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वैश्विक पटल पर बढ़ती भारत की भूमिका

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वैश्विक पटल पर बढ़ती भारत की भूमिका

 विश्व इतिहास के लंबे प्रवाह में कई बार ऐसे क्षण आते हैं जब कोई राष्ट्र न केवल अपनी आंतरिक शक्ति को पुनर्परिभाषित करता है बल्कि वैश्विक व्यवस्था की दिशा भी बदल सकता है। इक्कीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में विश्व इसी प्रकार का परिवर्तन देख रहा है और इस परिवर्तन के केंद्र में है भारत। आज भारत केवल एक देश नहीं, बल्कि एक उभरती हुई विचारधारा, नवोन्मेष का स्रोत, मानवीय मूल्यों का संवाहक और वैश्विक नेतृत्व का ध्वजवाहक बनता प्रतीत हो रहा है।

 ज्ञान भूमि से अलंकृत भारत वर्ष वह भूमि है जिसने सहस्त्रों वर्षों  से ”वसुधैव कुटुम्बकम्“ व ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का मंत्र विश्व को दिया। जब आज की दुनिया विभाजन, तनाव, असुरक्षा और बहुधु्रवीय प्रतिस्पर्धा के दौर से गुजर रही है, तब भारत अपनी प्राचीन सभ्यता, सत्य सनातन संस्कृति के पावन मूल्यों की इस अद्भुत सोच को आधुनिक संदर्भ में नयी प्रासंगिकता प्रदान कर रहा है। उदाहरणार्थ-

”उदयन्ते यस्य कीर्तयः, नश्यन्ते यस्य दुःखदाः।

सः देशः सर्वलोकानां, वन्दनीयः सदा भवेत्।।“

अर्थात् वह देश वंदनीय होता है जिसके गुणों की कीर्ति निरंतर बढ़ती है और जो समस्त मानवता के दुःखों को दूर करने में समर्थ होता है।

आज की वैश्विक परिस्थितियों जैसे राजनीतिक धुर्वीकरण, आर्थिक अस्थिरता, जलवायु परिवर्तन और सांस्कृतिक टकराव में यह श्लोक भारत पर पूर्णतया सार्थक बैठता है। ऋग्वेद से लेकर उपनिषदों तक, योग से लेकर आयुर्वेद तक, शून्य से लेकर ग्रह नक्षत्रों तक भारत ने मानवता को सैदव उन्नति का मार्ग दिखाया है। वर्तमान समय मे आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत का उदय, विज्ञान, तकनीकी अंतरिक्ष मे भारत का उभार, भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान परंपरा का वैश्विक पटल पर प्रचार एवं प्रचार, वैश्विक संकटों के समाधान में भारत की निर्णायक भूमिका, स्वास्थ्य एवं महामारी प्रबंधन में भारत का कुशल प्रबंधन, सैन्य सामर्थ्य, राजनीतिक सुरक्षा व कूटनीति में आत्मनिर्भर भारत, विश्व शांति में भारत का अद्वितीय योगदान व भारत के लोकतांत्रिक व मूल्य आधारित नेतृत्व ने भारत को वैश्विक पटल पर सांस्कृतिक महाशक्ति के रूप में एवं विश्व गुरु के गरिमामयी स्थान को पुनः परिभाषित किया है।

विश्व राजनीति, अर्थव्यवस्था एवं सांस्कृतिक विमर्श के व्यापक आयामों में आज भारत एक उभरती हुई शक्ति के रूप में अपने प्रभाव, विचार एवं नेतृत्व का अद्वितीय परिचय दे रहा है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में, जहाँ भू-राजनीतिक समीकरण निरंतर परिवर्तनशील हैं, वहाँ भारत का उदय केवल आर्थिक या सैन्य क्षमता पर आधारित नहीं है, बल्कि उसके प्राचीन ज्ञान, लोकतांत्रिक मूल्य, सामूहिक हित की सोच तथा मानवता-केंद्रित दृष्टिकोण पर भी आधारित है।

21वीं सदी का यह दशक वैश्विक शक्ति-संतुलन में परिवर्तनों का समय माना जा रहा है। एशिया की उन्नति, वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज का सशक्त होना, और विकसित राष्ट्रों के मध्य आर्थिक-राजनीतिक चुनौतियाँ। ये सभी वैश्विक मंच पर नए नेतृत्व की आवश्यकता को प्रकट करते हैं। इस संदर्भ में भारत का उदय अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भारत आज संयुक्त राष्ट्र, G 20, ब्रिक्स, क्वाड, BIMSTEC, ASEAN संगठनों में अपनी सशक्त भूमिका निभा रहा है। G 20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने "एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य" (One Earth, One Family, One Future) के मंत्र के माध्यम से विश्व को सहयोगवाद और पर्यावरण-संरक्षण का संदेश दिया। यह संदेश भारतीय दर्शन से प्रेरित था और विश्व ने इसे व्यापक स्वीकार्यता प्रदान की।

स्वयं भारत की पृष्ठभूमि भी इसी विचार का समर्थन करती है - ”अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।“ अर्थात् संकुचित विचार वाले व्यक्ति में ‘यह मेरा है और यह पराया’ का भेद रहता है, परंतु उदारचित्त व्यक्ति के लिए संपूर्ण पृथ्वी ही परिवार है।

भारत का यह उदार व समन्वयकारी दृष्टिकोण विश्व राजनीति के कठोर वातावरण में नई दिशा और संतुलन लेकर आया है। भारत आज विश्व की प्रमुख आर्थिक शक्तियों में गिना जाता है। 2025 तक भारत विश्व की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में स्थान बनाने की दिशा में तीव्र गति से अग्रसर है। डिजिटल अर्थव्यवस्था, स्टार्टअप इकोसिस्टम, विनिर्माण क्षेत्र, सेवा क्षेत्र तथा कृषि-प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति अद्वितीय है।

भारत ने विश्व को Digital Public Infrastructure (DPI) का एक सफल मॉडल दिया है, जिसमें UPI, आधार, डिजिलॉकर जैसी पहलों ने सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन को गति दी है। अनेक राष्ट्र आज इन मॉडलों को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

साथ ही, भारत वैश्विक निवेश का प्रमुख केंद्र बनकर उभर रहा है। बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत को अपनी उत्पादन इकाइयों का केंद्र बना रही हैं। इस आर्थिक प्रगति के पीछे एक स्थिर लोकतांत्रिक व्यवस्था, विशाल बाजार, युवा जनसंख्या और सुधारवादी नीतियों का बड़ा योगदान है।

वैश्विक स्तर पर शांति और स्थिरता के प्रयासों में भारत सदैव अग्रणी रहा है। संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षकों में भारत दुनिया के सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक है। भारत का दृष्टिकोण शक्ति-प्रदर्शन पर नहीं, बल्कि न्याय, संतुलन, संवाद और कूटनीति पर आधारित है। भारत ने रूस-यूक्रेन संकट हो या पश्चिम एशिया की अस्थिरता दोनों में संयत, तटस्थ और मानवता-प्रधान रुख अपनाया।

भारतीय दर्शन का यह आदर्श आज भी उतना ही सार्थक है-

”अहिंसा परमो धर्मः“  अर्थात, अहिंसा ही सर्वाेच्च धर्म है।

भारत आज अपने शांति- प्रधान दृष्टिकोण को वैश्विक कूटनीति में सशक्त रूप से प्रकट कर रहा है। साथ ही साथ ग्लोबल साउथ के देशों की समस्याएँ, जैसे गरीबी, जलवायु परिवर्तन, असमान विकास, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी पर लंबे समय तक वैश्विक महाशक्तियों का ध्यान पर्याप्त नहीं रहा। लेकिन भारत ने इन देशों की आवाज को वैश्विक मंच पर एक नई मजबूती प्रदान की है।

भारत ने G 20 में ग्लोबल साउथ के लिए विशेष शिखर सम्मेलन आयोजित कराया और उनकी चिंताओं को विश्व के सामने प्रमुखता से रखा। इससे वैश्विक नीतियों में व्यावहारिक परिवर्तन होने लगे और विकासशील देशों की भागीदारी बढ़ी।

यह भारत की उसी विरासत का विस्तार है, जो कहती है-

”परहितार्थं इदं शरीरम्।“ अर्थात यह शरीर दूसरों के कल्याण या भलाई के लिए है। 

अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत निरंतर नए आयाम स्थापित कर रहा है। चंद्रयान और मंगलयान अभियानों ने भारत को वैश्विक अंतरिक्ष महाशक्तियों की श्रेणी में स्थापित कर दिया है। सौर मिशन, गगनयान तथा उपग्रह-लॉन्चिंग सेवाओं का तेज विकास भारतीय विज्ञान का प्रमाण है। भारत न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान में अग्रणी है, बल्कि मानव-सेवा के उद्देश्य से वैज्ञानिक नवाचारों को लोकहित में प्रयोग करने का प्रयास भी करता है। तकनीक को मानव-केंद्रित बनाना भारत की विशेषता है, जो उसे पश्चिमी राष्ट्रों से अलग पहचान देती है।

आज जब विश्व जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौतियों से गुजर रहा है, भारत ने इस दिशा में अत्यंत संतुलित और व्यवहारिक नेतृत्व प्रस्तुत किया है। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के माध्यम से भारत ने विश्व को सौर ऊर्जा के लिए एक विस्तृत मंच प्रदान किया।

‘पंचामृत’ योजना के माध्यम से भारत ने COP के मंच पर जलवायु संरक्षण के लिए नई दिशा दी है। यह पहल भारतीय चिंतन के उसी सूत्र से प्रेरित है-”माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।“ -पृथ्वी मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ।

भारतीय संस्कृति में प्रकृति केवल संसाधन नहीं, बल्कि पूजनीय सत्ता है। यही दृष्टि भारत को पर्यावरणीय नेतृत्व प्रदान करती है। योग और आयुर्वेद जैसे भारतीय ज्ञान-परंपराओं ने आज विश्व स्तर पर मानव स्वास्थ्य, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ घोषित करना भारत की सांस्कृतिक कूटनीति की सफलता का परिणाम है।

भारत के इन योगदानों ने विश्व को यह अनुभव कराया कि भारत केवल आधुनिक विज्ञान में ही नहीं, बल्कि प्राचीन विज्ञान और दर्शन में भी महान है।

भारतीय संस्कृति ने विश्व को एक अद्भुत संदेश दिया है-

”लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु।“ अर्थात सारी दुनिया के लोग सुखी हों। इसीं की भांति आज भारत अपने सांस्कृतिक ज्ञान के माध्यम से विश्व शांति, स्वास्थ्य और मानवीय विकास का नेतृत्व कर रहा है

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत ने लोकतांत्रिक प्रणाली के उच्च आदर्शों को सदैव सुरक्षित रखा है। विभिन्न धर्मों, भाषाओं, संस्कृतियों और विचारों को एक सूत्र में पिरो कर भारत ने यह सिद्ध किया है कि विविधता में ही एकता की आधारशिला मजबूत होती है। भारत के संविधान में निहित मानवाधिकार, न्याय, समानता और स्वतंत्रता के मूल्य विश्व के लिए प्रेरणास्रोत हैं। लोकतंत्र में भारत की यह गहरी आस्था उसकी वैश्विक भूमिका को और मजबूत बनाती है।

भारत की बढ़ती जनसंख्या, युवा शक्ति, आर्थिक सामर्थ्य, वैज्ञानिक प्रगति, सांस्कृतिक धरोहर और सामूहिक हित में सोच, ये सभी कारक संकेत देते हैं कि आने वाले दशक भारत-प्रधान विश्व व्यवस्था (ndia-centric multipolar world) की नींव रखेंगे।

भारत का दृष्टिकोण शक्ति-प्रधान नहीं, बल्कि सहयोग- प्रधान है। यह नए युग की वैश्विक राजनीति में संतुलन, न्याय और मानवता के आदर्शों को स्थापित करेगा।

भारतीय चिंतन की यह परिकल्पना ”समग्रं सत्त्वं समग्रं ज्ञानं समग्रं तपः।“ शाश्वत है, जो बताती है कि संपूर्ण सृष्टि में संतुलन और समरसता ही वास्तविक विकास का आधार है।

वैश्विक पटल पर भारत का उदय केवल शक्ति, सम्पदा या तकनीकी दक्षता का परिणाम नहीं है, बल्कि यह उसके प्राचीन ज्ञान, आधुनिक सोच, लोकतांत्रिक परंपराओं एवं मानवता-प्रधान दृष्टिकोण का समन्वित प्रतिफल है। भारत आज न केवल अपने लिए, बल्कि विश्व के लिए सोचता है; वह न केवल विकास करता है, बल्कि विकास का नया मॉडल प्रस्तुत करता है; और न केवल आगे बढ़ता है, बल्कि दुनिया को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

इस प्रकार, भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका मानवता को एक ऐसे नए मार्ग की ओर ले जा रही है, जहाँ विज्ञान हो, परन्तु मानवीयता के साथ; शक्ति हो, परन्तु अहिंसा के साथ; विकास हो, पर समग्रता के साथ। 

इस प्रकार भारतीय दृष्टिकोण आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि ”कृते प्रतिशोधं न समाचरेत्। दुर्जनः स्वभावेन न त्यजत्येव।।“ और इसलिए भारत दुनिया को प्रतिशोध नहीं, बल्कि सहयोग, समन्वय और सतत् शांति का मार्ग दिखाता है।

निश्चय ही आने वाले समय में भारत विश्व को एक ऐसी दिशा देगा, जिसमें सह-अस्तित्व, सतत विकास और मानवीय सभ्यता का उत्कर्ष सबसे प्रमुख होंगे। भारत का उदय विश्व के लिए आशा, संतुलन और प्रगति का प्रतीक बनकर बढ़ता ही जाएगा।


लेखक किसान पी.जी. कॉलेज, सिंभावली (हापुड़) चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के अंग्रेजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर है।