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बहू बनी श्रवण कुमार, सास को कंधे पर लेकर निकली हरिद्वार से हापुड़

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हरिद्वार,उत्तराखण्ड

जब भी हम श्रवण कुमार का नाम सुनते है तो हमारी आंखों के सामने एक ऐसे बेटे की तस्वीर उभरती है जो अपने माता-पिता को कांवड़ पर बिठाकर तीर्थयात्रा पर ले जाता है। लेकिन आज के दौर में केवल बेटे ही नहीं, बहुएं भी श्रवण कुमार जैसी भूमिका निभा रही हैं। बदलते समय में जब पारिवारिक रिश्तों में दूरियां बढ़ती जा रही हैं, ऐसे में उत्तर प्रदेश की एक बहू ने ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है जो समाज के लिए प्रेरणा बन गया है। बताते चलें की 11 जुलाई से शुरू हो रहे कांवड़ मेले की तैयारियां जोरों पर हैं। लेकिन मेले की भीड़ और भक्ति के बीच जो दृश्य सबसे अधिक दिल छू रहा है, वो है एक बहू द्वारा अपनी सास को कांवड़ यात्रा कराना। हापुड़ की रहने वाली आरती नाम की महिला अपने दो बेटियों और भतीजे के साथ हरिद्वार पहुंची हैं। आरती ने हर की पौड़ी से गंगाजल भरकर अपनी बुजुर्ग सास पुष्पा देवी को पालकी पर बैठाया और अब वह हरिद्वार से हापुड़ तक पैदल यात्रा कर रही हैं। आरती का कहना है कि शिव की कृपा से ही उन्हें यह नेक विचार आया। उन्होंने कहा कि जैसे लोग अपने माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते हैं, वैसे ही मैंने सोचा कि मेरी सास का भी यह सपना है, तो क्यों न उन्हें भी ये यात्रा करवाई जाए। आरती के इस कदम ने यह सिद्ध कर दिया है कि सेवा और श्रद्धा का रिश्ता केवल खून का नहीं होता, बल्कि स्नेह और समर्पण से भी जुड़ा होता है। वहीं आरती की सास पुष्पा देवी अपनी बहू और पोतियों से बेहद खुश हैं। उनका कहना है कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि बहू उन्हें इस तरह कांवड़ यात्रा कराएगी। उन्होंने पहले मना किया था, क्योंकि उन्हें लगा यह सब बहुत कठिन है, लेकिन आरती ने यह कर दिखाया। आज की बहुएं केवल घर की जिम्मेदारी ही नहीं संभाल रही हैं, बल्कि धार्मिक आस्था और सेवा भाव में भी पुरुषों से कहीं पीछे नहीं हैं। आरती जैसी महिलाएं हमें यह सिखाती हैं कि श्रवण कुमार सिर्फ बेटा ही नहीं, एक बहू भी बन सकती है – जो प्यार, सेवा और समर्पण से अपने ससुराल को भी मायके जैसा बना देती है। सावन मास में की गई ऐसी भक्ति और सेवा न केवल भोलेनाथ को प्रसन्न करती है, बल्कि पूरे समाज को भी एक नई दिशा देती है।