लव जिहाद: हिन्दू क्यों हार रहा नेरेटिव की लड़ाई
देश में चल रहे मुसलमानों के ”लव जिहाद“ को कर्नाटक के प्रमोद मुथालिक ने बीस साल पहले पहचान लिया था। यह 2005 की बात है जब कर्नाटक के हावेरी जिले के सावनूर में एक 65 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति ने एक 19 वर्षीय गरीब हिंदू लड़की का अपहरण कर लिया था। जब वह तीन महीने तक लापता रही, मुथालिक ने मामले की जांच की तो उन्हें पता चला था कि मुसलमान ‘जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल ‘धर्मयुद्ध’ के लिए करते हैं। ऐसे कई मामले थे और यह महसूस करते हुए कि यह एक ‘बड़ी साजिश’ थी। मुथालिक ने इसे वर्णित करने के लिए शुरू में कन्नड़ में षडयंत्र और चालाक रणनीति शब्दों का इस्तेमाल किया, लेकिन बाद में प्रमोद मुथालिक को एहसास हुआ कि यह जिहाद का एक रूप है, तब उन्होंने इसे ”लव जिहाद“ का नाम दिया।
पिछले बीस सालों में लव जिहाद के सैंकड़ों किस्से सामने आ चुके हैं। सोनाक्षी सिन्हा और स्वरा भास्कर ताजा उदाहरण हैं। दोनों ने स्पेशल मैरिज एक्ट में तथाकथित शादी की है, इसका मतलब है कि दोनों जोड़ों ने निकाह नहीं किया है। लेकिन इस्लाम में यह मान्य ही नहीं है। दर्जनों केस सामने आ चुके हैं, जिनमें बाद में मुस्लिम लडके और उसके घर वालों ने हिन्दू लड़की को धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाला। देखते हैं सोनाक्षी और स्वरा कितने दिन तक बची रहती हैं। मंसूर अली खान पटौदी से निकाह करने के लिए शर्मिला टैगोर को आयशा सुल्ताना बनना पड़ा था। उसका बेटा सैफ अली खान बना। चलिए सोनाक्षी और स्वरा भास्कर धर्म परिवर्तन न भी करे, तो भी उससे पैदा होने वाले बच्चे मुस्लिम बनेंगे, जैसे नसीरुद्दीन शाह से शादी करने वाली रत्ना पाठक के बच्चे इमाद शाह और विवान शाह बनें, सैफ अली खान से शादी करने वाली करीना कपूर के बच्चे तैमूर और जेह अली खान बने। सोनाक्षी सिन्हा तो फिलहाल शांति से वैवाहिक जिन्दगी जी रही है, लेकिन स्वरा भाष्कर पूरी तरह मुस्लिम रंग में रंग गई हैं। महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पैगंबर मोहम्मद के नाम पर वोट करने की अपील की थी। उनकी वह अपील इस बात का प्रमाण है कि लव जिहाद देश की एकता, देश के संविधान, लोकतंत्र और हिन्दू सांस्कृतिक विरासत के लिए कितना बड़ा खतरा है।
लेकिन अदालतें, सरकारें और वामपंथी विचारधारा के बुद्धिजीवी लव जिहाद को नकारते रहे हैं। 2020 में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री जी. कृष्ण रेड्डी ने भी संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि लव जिहाद का कोई भी केस दर्ज नहीं किया गया। स्वाभाविक है, जैसा कि यमुनानगर की अतिरिक्त स्तर न्यायाधीश रंजना अग्रवाल ने कहा कि किसी कानून में लव जिहाद के लिए कोई आपराधिक धारा नहीं है, तो लव जिहाद के केस कैसे दर्ज होंगे। यमुनानगर की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रंजना अग्रवाल ने उस झूठे नेरेटिव पर से पर्दा हटा दिया है कि ‘लव जिहाद’ नाम की कोई चीज नहीं है। यह किस्सा 14 साल की एक बच्ची का है, जिसका एक मुस्लिम लड़का रोज पीछा करता था और 35 साल का शाहबाज उस हिन्दू बच्ची पर उस मुस्लिम लड़के से संबंध बनाने का दबाव बना रहा था। अदालत ने शाहबाज को सात साल की सजा सुनाई है। अदालत ने माना कि ‘लव जिहाद’ भारतीय न्याय संहिता या पोक्सो एक्ट के तहत कोई कानूनी शब्द नहीं, लेकिन अदालत ने इसे मुस्लिम पुरुषों का गैर-मुस्लिम युवतियों को प्यार का नाटक करके इस्लाम में बदलने का एक अभियान बताया है। इसका मतलब है कि कुछ मुस्लिम मर्द प्यार का दिखावा करके हिन्दू लड़कियों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर करते हैं।
शुकर है यमुनानगर के केस में लडकी नाबालिग थी, इसलिए पोक्सो एक्ट में उसे सजा हो गई। वरना केरल का 2016 का अखिला अशोकन उर्फ हादिया केस याद कीजिए, सुप्रीमकोर्ट ने उसके पिता के एन अशोकन की बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका इसलिए खारिज कर दी थी, क्योंकि अखिला 24 साल की थी। वह एक मुस्लिम युवक शफीन जहां के प्रेम जाल में फंस गई थी, उस मामले में शफीन जहां ने चालाकी यह भी की थी कि अखिला अशोकन से निकाह करने से छह महीने पहले ही उसे मुस्लिम मत में परिवर्तित करवा लिया था। हालांकि केरल हाईकोर्ट ने शादी को रद्द कर दिया था, लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने बालिग लड़की का धर्म परिवर्तन करना और मनमाफिक लड़के से शादी करना उसका संवैधानिक हक बता कर हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया था।
अफसोस यह है कि सुप्रीमकोर्ट ने तो चलो संविधान की बात की, लेकिन भारत के मीडिया पर हिन्दू संस्कृति विरोधी वामपंथी पत्रकारों का कब्जा रहा है, जो लव जिहाद की हर खबर को महिलाओं के स्वतन्त्रता का अधिकार बताकर हिन्दुओं को रुढ़िवादी करार देता रहा है। उन्होंने यह नेरेटिव खड़ा कर दिया है कि यह कट्टरपंथी हिन्दुओं का गढ़ा हुआ शब्द है, वास्तव में लव जिहाद जैसा कुछ है ही नहीं। यह हिन्दू बुद्धिजीवियों की बहुत बड़ी कमजोरी मानी जाएगी कि लव जिहाद के मामले में वे प्रोपेगेंडा की जंग हार गए हैं, या हार रहे हैं। आप गूगल में जा कर लव जिहाद शब्द सर्च कीजिए, आपको लव जिहाद को हिन्दुओं का झूठा प्रोपेगंेडा बताने वाले दर्जनों लेख और रिसर्च पेपर मिल जाएंगे, लेकिन लव जिहाद की वास्तविकता को उजागर करने वाला कोई एक लेख या रिसर्च पेपर नहीं मिलेगा। हिन्दू यह नेरेटिव नहीं बना पाए कि जब मुस्लिम युवक अपना नाम हिन्दू बता कर और हाथों में कलेवा बाँध कर किसी हिन्दू लडकी को अपने प्रेम जाल में फंसाता है, तो वह लव जिहाद कैसे नहीं है। जब मुसलमान गैर मुस्लिम से निकाह कर ही नहीं सकता, तो यह लव जिहाद कैसे नहीं है। किसी गैर मुस्लिम महिला से निकाह करने से पहले उस महिला का मुस्लिम मत में परिवर्तन होना, निकाह की पहली शर्त है। हिन्दू युवतियों को उसका मुस्लिम प्रेमी यह कभी नहीं बताता कि इस्लाम में विवाह, शादी जैसा कोई प्रावधान ही नहीं है। जैसी हिन्दुओं में सात फेरे लेते समय जीवन भर सुख दुःख में एक दूसरे का साथ निभाने का वायदा लिया जाता है, ऐसा इस्लाम में नहीं होता। इस्लाम में निकाह एक कांट्रेक्ट है, जिसे मुस्लिम पुरुष निकाह के समय तय मेहर की राशि अदा करके कभी भी तोड़ सकता है।