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समरसता की स्याही से लिखा जा रहा है नया भारत

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समरसता की स्याही से लिखा जा रहा है नया भारत


भारतीय समाज में समरसता बढ़ रही है। लोग धर्म, जाति, भाषा, लिंग, संस्कृति सहित विभिन्न मतभेदों से ऊपर उठकर देश की अखंडता और तरक्की को लेकर कार्य कर रहे हैं। व्यापक तौर पर सामाजिक परिवर्तन हो रहा है, और राष्ट्र सशक्त हो रहा है। महात्मा गांधी, बाबा भीमराव अम्बेडकर, दीनदयाल उपाध्याय जैसे नेताओं ने जो सपना देखा था, वह साकार हो रहा है। भारत अनेकता में एकता का पाठ दुनिया को पढ़ा रहा है और एक नए भारत को विश्व देख रहा है। एक दौर था जब समाज के विघटनकारी तत्व प्रभावी थे और अब गरीबी दूर करने की योजना, राष्ट्र के विकास की योजना, प्रगति की कार्ययोजना पारंपरिक सामाजिक समीकरण को बदलकर भारतीय समाज में समरसता का निर्माण कर रही है। 

भारतीय समाज का सामाजिक समीकरण बदल रहा है। समाज का आधार धर्म, जाति, लिंग, भाषा आदि न होकर ग्रामीण, गरीबी, स्वास्थ्य, रोजगार, डिजिटल प्रवीणता हो गया है। भारत सरकार की विभिन्न योजनाएं के चलते समाज में सकारात्मक परिर्वतन हो रहा है। बदलते सामाजिक समीकरण का ही परिणाम है कि देश के नागरिक विघटनकारी तत्वों को नकार कर देश की प्रगति, विकास, राष्ट्र की सुरक्षा के आधार पर मतदान कर रहे हैं और सामाजिक विषमता फ़ैलाने वाले तत्वों और राजनीतिक दलों को नकार रहे हैं। संपूर्ण विश्व ने देखा कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 पर्यटकों की हत्या के बाद किस तरह देश एकजुट हुआ और 8-10 मई, 2025 के भारत और पाकिस्तान के बीच आतंकवादी शिविरों को ध्वस्त करने के बाद देश के तमाम राजनीतिक दलों ने बिना किसी भेदभाव के विश्व के सामने भारत के विचार को रखा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का सर ऊँचा उठाया।   

भारतीय इतिहास में राम-निषादराज गुह की मित्रता और जटायु के अंतिम संस्कार की कहानी यदि भारतीय सामाजिक समरसता का उदाहरण है तो वर्तमान में कुम्भ स्नान, सामूहिक विवाह समारोह, राष्ट्रीय संघ स्वयंसेवक द्वारा समाज के विभिन्न परिवारों के बीच कार्य करना, देश के अनेक शहरों के पार्क में समाज के विभिन्न तबके के लोगों द्वारा एक साथ योग और आसन करना इसके जीवंत उदाहरण हैं। पिछले सौ साल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा इस बात का उदाहरण है कि बिना किसी भेदभाव के सामाजिक समरसता के दम पर भी कोई संगठन सशक्त और प्रभावशाली हो सकता है। कुंभ स्नान किसी समाज जाति या समुदाय पर आधारित नहीं है। देश और दुनिया के करोड़ों लोग कुम्भ स्नान के लिए आते हैं और एक समरस समाज का निर्माण करते हैं। इस मौके पर विभिन्न व्यवसाय से जुड़े लोग समरस भाव से लोगों की सेवा करते हैं, व्यवसाय करते हैं और एक नए भारत का निर्माण करते हैं। देश में अपराध पर रोक लगने, सड़कों का व्यापक नेटवर्क बनने, हवाई यात्राओं की सुविधा सस्ता और बेहतर होने से सामाजिक विषमता खत्म हो रही है और सामाजिक समरसता के नए समीकरण का निर्माण हो रहा है। 

भारत सरकार की अनेक योजनाओं का केंद्र समाज और उसकी प्रगति है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के जरिये ग्रामीण परिवारों को साल में 100 दिन का रोजगार मिल रहा है। मजदूरों को काम समय पर मिल रहा है और भुगतान भी समय पर हो रहा है। प्रधानमंत्री जन-धन योजना के जरिये बिना किसी भेदभाव के हर नागरिक को बैंक खाता, डेबिट कार्ड और बीमा की सुविधा मिल रही है। गरीब और ग्रामीण परिवारों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ा गया है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के जरिये गरीब परिवारों की महिलाओं को फ्री एलपीजी गैस कनेक्शन दिया गया है, जो उनके स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों की सुरक्षा करता है. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत शहर और गाँव के गरीब परिवारों को सस्ता और पक्का घर दिया गया है। 

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद बाबा साहेब आंबेडकर के महापरिनिर्वाण के दिन को ”सामाजिक समरसता दिवस“ के तौर पर मनाता है। इस मौके पर संगोष्ठी, संवाद जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जो इस विषय को लेकर प्रतिबद्ध है तथा यह केवल बोलने का नहीं अपितु करणीय विषय है। वे मानते हैं कि जो सभ्यता ”एकोऽहं बहुस्यामः“, ”वयम् अमृतस्य पुत्राः“, ”सर्वे भवन्तु सुखिनः“, ऐसे मंत्रों को जन्म देती है, वहां जन्म के आधार पर समाज को जातियों में बाँटना और भेदभावपूर्ण व्यवहार करना यह एक लांछन है। उनका मानना है कि जातिगत विषमता का उन्मूलन आवश्यक है। ”हम सब भारत माता के सूत, आपस में भाई-भाई ..“ यह केवल गीत की पंक्ति नहीं भारतीय समाज का मंत्र हो और वे इस पर व्यक्तिगत, पारिवारिक, व्यावसायिक एवं सामाजिक जीवन में कार्य करते हैं। 

ये बातें वर्तमान दौर की सरकार की तमाम योजनाओं में झलक रही है। यही कारण है कि भारत सरकार की आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की सहायता से गरीब परिवारों को पांच लाख रुपये तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा मिल रहा है और अस्पताल में भर्ती होने पर खर्च सरकार देती है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत गाँव और शहरों में शौचालय निर्माण, कचरा प्रबंधन और सफाई व्यवस्था मजबूत किया गया है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के जरिये कन्या भ्रूण हत्या रोकने का कार्य किया जा रहा है और लड़कियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को बढ़ावा दिया गया है। राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों में कुपोषण कम करने के लिए पोषण-आंगनवाड़ी सेवा अपनी मजबूती के साथ समाज में समरसता लाने का कार्य कर रही है।

सामाजिक समरसता की परिभाषा भी बदल रही है। धर्म-जाति को छोड़कर भारत प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत बिना किसी भेदभाव के किसानों को 6,000 रुपये प्रति वर्ष की आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है और पैसा सीधे बैंक खाते में भेजा जाता है। अटल पेंशन योजना के तहत असंगठित क्षेत्र के लोगों को सुरक्षित पेंशन यानी 60 साल के बाद 1,000-5,000 रुपये मासिक पेंशन मिल रही है। दीनदयाल अंत्योदय योजना के जरिये ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिए जीविकोपार्जन, कौशल विकास और रोजगार अवसर प्रदान किया जा रहा है।

सामाजिक समरसता का अर्थ होता समाज के सभी वर्गों, जातियों, धर्मों और लिंगों के बीच एकता, प्रेम और सद्भाव। यह भेदभाव को समाप्त करती है, खासकर जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता को जड़ से खत्म करने पर जोर देती है और सभी को समान समझने और एक साथ मिलकर रहने की भावना को बढ़ावा देती है। वे दिन गए जब किसी खास कार्य के लिए किसी जाति या धर्म के लोगों पर समाज आश्रित रहता था। प्रधानमंत्री स्वरोजगार या स्टार्टअप योजना के तहत छोटे व्यवसायों के लिए लोन प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और एससी एवं एसटी सहित महिलाओं के लिए स्टैंड-अप इंडिया के तहत ऋण प्रदान किया जाता है। वर्तमान दौर भारतीय समाज के विकास का है न कि इसके विघटन का। डिजिटल साक्षरता अभियान के तहत ग्रामीण परिवारों के सदस्यों को डिजिटल कौशल सिखाया जा रहा है। राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत बुजुर्गों, विधवाओं और दिव्यांगों को पेंशन सहायता प्रदान की जा रही है। 

अनेकता वाला भारतीय समाज किसी एक व्यक्ति, जाति, जेंडर या समुदाय विशेष के दम पर न तो चल सकता है और न ही आगे बढ़ सकता है। समाज की सम्पूर्णता प्रत्येक व्यक्ति की काबिलियत और सोच में होती है। भारतीय जीवन पद्धति समावेशी पद्धति है। भारतीय समाज में कार्य, कार्य-कुशलता और कौशलता को अहमियत दी गई है। जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी पारम्परिक संस्कार पद्धति में विभिन्न कार्यों में कौशल लोगों की जरूरत होती है और इसे लेकर समाज अब सतर्क हो चुका है। लोग यह जान चुके हैं कि देश का विकास समाज के विकास पर टिका है और समाज का विकास सामाजिक समरसता पर आधारित है। यही नया सामाजिक समीकरण है और यही नया भारत है जो आने वाले समय में ‘विकसित भारत’ होगा और दुनिया में सबसे अग्रणी रहेगा।


लेखक न्यू मीडिया विभाग भारतीय जनसंचार संस्थान, जम्मू में सहायक प्राध्यापक है।