‘पंच परिवर्तन’ से समाज और राष्ट्र का निर्माण
लेखिका- नीता त्रिपाठी, स्वतंत्र पत्रकार
आज जब पूरी दुनिया भारतवर्ष की ओर आशा भरी नजरों से देख रही है तो हमारा भी यह दायित्व बनता है कि हम दुनिया की उम्मीदों, आशाओं को पूरा करें।देश के उत्थान के लिए चलने वाली लगभग सभी प्रकार की गतिविधियों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना महत्वपूर्ण योगदान देता आ रहा है। इस लंबे कालखंड में अनेक महापुरुष अवतीर्ण हुए उनके कृतित्व से समाज जागा, समाज में एकात्मकता, देशभक्ति, समर्पण, आत्मविश्वास, अनुशासन तथा राष्ट्रीय एवं मानवीय गुणों का निर्माण हुआ।विगत वर्षों में संघ कार्य का बहुआयामी विस्तार हुआ है। पूर्व में संघ के भूतपूर्व सरसंघचालकों एवं वर्तमान सरसंचालक के मानस का प्रतिफल यह है कि आज भारतवर्ष में बहुआयामी सकारात्मक परिवर्तन के अनेक प्रयोग प्रारंभ हुए हैं। उनके द्वारा किए गए अभूतपूर्व कार्य, अनेक घटनाएं, प्रयत्न, नव प्रयोग की जानकारी आज की पीढ़ी के लिए दिशा बोधक और प्रेरणादायी सिद्ध हो रहा है। यह वर्ष संघ का शताब्दी वर्ष चल रहा है परिणाम स्वरुप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने राष्ट्र के अस्तित्व, अस्मिता तथा अखंडता के लिए राष्ट्र के जन-जन में व्यक्तिशः समूहशः और संस्थागत अनेक माध्यमों से ‘पंच परिवर्तन’ के विषयों को लेकर समाज के मध्य सामाजिक जागरण, राष्ट्रीय विकास हेतु चर्चा कर रहा है। संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जी के दर्शन में ‘पंच परिवर्तन’ की भावना परिलक्षित होती है। उनका मानना था कि राष्ट्र के नवसृजन, नव संगठन, नवरचना में ‘पंच परिवर्तन’ का संदेश जितना कल प्रासंगिक था, उतना आज प्रबल है, और भविष्य में भी उत्तरोत्तर प्रभावकारी एवं प्रासंगिक होता जाएगा। डॉक्टर हेडगेवार के कार्यशैली के इतिहास में उनकी सोच एवं योजनाओं में पारिवारिक रचना, वंश, सामाजिक व आर्थिक दर्शन के रोचक एवं दिल दहलाने वाले प्रसंग देखने को मिलता है ।
व्यक्तिगत आचरण, सामाजिक समरसता, समाजिक चेतना, शिक्षा-संस्कार सेवा-भाव अर्थ-आयाम जैसे विशिष्ट प्रश्नों पर डॉक्टर हेडगेवार का स्पष्ट एवं प्रगतिशील मत था।समाज में सकारात्मक परिवर्तन को गति देने के उद्देश्य से तथा भारत को विकसित बनाने की दिशा में ‘स्व’ का बोध अर्थात् स्वदेशी योजनाएं एवं कंपनियां, आर्थिक विकास व विश्व अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभा रही है। ‘स्व’ अर्थात स्वदेशी भावना को गति देते हुए संघ के द्वितीय सरसंघचालक गोलवरकर जी का मत था कि ‘देश की जनता यदि आर्थिक संग्राम में देश को विजयी होना देखना चाहती है तो स्वदेशी वस्तु का अंगीकार करें।’ उद्योग, सहकारिता, कृषि, स्वदेशी आदि से राजनीतिक व सामाजिक जीवन के क्षेत्र में राष्ट्रीय प्रगति के अनुरूप संरचनाओं की राष्ट्रसंगत एवं व्यवहारिक रूपरेखा तैयार कर अपने कार्यशैली को दिशा दी जाए । इसके लिए श्री गुरु जी ने कतिपय विवेकी तथा दूर दृष्टा स्वयंसेवकों को विभिन्न क्षेत्रों में काम करने के लिए न केवल प्रोत्साहित किया अपितु सतत मार्गदर्शन भी किया। अनेकानेक स्वयंसेवक को जिसमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय, दत्तोपंतं ठेगड़ी, लक्ष्मण राव ईमानदार जैसे चिंतकों के अभूत पूर्व कार्य से हम सभी परिचित हैं। पंडित दीनदयाल जी आग्रह पूर्वक कहते थे कि ‘भारत के ‘स्व’ को जानना होगा, ‘स्व’ को जगाना होगा, ‘स्व’ को गौरवान्वित करना होगा। एवं ‘स्व’ को ही प्रतिष्ठित करना होगा। अर्थात भारत को हमें भारत की दृष्टि से देखना होगा।’
वर्तमान समय में इसी विचारधारा को अपना कर हम आत्मनिर्भर भारत बनने की कल्पना कर सकते हैं ।आज समाज जब दिशाहीन हो रहा है तो समाज की दिशा व दशा में परिवर्तन हेतु संघ सामाजिक समरसता, एवं एकजुटता को बढ़ावा देने का कुशल प्रयास कर रहा है। संघ के अतुलनीय सरसंघचालक बालासाहेब देवरस ने अपनी व्याख्यान में कहा कि ‘छुआछूत अपने समाज की विषमता का एक अत्यंत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण पहलू है’। समाज में बंधुत्व एवं सामाजिक एकजुटता का भाव जगाना बहुत जरूरी है हमें अपने वंचित, पीड़ित, शोषित, दुर्बल समाज से जुड़कर कार्य करने की आवश्यकता है। हिंदुत्व चिंतन में सेवा ही समर्पण है सेवा समाज का स्वभाव बनें जिससे समाज में समरसता का विकास हो। यही विचारधारा आज की सामाजिक आवश्यकता है। सामाजिक समरसता को लेकर सरसंघचालक सुदर्शन जी की प्रतिबद्धता जग जाहिर है उन्होंने ने ही भारतीय या स्वदेशी चर्च की अवधारणा प्रस्तुत की उनके कार्यकाल में ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ की स्थापना हुई राष्ट्र के उत्थान में संघ की यात्रा अविस्मरणीय रही है। सरसंघचालकों की श्रेणी में अनुकरणीय सरसंघचालक राजेंद्र सिंह तोमर उर्फ ‘रज्जू भैया’ भी ‘स्वदेशी’ व ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि गांव को भूख मुक्त, रोग मुक्त, बनाना है तो ‘शिक्षा’ को सर्वाेच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उनके द्वारा किए गए नवाचार प्रयोग का अनुकरण आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में किया जा रहा है। जिन गांवों में देश की सबसे ज्यादा आबादी बसती है।
अपने शताब्दी वर्षों की यात्रा में संघ राजनीतिक क्षेत्र से दूर रहकर राष्ट्र निर्माण, राष्ट्र उत्थान, व्यक्ति निर्माण, व समाज के उत्थान हेतु सतत कार्य कर रहा है। संघ के वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने अपनी व्याख्यान में कहां है कि ‘आज हमारा भारतीय समाज जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है उसमें पंच परिवर्तन के आधार पर उन प्रश्नों का समाधान किया जा सकता है’। आज हमारे समाज में मूल्य आधारित, संस्कारवान और सामूहिक भोजन व भजन करने वाले परिवार व कुटुंब की नितांत आवश्यकता है। इसके लिए परिवार नामक इकाई सुदृढ़ होना चाहिए। एक भी बीज बचा रहा तो पुनर्निर्माण हो जाएगा। इस प्रकार संघ भारत की बात, भारत के तरीके से एवं भारतीय दृष्टिकोण को केंद्र में रखकर कार्य करता आया है और आज भी कर रहा है भविष्य में करने की योजना भी है अपनी प्राचीन संस्कृति एवं समृद्धि परंपराओं को बचाने में संघ अपने दायित्वों का निर्वाह प्रभावी रूप से करनी हेतु कृत संकल्पित है।