इनके दुष्टतापूर्ण शासन अन्याय और शोषण का काला इतिहास है, यह जो चाहें, वही करते थे। स्त्रियों के सम्मान का हनन, हत्याएं, हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन, उनके मंदिरों का विध्वंस, गायों का वध — ऐसे घिनौने अत्याचार सामान्य घटनाएं बन गई थीं।
खुलेआम जीजाबाई के पिता, उनके भाइयों और पुत्रों की हत्या कर दी गयी थी। हिंदू सम्मानजनक जीवन नहीं जी सकते थे। इन घटनाओं से त्रस्त काल में छत्रपति शिवाजी महाराज का उदय हुआ, माता जीजाबाई ने उन्हें राष्ट्र को आततायियों से मुक्त करने एवं धर्म संरक्षक के रूप में विकसित किया। आतताईयों के घृणित कार्यों ने बालक शिवा के भीतर धर्मसम्मत क्रोध जगा दिया। विद्रोह की प्रबल भावना ने उनके मन को पूरी तरह घेर लिया। तरुणावस्था से ही उन्होंने लोगों को संगठित कर रणनीति बनानी शुरू कर दी। उन्होंने मन ही मन सोचा, 'जिसके हाथ में शस्त्र की शक्ति है, उसे कोई भय नहीं होता, कोई कठिनाई नहीं आती।
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ, उनका ध्येय स्पष्ट था हिंदू समाज की रक्षा करना। मुगल आक्रांताओं को परास्त करने के साथ-साथ.. उन्होंने अपने राज्य में अनेक परिवर्तन किये जिनमें से एक था विदेशी भाषा का उन्मूलन और स्वबोध से युक्त निज भाषा की स्थापना। इसके लिए उन्होंने न केवल फारसी और उर्दू के शब्दों को हटाकर संस्कृत भाषा को पुनर्स्थापित किया, अपितु उन्हें अपनी प्रतिदिन की कार्यशैली में भी अपनाया। यह एक महत्वपूर्ण परिवर्तन था — स्वराज्य को अपनी भाषा और अपने धर्म के साथ प्राप्त करने की दिशा में।
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