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आत्मनिर्भर भारत: अब दूसरों की नहीं अपनी शर्तों पर विकास

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आत्मनिर्भर भारत: अब दूसरों की नहीं अपनी शर्तों पर विकास 

दूसरे देशों पर निर्भरता भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन केवल एक भाषण का हिस्सा नहीं अपितु भारत के भविष्य की दिशा और दृष्टि का सार है। इस वाक्य के पीछे आर्थिक, सामरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सभी आयाम छिपे हैं। आत्मनिर्भरता आज केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्तित्व की अनिवार्यता बन चुकी है।

भारत की आत्मनिर्भरता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 1947 के बाद भारत ने विकास की लंबी यात्रा तय की। प्रारंभिक दशकों में देश ‘लाइसेंस-कोटा राज’ की जटिलताओं में उलझा रहा। उद्योग सीमित थे, उत्पादन क्षमता कम थी और आयात पर भारी निर्भरता थी। 1991 में उदारीकरण और वैश्वीकरण की लहर ने अर्थव्यवस्था को खोल दिया, लेकिन साथ ही आयात-निर्भरता और विदेशी तकनीकी प्रभुत्व भी बढ़ा दिया। उस समय के सुधारों ने प्रतिस्पर्धा को तो बढ़ाया, परंतु आत्मनिर्भरता की भावना को कमजोर किया। इसी पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री मोदी का ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा आया-जो केवल स्वदेशी वस्तुओं की खरीद का आह्वान नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक स्वतंत्रता का आधुनिक खाका है।

‘चिप से शिप तक’ - आत्मनिर्भरता का व्यापक दृष्टिकोण: हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात के धोलेरा विशेष निवेश क्षेत्र (Dholera SIR) और लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) की समीक्षा की। ये दोनों परियोजनाएँ प्रतीक हैं कि भारत अब केवल ‘उपभोक्ता राष्ट्र’ नहीं, बल्कि ‘उत्पादक राष्ट्र’ बनने की दिशा में बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री का कथन - ”चिप से लेकर शिप तक, सब कुछ भारत में बनाना है“ - आत्मनिर्भर भारत के व्यावहारिक खाके का सार है।

‘चिप’ का अर्थ केवल सेमीकंडक्टर तक सीमित नहीं है; यह तकनीकी आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। वहीं, ‘शिप’ भारत की समुद्री और औद्योगिक क्षमता का द्योतक है। जब तक भारत डिजिटल तकनीक, रक्षा उत्पादन और परिवहन अवसंरचना में आत्मनिर्भर नहीं होगा, तब तक आर्थिक स्वतंत्रता अधूरी रहेगी।

अमेरिका की नीति और भारत की रणनीतिक चुनौतियाँ: भारत-अमेरिका संबंध बहुआयामी हैं। सुरक्षा, इंडो-पैसिफिक रणनीति और कूटनीतिक मंचों पर दोनों देशों का मेल दिखाई देता है, परंतु आर्थिक मोर्चे पर स्थिति भिन्न है। अमेरिका की बदलती टैरिफ नीतियाँ भारत की निर्यात क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

उदाहरण के लिए, ट्रम्प शासनकाल में अमेरिका ने भारत को Generalized System of Preferences (GSP) से बाहर कर दिया, जिससे भारतीय निर्यातकों को हर साल अरबों डॉलर का नुकसान हुआ। इसके अलावा, सेमीकंडक्टर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अमेरिका की तकनीकी एकाधिकारवादी नीति भारत के स्वदेशी विकास में बाधक रही है। इससे स्पष्ट है कि मित्रता के बावजूद, भारत को किसी भी राष्ट्र पर पूर्ण निर्भर नहीं रहना चाहिए। आत्मनिर्भर भारत का मूल दर्शन यही है संतुलित सहयोग और स्वतंत्र क्षमता।

चीन: सबसे बड़ी आर्थिक चुनौती: चीन भारत की आत्मनिर्भरता के लिए सबसे बड़ा आर्थिक प्रतिद्वंद्वी है। आज भारत-चीन व्यापार में 70 अरब डॉलर से अधिक का असंतुलन है। भारत चीन से भारी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ, सौर उपकरण, औषधियों के कच्चे पदार्थ और मशीनरी आयात करता है। इसके साथ ही चीन की Belt and Road Initiative (BRI) जैसी नीतियाँ भारत के रणनीतिक हितों को चुनौती देती हैं। श्रीलंका, नेपाल और पाकिस्तान में चीन का बढ़ता निवेश उसकी ‘रणनीतिक घेरेबंदी’ की नीति का हिस्सा है। चीन ने जिस गति से अपनी उत्पादन क्षमता और अनुसंधान तंत्र को विकसित किया, वह भारत के लिए एक चेतावनी है। भारत यदि अपनी युवा जनसंख्या और संसाधनों का सही उपयोग करे, तो उसे चीन पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होगी।

सरकार की नई औद्योगिक पहलें: आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम- प्रधानमंत्री मोदी की सोच केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं है। केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में अनेक ठोस नीतियाँ लागू की हैं।

♦ धोलेरा विशेष निवेश क्षेत्र (Dholera SIR) - यह भारत का पहला ‘प्लान्ड इंडस्ट्रियल स्मार्ट सिटी’ है, जो पश्चिमी मालवाहक गलियारे से जुड़ा है। यहां इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा, ऑटोमोबाइल और हाई-टेक उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

♦ सेमीकंडक्टर मिशन (India Semiconductor Mission): ताइवान और अमेरिका जैसी तकनीकी साझेदारियों के साथ भारत अपने चिप निर्माण उद्योग को खड़ा करने की दिशा में अग्रसर है।

♦ मेक इन इंडिया और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाएँ-मोबाइल, फार्मा, इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा उद्योगों में आत्मनिर्भरता को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन योजनाएँ लागू की गई हैं।

♦ गति शक्ति और लॉजिस्टिक्स नीति - परिवहन, बंदरगाह, रेल, सड़क और हवाई नेटवर्क को एकीकृत कर उत्पादन व निर्यात को सुगम बनाने की दिशा में काम हो रहा है।

♦ ‘वोकेशनल एजुकेशन और स्किल इंडिया मिशन’ - युवाओं को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के अनुरूप तकनीकी प्रशिक्षण देने की दिशा में पहल।

समुद्री शक्ति और ‘शिपिंग इंफ्रास्ट्रक्चर’ का महत्व: प्रधानमंत्री मोदी ने एक महत्वपूर्ण तथ्य पर ध्यान दिलाया कि आज भारत का केवल 5 प्रतिशत व्यापार अपने जहाजों से होता है, जबकि 50 वर्ष पहले यह 40 प्रतिशत था। यह आंकड़ा बताता है कि समुद्री शक्ति के बिना आत्मनिर्भरता अधूरी है।

भारत का प्राचीन समुद्री इतिहास लोथल और कालीबंगन की सभ्यताओं से जुड़ा है। परंतु आधुनिक युग में हमने अपने शिपिंग नेटवर्क को उपेक्षित किया। ‘सागरमाला प्रोजेक्ट’, ‘भारतमाला योजना’ और ‘नेशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी’ अब इस कमी को दूर करने की दिशा में काम कर रही हैं। 

सेमीकंडक्टर से रक्षा उत्पादन तक: आत्मनिर्भरता की नई धारा - 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था ”डिजिटल चिप“ पर टिकी है। आज हर मोबाइल, कार, मशीन और रक्षा उपकरण में चिप जरूरी है। भारत का लक्ष्य है कि वह केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि उत्पादक बने। भारत सरकार ने Vedanta-Foxconn, Micron, Tata Electronics जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी कर सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में निवेश बढ़ाया है। इसी तरह रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत ने मिसाइल, ड्रोन, और हथियार प्रणालियों के उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति की है। तेजस फाइटर जेट, अर्जुन टैंक और आकाश मिसाइल जैसी परियोजनाएँ इसका उदाहरण हैं।

युवा शक्ति और स्टार्टअप क्रांतिः आत्मनिर्भरता की नई ऊर्जा: भारत की 146 करोड़ की आबादी में लगभग 65 प्रतिशत लोग 35 वर्ष से कम आयु के हैं। यह युवा जनसंख्या भारत की सबसे बड़ी पूंजी है। प्रधानमंत्री मोदी ने स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी पहलों के माध्यम से युवाओं को नवाचार की दिशा में प्रेरित किया है।

भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन चुका है। फिनटेक, एडटेक, हेल्थटेक और एग्रीटेक क्षेत्रों में नवाचार की लहर आई है। ये स्टार्टअप न केवल रोजगार दे रहे हैं, बल्कि स्थानीय समस्याओं का स्थानीय समाधान भी खोज रहे हैं-यही आत्मनिर्भर भारत का असली अर्थ है।

आत्मनिर्भरता का सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आयाम: आत्मनिर्भरता केवल उत्पादन या व्यापार तक सीमित नहीं है; यह आत्मविश्वास और मानसिक स्वतंत्रता का प्रतीक है। विदेशी वस्तुओं के प्रति मोह, उपभोक्तावाद और ब्रांड-भक्ति से बाहर निकलना आवश्यक है। जब तक हम भारतीय उत्पादों पर गर्व करना नहीं सीखेंगे, तब तक आत्मनिर्भरता अधूरी रहेगी। गांधीजी का स्वदेशी आंदोलन केवल आर्थिक नहीं, बल्कि आत्मसम्मान का आंदोलन था।

शिक्षा और अनुसंधान: आत्मनिर्भरता की असली बुनियाद: भारत को आत्मनिर्भर बनाने की जड़ें शिक्षा में छिपी हैं। यदि विश्वविद्यालय और शोध संस्थान उद्योग की जरूरतों के अनुरूप अनुसंधान करें, तो विदेशी तकनीक पर निर्भरता घटेगी। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (NRF) जैसी नई पहलें उद्योग और शिक्षा जगत को जोड़ने का प्रयास हैं। नई शिक्षा नीति (NEP 2020) ने छात्रों में क्रिटिकल थिंकिंग, नवाचार और उद्यमिता की भावना को प्रोत्साहन देने पर बल दिया है। आत्मनिर्भर भारत का अगला चरण तभी संभव है, जब हम शिक्षा को उद्योग से जोड़ें और अनुसंधान को वास्तविक उत्पादन से। 

भारत की भू-राजनीतिक अनिवार्यता: आत्मनिर्भर भारत केवल आर्थिक नीति नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक रणनीति भी है। अमेरिका की टैरिफ नीतियाँ यह सिखाती हैं कि हमें मित्र देशों पर भी पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहिए। चीन की विस्तारवादी नीति हमें सावधान करती है कि अगर हमने अपने उद्योगों को मजबूत नहीं किया, तो हम केवल बाजार बनकर रह जाएंगे।

2047 का भारत: आत्मनिर्भरता से विश्वगुरु तक: प्रधानमंत्री मोदी का लक्ष्य है-2047 तक विकसित भारत। इसका आधार आत्मनिर्भर भारत ही है। जब भारत सेमीकंडक्टर बनाएगा, जब उसके जहाज विश्व के बंदरगाहों पर तिरंगा फहराएँगे, जब भारतीय ब्रांड वैश्विक पहचान बनेंगे-तभी भारत सच में विश्वगुरु कहलाएगा। इसके लिए तीन तत्व अनिवार्य हैं-नीति की स्थिरता, निजी क्षेत्र का भरोसा और जनता का सहयोग और आत्मविश्वास। आत्मनिर्भरता कोई विकल्प नहीं, अनिवार्यता है: आज का भारत केवल विकास की नहीं, बल्कि विकसित भारत की दिशा में बढ़ रहा है। परंतु यह यात्रा तभी सफल होगी जब हर भारतीय आत्मनिर्भरता को व्यक्तिगत जिम्मेदारी समझे। ”चिप से शिप तक सब कुछ भारत में“ बनाना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक का राष्ट्रीय संकल्प है। यह नारा नहीं, नवभारत का नया अध्याय है। आत्मनिर्भर भारत ही वह औषधि है, जो हमें विदेशी निर्भरता, व्यापार घाटे और आर्थिक असंतुलन जैसी बीमारियों से मुक्ति दिला सकती है।