प.पू. श्री गुरुजी के अनुसार “आज के संसार में समाज व्यवस्था के दो बड़े असफल प्रतिमान जनतन्त्र एवं कम्युनिज्म प्रचलित हैं। कोई भी व्यवस्था जो स्वाभाविक असमानता को ऊपरी समानता के आधार पर पूर्णरूपेण दूर करने का प्रयत्न करती है, निश्चय ही असफल होगी।
पाश्चात्य देशों में इतनी प्रगति की अवस्था होते हुए भी जनतन्त्र कुछ ऐसे ही लोगों का शासन है जो राजनीति की कला के पूर्ण ज्ञाता तथा सामान्यजन को अपने पक्ष में लाने का सामर्थ्य रखते हैं।
जनतन्त्र की वह कल्पना कि राज्य 'जनता द्वारा' और 'जनता का है' जिसका अर्थ होता है कि राजनीतिक प्रबन्ध में सभी समान भागी हैं, व्यवहार में बहुत बड़ी सीमा तक एक कल्पित कथा मात्र है।
।। श्री गुरूजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा, पृष्ठ – 116 ।।




