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संघ दर्शन

जब सऊदी अरब के समाचार पत्रों ने किया संघ को नमन

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जब सऊदी अरब के समाचार पत्रों ने किया संघ को नमन 

संघ यात्रा - 08 (1995 - 2005)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यात्रा की इस शृंखला में हम आ पहुंचे हैं अपने अगले पड़ाव पर। 1995 से आगे 2005 तक यह संघ यात्रा का आठवां दशक है। 17 जून 1996 को पूज्य बाला साहब देवरस ने अपना नश्वर शरीर त्याग दिया। इसी वर्ष नवंबर में आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले में भयंकर चक्रवात आया, जिसमें 8000 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई और भारी संपत्ति का नुकसान हुआ। ऐसे समय में सदैव के समान स्थानीय स्वयंसेवक तत्काल राहत कार्य में जुट गए और संघ ने ‘जनसंरक्षण समिति’ गठित कर हजारों लोगों तक चिकित्सा, भोजन, वस्त्र एवं अन्य बुनियादी सहायता पहुंचाई। समिति ने बुरी तरह से प्रभावित 70 गाँवों को चयनित कर 10,000 से अधिक परिवारों के पुनर्वास की व्यवस्था की। इसी वर्ष हरियाणा प्रदेश के चरखी दादरी में सउदी अरेबिया तथा कजाख यात्री विमानों की आकाश में भीषण टक्कर से हुई दुर्घटना में 300 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम थे। दुर्घटना स्थल पर सबसे पहले पहुंचने वालों में संघ के स्वयंसेवक थे। उन्होंने मलबे में से क्षत-विक्षत शवों को निकालकर उनको लकड़ी के बक्सों में रखवाना, उन्हें ट्रक पर चढ़ाना, निश्चित जगह पर उतरवाना, मृतकों के शवों की पहचान करने में उनके परिजनों की सहायता करना, उन्हें सांत्वना देना और मुस्लिम मौलवियों के द्वारा शवों के अंतिम संस्कार की व्यवस्था में सहयोग किया। इस कार्य में विहिप, बजरंग दल, भारत विकास परिषद् और आर्य समाज के स्वयंसेवकों ने भी कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग किया। पूरे देश में संघ के स्वयंसेवकों के इस सेवाभाव की सराहना हुई। राहत कार्यों में संघ की उल्लेखनीय भूमिका की अंतरराष्ट्रीय प्रेस, विशेष रूप से खाड़ी देशों के द्वारा भी प्रशंसा की गई। सउदी अरब के समाचार पत्र  ‘अल रियाद’ ने टिप्पणी की, ”हमारा यह भ्रम कि संघ मुस्लिम विरोधी है, बड़ी सीमा तक दूर हो गया।“  ब्रिटिश पराधीनता काल में अंग्रेजों ने भारत के इतिहास को विकृत करने के उद्देश्य से षड्यंत्रपूर्वक ‘आर्य आक्रमण’ का मनगढ़ंत सिद्धांत आरोपित किया था। अपने स्थापना के समय से ही भारत की मौलिकता, भारत के स्वभाव और भारत के स्वत्व के प्रति संघ का बौद्धिक चिंतन रहा है। 1996 में संघ की प्रेरणा से आर्यों के मूल स्थान और उनकी संस्कृति के उद्भव से जुड़ी सरस्वती नदी को लेकर संघ के स्वयंसेवक, संस्कार भारती के संस्थापक सदस्य एवं प्रसिद्ध पुरातत्वविद् डॉ. वी.एस. वाकणकर जी के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय 16 विद्वानों के दल ने शिवालक पर्वतमाला से लेकर श्री सोमनाथ धाम तक (4000 किमी) सर्वेक्षण किया और सरस्वती नदी के वर्तमान में भी भूमि के नीचे प्रवाहित होने के प्रमाण और पुरातात्विक तथ्य जुटाए। यह तथ्य सरस्वती नदी के आस-पास आर्यों की उन्नत सभ्यता को प्रमाणित करने वाले हैं।

1997 में पंजाब के लुधियाना में एक दिवसीय स्वर्ण जयंती संघ समागम में 21,000 स्वयंसेवक एकत्र हुए। 9 फरवरी 1997 को उज्जैन में विराट सम्मेलन में 35,000 स्वयंसेवकों का भव्य पथ संचलन हुआ। इस समय तक संघ का कार्य विदेशों में रह रहे प्रवासी हिन्दुओं तक विस्तृत हो गया था और समय-समय पर वरिष्ठ अधिकारी विभिन्न देशों में प्रवास करते थे। 1997 में तत्कालीन सरसंघचालक रज्जू भय्या ने ‘हिन्दू काउंसिल ऑफ केन्या’ के निमंत्रण पर 10 से 17 जनवरी तक केन्या का दौरा किया। 1998 में भी वह जापान के प्रवास पर गये।  25 दिसम्बर 1998 को मुंबई में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का भव्य स्वर्ण जयंती समारोह आयोजित हुआ। नवम्बर 1998 में मेरठ प्रान्त के ‘समरसता संगम’ शिविर में 5,200 गांवों से 51,200 स्वयंसेवकों ने प्रतिभागिता की। इस महाशिविर हेतु स्वयंसेवकों ने मेरठ के गंगानगर में तम्बुओं का एक उपनगर बसा दिया था। 21 सितम्बर 1997 को विशाखापट्टनम के एक तेल शोधन संयंत्र में भीषण एवं विनाशकारी अग्निकांड में 50 से अधिक व्यक्ति जलकर स्वाहा हो गए। इस अग्निकांड के धमाके को सुनकर 200 स्थानीय स्वयंसेवक तुरंत घटनास्थल पर पहुंचे। विजयवाड़ा से प्रकाशित दैनिक इंडियन एक्सप्रेस ने अगले दिन छापा, ‘जब एच.पी.सी.एल की रिफानरी की संचय टंकी में आग भड़क उठी और 56 व्यक्ति आग की लपटों से जलकर राख हो गए तो ध्वस्त ढाँचे के मलबे से शवों को निकालने का कार्य प्राधिकारियों ने नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुशासित कार्यकर्ताओं ने किया।’ आपात स्थिति में परस्पर समन्वय रखते हुए अनुशासित पद्धति से कार्य करने वाले स्वयंसेवकों की सभी ने प्रशंसा की। ऐसी ही एक हृदय विदारक घटना में इसी वर्ष जून माह में चेन्नई नगर की एक मलिन बस्ती की लगभग 500 झोपड़ियां सूर्य की प्रचंड उष्णता से तप्त होकर झुलस गयीं जिससे कुछ व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी। सैंकड़ों निर्धन बेघर हो गये, स्वयंसेवकों ने इन बंधुओं के पुनर्वास की व्यवस्था की। इसी प्रकार चेन्नई के औद्योगिक उपनगर कन्निंअम्मपेटै में एक पल्ली कई दिनों कमर तक पानी में डूबी रही, स्वयंसेवक असहाय गांव वालों के लिए सड़ रहे पानी को चीरते हुए राहत सामग्री पहुंचाते थे।    

स्वाधीनता के बाद से ही पूर्वाेत्तर भारत की स्थिति ईसाई मिशनरियों द्वारा समर्थित उग्रवादी गतिविधियों के चलते निरंतर बिगड़ती जा रही थी। भारत का पूर्वाेत्तर क्षेत्र तत्कालीन सरकारों द्वारा उपेक्षा का शिकार था किन्तु संघ के अनेक स्वयंसेवक इस क्षेत्र में रह रहे अपने बन्धु-बांधवों  के साथ खड़े थे। तब स्थिति इतनी खराब थी कि संघ के अनेक कार्यकर्ता सादे वेश में रहकर अपना कार्य करते थे। उस क्षेत्र को भारत से अलग किये जाने का षड्यंत्र किया जा रहा था। वहां के आम-जनमानस को भारत की मूल संस्कृति से विलग कर उन्हें मुख्य धारा के विरुद्ध उकसाया जा रहा था। संघ के प्रचारक एवं अनेक कार्यकर्ता ऐसी विपरीत परिस्थितियों में अपनी जान हथेली पर रखकर जन-जागरुकता अभियान में जुटे थे। अनेक स्वयंसेवकों ने वहां अपना बलिदान दिया। ऐसी ही एक घटना 6 अगस्त 1999 को घटी जब संघ के चार पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं - दिनेंद्र नाथ डे, श्यामल कांति सेन, शुभंकर चक्रवर्ती तथा सुधायम दत्ता को त्रिपुरा में एन.एल.एफ.टी. उग्रवादियों ने 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगते हुए अगवा कर लिया और बाद में चारों प्रचारकों की हत्या कर दी। लेकिन इसके बावजूद उग्रवादी, स्वयंसेवकों के संकल्प को डिगा नहीं सके। इस क्षेत्र में संघ कार्य निर्बाध गति से चलता रहा। वर्ष 1999 में 28 अक्टूबर को उड़ीसा के तट पर सदी का सबसे विनाशकारी चक्रवात आया, जिसमें 10000 लोगों की जान गई तथा 1800 करोड़ रुपए की संपत्ति का नुकसान हुआ। संघ ने राहत एवं पुनर्वास गतिविधियों में ‘उत्कल विपन्न सहायता समिति’ के बैनर तले अग्रणी भूमिका निभाई।  जनवरी 2000 में गुजरात प्रांत का 3 दिवसीय प्रांतिक शिविर, ‘संकल्प शिविर’ संपन्न हुआ जिसमें 16,000 स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश ने प्रतिभाग किया। अपनी आयु एवं स्वास्थ्य की समस्याओं के चलते रज्जू भैया ने 10 मार्च, 2000 को अपने से तरुण आयु के कुप्पाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन जी को सरसंघचालक का दायित्व सौंप दिया और श्री मोहन जी भागवत सरकार्यवाह के दायित्व पर चुने गए। संघ की 75वीं वर्षगाँठ पर संघ का संदेश हर घर तक पहुँचाने के लिए व्यापक संपर्क अभियान हुआ। अक्टूबर-2000 में ब्रज प्रांत के राष्ट्र रक्षा महाशिविर में 49,000 स्वयंसेवकों ने सहभागिता की।


26 जनवरी 2001 को गुजरात में भयंकर भूकंप की त्रासदी से पूरे देश का हृदय विदीर्ण हो गया। 35,000 से भी ज्यादा स्वयंसेवक महीनों तक राहत कार्य में जुटे रहे। इसी वर्ष जयपुर में ‘राष्ट्र शक्ति संगम’ में 51,000 स्वयंसेवकों ने पथ संचलन निकाला। वर्ष 2002 में दक्षिण कर्नाटक का प्रांतीय शिविर ‘समरसता संगम’ बेंगलुरु में हुआ जिसमें 39,000 स्वयंसेवक उपस्थित रहे। 17 नवम्बर को  दिल्ली में 25,000 स्वयंसेवकों का गणवेश में सम्मेलन हुआ। 2003 में श्री मोरोपंत पिंगले, श्री रज्जू भैय्या और श्री चमनलाल जी का देहावसान हुआ। इसी वर्ष ‘डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार’ शीर्षक से डॉक्टर जी की जीवनी भारत सरकार द्वारा ‘आधुनिक भारत के निर्माता’ मालिका में प्रकाशित हुई। 14 अक्टूबर 2004 को वरिष्ठ प्रचारक श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी का देहावसान हुआ। 26 दिसम्बर को सुनामी के कारण भारत के तटवर्ती क्षेत्रों में बड़ी हानि हुई, यहां भी स्वयंसेवकों ने तत्काल राहत कार्य प्रारंभ कर आपदाग्रस्त लोगों की सहायता की और बाद में उनके पुनर्वास की व्यवस्था में भी सहयोग किया। 14 अगस्त 2005 में  वरिष्ठ प्रचारक श्री हो.वे.शेषाद्रि जी का देहावसान हुआ। 

इस शृंखला में इतना ही, अगली शृंखला में चर्चा करेंगे संघ यात्रा के अगले दशक की...