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संघ दर्शन

संघ, तिरंगा झंडा और भगवा ध्वज – संघ का स्वयंसेवक तिरंगे झंडे के जन्म से उसके सम्मान के साथ जुड़ा है

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हमारा संघ स्वावलंबी है. जो खर्चा करना पड़ता है वो हम ही जुटाते हैं. हम संघ का काम चलाने के लिए एक पाई भी बाहर से नहीं लेते. किसी ने लाकर दी तो हम लौटा देते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वयंसेवकों की गुरुदक्षिणा पर चलता है. साल में एक बार भगवे ध्वज को गुरु मानकर उसकी पूजा में दक्षिणा समर्पित करते हैं. भगवा ध्वज गुरु क्यों, क्योंकि वह अपनी तब से आज तक की परम्परा का चिह्न है. जब-जब हमारे इतिहास का विषय आता है, ये भगवा झंडा कहीं न कहीं रहता है.


यहां तक कि स्वतंत्र भारत का ध्वज कौन सा हो? तो फ्लैग कमेटी ने जो रिपोर्ट दी, वह भी यही दी कि सर्वत्र सुपरिचित, सुप्रतिष्ठित भगवा झंडा हो. बाद में उसमें परिवर्तन हुआ, तिरंगा आ गया. वह हमारा राष्ट्र ध्वज है. उसका भी पूर्ण सम्मान रखते ही हैं. ये भी प्रश्न उठाया जाता है. शाखा में भगवा झंडा लगता है, तिरंगे झंडे का क्या? तिरंगे झंडे के जन्म से, उसके सम्मान के साथ संघ का स्वयंसेवक जुड़ा है.

मैं आपको सत्य कथा बता रहा हूं. तिरंगा झंडा निश्चित होने के बाद उस समय मध्य में चक्र नहीं था, चरखा था ध्वज पर. पहली बार फैजपुर कांग्रेस अधिवेशन में उस ध्वज को फहराया गया और अस्सी फीट ऊंचा ध्वज स्तंभ लगाया था. नेहरू जी अधिवेशन के अध्यक्ष थे. तो बीच में लटक गया, पूरा ऊपर नहीं जा सका और इतना ऊंचा चढ़कर उसको सुलझाने का साहस किसी का नहीं था. तभी एक तरुण भीड़ में से दौड़ा, और वह सर-सर उस खंभे पर चढ़ गया. उसने रस्सियों की गुत्थी सुलझाई, ध्वज को ऊपर पहुंचाकर नीचे आ गया. तो स्वाभाविक लोगों ने उसको कंधे पर उठाया, नेहरू जी के पास लेकर गये. नेहरू जी ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा कि तुम शाम को खुले अधिवेशन में आओ, तुम्हारा अभिनंदन करेंगे. लेकिन फिर कुछ नेता आए और कहा कि उसको मत बुलाओ, वह शाखा में जाता है. वह स्वयंसेवक था, जलगांव के फैज़पुर में रहने वाला श्री किशन सिंह राजपूत. पांच वर्ष, छह वर्ष पहले उनका देहान्त हो गया.


डॉ. हेडगेवार को पता चला तो वे प्रवास करके गये. उन्होंने उसको एक छोटा सा चांदी का लोटा पुरस्कार के रूप में भेंट कर उसका अभिनंदन किया. पहली बार फहराया गया, तब से इसके साथ सम्मान के साथ स्वयंसेवक जुड़ा है.


जब पहली बार कांग्रेस ने सम्पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित किया, लाहौर के अधिवेशन में. तो डॉक्टर साहब ने सर्कुलर निकाला सब शाखाओं में, कि हम लोग संचलन निकालें. 1931 की बात है. और तिरंगे ध्वज के साथ संचलन निकालें. कांग्रेस का अभिनंदन करने वाला प्रस्ताव शाखाओं द्वारा पारित करके भेजा जाए कांग्रेस कमेटी के पास. डॉ. हेडगेवार उनके जीवन में देश का परमवैभव, देश की स्वतंत्रता, यही जीवित का गंतव्य था. संघ में दूसरा क्या हो सकता है? और इसलिये अपने स्वतंत्रता के जितने सारे प्रतीक हैं, उन सबके प्रति संघ का स्वयंसेवक अत्यन्त श्रद्धा और सम्मान के साथ समर्पित रहा है. इससे दूसरी बात संघ में नहीं चल सकती.


सोर्स: vsk काशी