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पर्यावरण संरक्षण की प्रणेता गौरा देवी को सच्ची श्रद्धांजलि

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पर्यावरण संरक्षण की प्रणेता गौरा देवी को सच्ची श्रद्धांजलि

पथरीली और पतली सी पगडंडी... ऊंचे-नीचे पहाड़... जहाँ अपनी छाया बिखेरे पेड़-पौधों का साथ... जब उन्हें ही कोई नुकसान पहुंचाने पर तुल जाए, तो क्या होगा?



अपने साथी-सहारे को चोट पहुंचाते देख उत्तराखंड के चमोली जिले की गौरा देवी का भी खून खौल उठा था। आज से 49 वर्ष पहले गौरा देवी ने जो किया आज भी हमें प्रेरित करता है।और ऐसी ही प्रणेता के जन्म के 100 वर्ष पूर्ण हुए, तो उसे यादगार बनाने के लिए भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में विशेष डाक टिकट जारी किया। 


कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उत्तराखंड के वन मन्त्री सुबोध उनियाल, क्षेत्रीय विधायक लखपत सिंह राणा समेत अधिकारी और चिपको मौजूद रहे और वन संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली गौरा देवी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई।



सुबोध उनियाल जी ने कहा- गौरा देवी जी केवल उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उन्होंने सच्चे अर्थों में बताया कि प्रकृति के साथ सामंजस्य ही मानवता का सबसे बड़ा धर्म है। यदि हम हर पेड़ को अपने जीवन का हिस्सा मान लें तो आने वाली पीढ़ियों को हरा भरा भविष्य दे सकेंगे।



चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी का जन्म 1925 में जोशीमठ के लाता गांव में हुआ था। वर्ष 1973 में गौरा देवी ने पेड़ों को कटान से बचाने के लिए उन्होंने रैणी और लाता गाँव की महिलाओं के साथ ठेकेदारों के विरुद्ध ऐसी ज्वाला भड़काई, जिसके आगे ठेकेदारों को पीछे हटना पड़ा। उन्होंने गांव के पास मौजूद जंगलों के पेड़ों को कटने से बचाने के लिए निर्भीकतापूर्वक न केवल डटी रहीं, बल्कि पेड़ों को गले लगा लिया और कड़ी चेतावनी देते हुए कहा था- पेड़ों से पहले हमें मारना होगा। गाँव के लोगों का दावा है कि महिलाएं इस वन को अपना मायका मानती थीं।

ऐसी महान और निर्भीक प्रणेता गौरा देवी की याद में आयोजित कार्यक्रम के साक्षी गौरा देवी के बेटे चंद्र सिंह राणा भी मौजूद रहे।