• अनुवाद करें: |
संघ दर्शन

श्री गुरुजी का अस्पृश्यता पर अद्भुत जवाब

  • Share:

  • facebook
  • twitter
  • whatsapp

श्री गुरुजी का अस्पृश्यता पर अद्भुत जवाब

संघ संस्मरण - 

पुणे में एक बार स्वयं को प्रगतिशील कहने वाले लोगों का एक प्रतिनिधि मण्डल श्री गुरुजी से मिलने आया। उन्होंने उनसे अस्पृश्यता, जातिवाद के बारे में पूछा। श्री गुरुजी बोले- आज एक भी वर्ण अस्तित्व में नहीं है, एक भी जाति अस्तित्व में नहीं है। एक ही वर्ण, एक ही जाति अर्थात् हिन्दू। प्रतिनिधि मण्डल में शामिल लोगों ने कहा कि यदि ऐसा है तो आप अस्पृश्यता के विरुद्ध प्रचार क्यों नहीं करते? श्री गुरुजी ने कहा, अस्पृश्यता, यह अस्पृश्यों का विषय नहीं है। यह सवर्ण हिन्दुओं के हृदय का विषय है।


सवर्ण हिन्दुओं का हृदय परिवर्तन जब तक नहीं होता, तब तक अस्पृश्यता का प्रश्न हल नहीं हो सकता। सवर्ण हिन्दुओं के हृदय परिवर्तन की दृष्टि से मैं यह सोच रहा हूं और प्रयास कर रहा हूं कि पूज्य शंकराचार्यों, धर्माचार्यों की ओर से ऐसा आदेश निकले कि यहां अस्पृश्यता रहे, यह धर्मसम्मत नहीं है।" तब उन लोगों ने कहा कि शंकराचार्य कौन होते हैं? श्री गुरुजी ने कहा, आप लोग शंकराचार्य को नहीं मानते, किन्तु जिन सवर्ण हिन्दुओं का हृदय परिवर्तन करना है, वे तो मुझे मानते हैं आपको मानते हैं। वे शंकराचार्य जी को ही मानते हैं। इसलिए उनका हृदय परिवर्तन करना है तो आपके और हमारे वक्तव्यों से नहीं होगा, वह पूज्य शंकराचार्यों धर्माचार्यों के उद्बोधन से ही होगा, और मैं इसी प्रयास में लगा हूँ।


।। श्री गुरूजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा, पृष्ठ - 119-120 ।।