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सतत् विकास लक्ष्यों की प्रगति: भारत की रैंकिंग में बढ़ोतरी

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सतत् विकास लक्ष्यों की प्रगति: भारत की रैंकिंग में बढ़ोतरी 

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद के तहत पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय न्यूयार्क में 14 से 23 जुलाई, 2025 के बीच आयोजित हुई उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (एचएलपीएफ) के विकास एजेंडा और 17 सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) 2030 की प्रगति को लेकर बैठक में जारी दसवीं रिपोर्ट में पाया गया कि सतत् विकास 2030 अपनाने से वैश्विक स्तर पर लाखों लोगों के जीवन में सुधार आया है लेकिन चिंता की बात है कि अभी भी बहुत से देश इन लक्ष्यों को पाने में बहुत दूर हैं। सिर्फ 5 साल बचे हैं और वैश्विक प्रगति पटरी पर नहीं है। विश्व के अधिकतर देश लक्ष्यों की प्रगति में काफी दूर हैं।

इस बार 2025 के उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच की थीम थी कि 2030 एजेंडा और सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए टिकाऊ, समावेशी, विज्ञान आधारित और साक्ष्य आधारित समाधानों को आगे बढ़ाना है ताकि कोई पीछे न छूट जाए।

विश्व रैंकिंग में 100 देशों की श्रेणी में भारत: भारत की उपलब्घि की बात करें तो कुल 193 देशों में इन 17 सतत् विकास लक्ष्यों को पाने में भारत ने निर्धारित अधिकतम 100 अंकों में 66.95 अंक प्राप्त कर 99वां स्थान पाया है। पिछले साल 2024 में एसडीसी लक्ष्यों की प्रगति में भारत 109वें और 2023 में 112वें स्थान पर था। सतत् विकास लक्ष्यों को पाने में इस साल भारत ने महत्वपूर्ण प्रगति करते हुए विश्व रैंकिंग में 100 देशों की श्रेणी में स्थान बनाया है। हालांकि भारत को 2030 तक सभी लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अभी काफी प्रयास करने होंगे। क्योंकि कई क्षेत्रों में भारत पिछड़ा हुआ है। भारत के पड़ौसी देश बंगलादेश (114वें) और पाकिस्तान (140वें) स्थान को छोड़ दिया जाए तो चीन 49वें, भूटान 74वें, नेपाल 85वें स्थान पर एसडीजी लक्ष्यों को पाने में भारत से आगे हैं। यही नहीं लक्ष्यों की प्रगति में समुद्री पड़ौसी देश मालदीप 53वें और श्रीलंका 93वें स्थान के साथ भारत से आगे चल रहा है। 

संयुक्त राष्ट्र का उच्च स्तरीय राजनैतिक फोरम (एचएलपीएफ) हर साल न्यूयार्क में आयोजित होता है, जिसमें सदस्य देशों के सतत विकास लक्ष्यों की प्रगति पर समीक्षा की जाती है। गत 14 से 23 जुलाई के बीच संपन्न 10 दिवसीय सम्मेलन के पहले दिन जारी दसवीं रिपोर्ट दर्शाती है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा और डिजिटल कनेक्टिविटी में विश्व स्तर पर प्रगति से लाखों लोगों के जीवन में सुधार तो आया है लेकिन 2030 तक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रगति धीमी चल रही है। संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि अभी केवल 35 प्रतिशत लक्ष्य ही ठीक रास्ते पर चल रहे हैं और 31 प्रतिशत लक्ष्योें में मामूली प्रगति है। जबकि 17 प्रतिशत में ठहराव आया हुआ है और 18 प्रतिशत लक्ष्य की अपेक्षा बहुत पीछे चल रहे हैं। एसडीसी संकल्प के 10 साल बाद एजेंडा 2030 को कई नई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। विकासशील देशों में विकास के लिए चार हजार अरब डालर की कमी है। भूराजनैतिक तनाव के कारण भी बहुपक्षवाद पर आधारित व्यवस्थाएं ढीली पड़ रही हैं। 

स्थिति यह है कि 2025 की सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) रिपोर्ट में किसी भी देश ने अपने सतत् विकास लक्ष्यों में शत प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त करने में अभी तक सफलता नहीं पायी है। तमाम विकसित देश भी 10 साल के बाद भी एसडीसी लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाए हैं। हालांकि 87.02 प्रतिशत अंक प्राप्त कर फिनलैंड सतत् विकास लक्ष्य पाने में सबसे ऊपर है। इसके बाद क्रमशः स्वीडन, डेनमार्क, जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, क्रोएशिया, पोलैंड और चेकिया प्रथम दस स्थान में हैं। 

सतत विकास लक्ष्यों के संकल्प के इतिहास में जाएं तो अब से दस वर्ष पहले 25 सितंबर 2015 को न्यूयार्क में संपन्न संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में पूरी दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने विश्वस्तर पर आर्थिक सामाजिक और पर्यावरणीय विकास के विभिन्न आयामों को संतुलित करने के प्रयास को लेकर 17 वैश्विक लक्ष्य और इनसे जुड़े 169 विशिष्ट लक्ष्यों को अपनाया था। इन 17 लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन, शून्य भूख, अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, लैंगिक समानता, स्वच्छ जल और स्वच्छता, सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा, अच्छा काम और आर्थिक विकास, उद्योग नवाचार और बुनियादी ढांचे, असमानताओं में कमी, टिकाऊ शहर और समुदाय, जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन, जलवायु कार्रवाई, पानी के नीचे जीवन, जमीन पर जीवन, शांति न्याय और मजबूत संस्थाएं और साझेदारियां शामिल हैं। साथ ही इन लक्ष्यों को 1 जनवरी 2016 से 2030 तक 15 वर्षाे में पूरा करने के लिए सभी देशों ने प्रतिबद्धता भी जतायी थी। तब से इन 17 लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रत्येक देश की प्रगति के तौर पर प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट जारी की जाती है। ताकि यह मालूम हो कि किस देश ने अभी तक कितने लक्ष्यों को पूरा किया है। लेकिन चिंता की बात है कि अभी सिर्फ पॉंच वर्ष रह गए हैं और काफी देश लक्ष्यों को पाने में किए गए संकल्प से काफी पीछे हैं। 

चुनौतियों के बाबजूद लक्ष्यों में प्रगति: विश्व में काफी उथल-पुथल है। एक तरफ रूस और यूक्रेन युद्ध चल रहा है तो दूसरी तरफ मिडिल ईस्ट में इजरायल और गाजा के अलावा ईरान, सीरिया आदि में युद्ध जैसी वैश्विक चुनौतियों के बावजूद कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। जैसे एचआईवी संक्रमण में लगभग 40 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। मलेरिया की रोकथाम से 2.2 बिलियन मामलों को रोका गया, जिससे 12.7 मिलियन लोगों की जान बच पाई। अब 110 मिलियन से अधिक बच्चे और युवा स्कूल में प्रवेश ले चुके हैं। जबकि विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या तक सामाजिक सुरक्षा पहुंच गई है। यही नहीं विश्व की 92 प्रतिशत आबादी तक 2023 से अब बिजली पहुंच गई है। 2015 में 40 प्रतिशत लोग इंटरनेट का उपयोग करते थे जो 2024 में 68 प्रतिशत तक हो गया है 

सतत् विकास लक्ष्यों पर जारी वर्तमान रिर्पाेट कई चुनौतियों की ओर भी ध्यान इंगित करती है। इनमें 800 मिलियन से अधिक लोग अभी भी गरीबी में गुजर बसर कर रहे हैं। विश्व के करोड़ों लोगों को सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिली हैं। जलवायु परिवर्तन का भी काफी प्रभाव है। 2024 विश्व का सबसे गर्म वर्ष रहा है, जिससे तापमान पूर्व औद्योगिक स्तर से 1.55 डिग्री सेंटीग्रेड अधिक हो रहा है। वैश्विक शरणार्थी आबादी भी बढ़ रही है। विश्व में 1.12 अरब लोग बुनियादी सेवाओं के बिना झुग्गी झोपड़ियों या अस्थाई बस्तियों में रहते हैं। 

इन क्षेत्रों में हुई प्रगति: लक्ष्यों में प्रगति की बात की जाए तो 2012 और 2024 के बीच 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में बौनापान 26.4 प्रतिशत से घटकर 23.2 प्रतिशत रह गया है। जीवन प्रत्याशा में 1.8 वर्ष की कमी तो वैश्विक मातृ मृत्यु दर 1 लाख जीवित जन्मों पर 228 से घटकर 197 हुई है। और 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में 16 प्रतिशत की कमी आई है। भेदभाव पूर्ण कानून को हटाने और लैंगिक समानता ढांचे को स्थापित करने में सकारात्मक कानूनी सुधार लागू हुए हैं। राष्ट्रीय सांसदों में महिलाओं का प्रतिशत भी बढ़ा है। नवीकरणीय ऊर्जा में तेजी से बढ़ोतरी से ऊर्जा स्रोत बढ़े है। वैश्विक जनसंख्या के 51 प्रतिशत तक मोबाइल ब्रॉडबैंड की पहुंच हुई है।

कई देशों ने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। 45 देशों ने सार्वभौमिक बिजली तक पहुंच बनाई और 54 देशों ने 2024 के अंत तक कम से कम एक रोग का उन्मूलन किया। लेकिन रिपोर्ट में बहुत सी चुनौतियां से निपटने और लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रगति लाने के लिए तत्काल बहुपक्षीय कार्रवाई और वित्तीय सुधार लाने का आह्वान किया गया है। क्योंकि अधिकतर लक्ष्य 40 से 42 प्रतिशत तक हुए हैं। 

दुनियाभर में संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और वित्तीय बाधाएं एसडीजी लक्ष्यों तक पहुंचने में मुख्य तौर पर बाधक हो रहीं हैं। फिर भी एसडीजी लक्ष्य विश्व में गरीबी, भुखमरी, असमानता, जलवायु परिर्वतन, पर्यावरण, शांति और न्याय के क्षेत्र में सबसे बड़ी वैश्विक चुनौतियों का समाधान कर रहे हैं। विश्व स्तर पर बहुपक्षीय सुधार, विकास के लिए वित्तीय संसाधनों को जुटाने के प्रयास और सरकारों के आपसी संघर्षाे को दूर करना होगा। इससे जो वित्त संघर्षाे में खर्च हो रहा है वह पर्यावरणीय चुनौतियों और सतत् विकास की योजनाओं में खर्च होने से कई लक्ष्यों को प्राप्त करने में आसानी होगी। 

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को अभी भी आशा है कि सतत् विकास लक्ष्य हमारी पहुंच में है लेकिन यह जब ही प्राप्त हो सकते हैं, जब हम तत्परता, एकता और अटूट संकल्प के साथ कार्य करेंगे। राजनैतिक इच्छाशक्ति और संसाधनों को सही दिशा दी जाए तो सतत् विकास लक्ष्यों को अब भी हासिल किया जा सकता है। विकास और शांति एक दूसरे से जुड़े मुद्दे हैं। टिकाऊ शांति के लिए टिकाऊ विकास जरूरी है। 

भारत हर वर्ष अपनी वैश्विक रैंकिंग में सुधार ला रहा है। गरीबी उन्मूलन में पिछले 10 वर्षों में 24 करोड़ से अधिक लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। सामाजिक सुरक्षा कवरेज दोगुनी हो गई है। स्वास्थ्य सेवाओं और स्वच्छ उर्जा सहित कई क्षेत्र में काफी प्रगति की है। लेकिन अभी भारत को अपने एसडीजी लक्ष्यों को पाने में तेजी लानी होगी। भारत की आबादी का असर ग्लोबल स्तर पर हो रहा है। भारत सरकार ने महिला सशक्तिकरण पर विशेष जोर दिया है। इसके कारण महिलाएं हर क्षेत्र में अग्रणी भी हो रही है। डिजिटाइजेशन और कनेक्टिविटी में भी भारत की काफी तरक्की है। सतत् विकास लक्ष्यों को जमीनी स्तर तक पहुँचाने में ‘समूची सरकार और पूरे समाज की भागेदारी’ भारत की सफलता की कुंजी रही है।