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गोपाल निकला तजम्मुल, जबरदस्त हुआ बवाल!

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मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश 

कांवड़ यात्रा जैसे धार्मिक अवसर पर जब पूरा देश भक्ति और श्रद्धा में डूबा होता है, तब कुछ राष्ट्रविरोधी कट्टरपंथी लोग समाज में विष घोलने का काम करते हैं। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक ढाबे पर हुई पहचान जांच के दौरान सामने आया मामला न केवल चौंकाने वाला है, अपितु यह एक बड़ी मानसिकता और षड़यंत्र की ओर इशारा करता है। यहाँ मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों द्वारा हिंदू नामों का उपयोग कर धार्मिक भावनाओं से खेलने की प्रवृत्ति सामने आई है।


दरअसल, 28 जून को दिल्ली-देहरादून हाईवे-58 स्थित ‘पंडित जी वैष्णो ढाबा’ पर हिंदू संगठनों द्वारा चलाए जा रहे ‘पहचान अभियान’ के तहत हिन्दू संगठन के लोग वहां पहुंचें । वहां एक कर्मचारी ने अपना नाम 'गोपाल' बताया, लेकिन आधार कार्ड से खुलासा हुआ कि उसका असली नाम 'तजम्मुल' है और वह मुस्लिम है। तजम्मुल के गांव बझेरी के लोगों ने भी पुष्टि की कि वह मुस्लिम है। इतना ही नहीं, उसने खुद मीडिया को बताया कि ढाबा मालिक सनाव्वर ने जबरन उसका नाम 'गोपाल' रखा था और उसे कड़ा पहनाया गया। यह अकेला मामला नहीं है। अक्सर ऐसे कांड सामने आते हैं जहाँ मुस्लिम व्यक्ति हिंदू नामों का उपयोग करके ढाबा, होटल या व्यापार चलाते हैं। प्रश्न उठता है— आखिर क्यों? व्यापार में पहचान छिपाने की भला क्या मजबूरी है ? क्या यह ग्राहकों की धार्मिक भावनाओं को भुनाने की कोशिश है? क्या यह “हलाल एजेंडे” के समान कोई खामोश घुसपैठ है, जो जनता की आँखों से ओझल है? या फिर यह किसी बड़े धार्मिक छद्म युद्ध का हिस्सा है, जहाँ पहचान बदलकर हिन्दू आस्था क्षेत्रों में पहुँच बनाई जा रही है? यह प्रवृत्ति केवल आर्थिक लाभ के लिए नहीं, अपितु हिंदू धर्म और आस्था स्थलों की पवित्रता को दूषित करने की सोची-समझी षड्यंत्र प्रतीत होती है। इस पूरे घटनाक्रम के बीच एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी रहा कि मुस्लिम समाज के भीतर भी इसकी निंदा हुई। जमीयत हिमायतुल इस्लाम के राष्ट्रीय अध्यक्ष कारी अबरार जमाल ने स्पष्ट शब्दों में कहा— “इस्लाम में अपनी पहचान छिपाना हराम है। मुसलमानों को अपने असली नाम और मत के साथ व्यापार करना चाहिए। ऐसा करना किरदार की कमजोरी और ईमानदारी की कमी दर्शाता है।”  कारी अबरार ने यहां तक कहा कि हिंदू नाम से व्यापार करने वाले मुस्लिमों को शर्म आनी चाहिए और सनातनी भाइयों से ऐसे लोगों की पहचान कर कार्रवाई की अपील की। आखिर व्यापार में पहचान क्यों छुपा रहे हैं मुसलमान? क्या ये मजबूरी है या मंशा? कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि मुस्लिम व्यापारी हिंदू बहुल इलाकों में अपना व्यवसाय बचाने के लिए ऐसा करते हैं। लेकिन प्रश्न यह है कि यदि कोई व्यापार ईमानदारी और सेवा के बल पर हो, तो नाम क्यों बदलना पड़े? अगर नाम छुपाना मजबूरी है, तो वह मजबूरी किसने पैदा की? और अगर यह मजबूरी नहीं अपितु रणनीति है, तो फिर यह सांस्कृतिक छल है। इस पूरे घटनाक्रम में यह भी सामने आया कि ढाबा मालिक खुद मुस्लिम था, जिसने अपने कर्मचारी को ‘गोपाल’ बनाकर कांवड़ मार्ग पर काम कराया। क्या यह व्यवस्थित योजनाबद्ध प्रयास नहीं है? ‘गोपाल’ निकला ‘तजम्मुल’— यह कोई साधारण धोखा नहीं, अपितु हमारी आस्था पर हमला है। जब व्यापार की आड़ में झूठी पहचान, धर्म छुपाने की प्रवृत्ति और मानसिक छल की घटनाएं सामने आती हैं, तो समाज को सतर्क होना ही होगा।