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मां अन्नपूर्णा के दरबार में दक्षिण भारतीय कलाकारों की संगीत साधना

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- पंचवाद्य की प्रस्तुति से मोहा मन, लगे जयकारे 

- दक्षिणमय में हो गई काशी, मंत्रमुग्ध हुए भक्त 

वाराणसी। मां अन्नपूर्णा के दरबार में मंगलवार को संगीत की दिव्यता का एक अनोखा नजारा देखने को मिला। केरल से आए 15 सदस्यीय कलाकारों के दल ने पंचवाद्य की मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति दी। कलाकारों ने शंख, घंटा, ढोल और नगाड़ों जैसे वाद्य यंत्रों पर अपनी कला का प्रदर्शन किया, जिससे मंदिर परिसर में उपस्थित श्रद्धालु भावविभोर हो गए।

मां अन्नपूर्णा के दरबार में अनोखी साधना

केरल से आए इन कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से न केवल मां अन्नपूर्णा के भक्तों को बल्कि पूरे मंदिर परिसर को भी संगीतमय बना दिया। दक्षिण भारतीय संगीत और वाद्य यंत्रों की प्रस्तुति को देखकर श्रद्धालुओं ने इसे संगीत और साधना का दुर्लभ संगम बताया।

काशी: साधना का केंद्र

यह दल पहले काशी विश्वनाथ धाम में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुका है। बाबा विश्वनाथ के दरबार में मिली सफलता के बाद इन कलाकारों ने मां अन्नपूर्णा के चरणों में अपनी संगीत साधना का प्रदर्शन किया। काशी, जिसे महादेव की नगरी कहा जाता है,। कार्यक्रम में कलाकारों ने अपने प्रदर्शन को नटराज की साधना का प्रतीक बताया। मान्यता है कि इस धरती पर की गई साधना साधक को विशेष ऊर्जा और आशीर्वाद प्रदान करती है।

वाद्य यंत्रों की दिव्यता

इस प्रस्तुति में पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग किया गया। शंख, घंटा, ढोल, और नगाड़े जैसे यंत्रों से निकली ध्वनियां माहौल को अलौकिक बना रही थीं। इन यंत्रों की ध्वनि ने मंदिर परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को एक अनोखा आध्यात्मिक अनुभव दिया।

कलाकारों की साधना को नई दिशा

मां अन्नपूर्णा के दरबार में इस प्रस्तुति के बाद कलाकारों की साधना को एक नई ऊंचाई मिली है। दल के सदस्य इसे अपने जीवन का अनमोल अनुभव मानते हैं। उन्होंने कहा कि काशी की पवित्र धरती पर प्रदर्शन करना उनके लिए एक साधना का हिस्सा है।

भक्तों की प्रतिक्रिया

मंदिर में उपस्थित श्रद्धालु इस अनोखी प्रस्तुति से बेहद प्रभावित दिखे। उन्होंने इसे एक दिव्य अनुभव बताया और कलाकारों के इस प्रयास की सराहना की।

दक्षिण भारतीय कलाकारों द्वारा मां अन्नपूर्णा के दरबार में पंचवाद्य की प्रस्तुति ने काशी के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को और समृद्ध किया है। यह प्रदर्शन न केवल कला और संगीत का उत्सव था बल्कि इसे एक साधना के रूप में भी देखा गया।