जहाँ गोरी और काली नदियों का मिलन होता है… वहीं लगता है उत्तराखण्ड-कुमाऊँ का सबसे अनूठा और सबसे रौनकदार मेला — जौलजीबी मेला
यह सिर्फ एक मेला नहीं, ये सदियों पुरानी परम्परा, संस्कृति और सीमा से सटे क्षेत्रों के निवासियों के जीवन की झलक है।यहाँ भारत ही नहीं, नेपाल और तिब्बत तक की सुगंध घुली मिलती है। लकड़ी के हस्तशिल्प हों, ऊनी कपड़े हों या पारम्परिक मसाले—ये मेला सबका दिल जीत लेता है।
प्रत्येक वर्ष हजारों लोग यहाँ आकर गोरी-काली नदी के संगम तट के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं और मेले की रौनक समेटे लौट जाते हैं।जौलजीबी मेला मात्र एक मेला नहीं, एक अनुभव है जो एक बार भारत-नेपाल की सांझा संस्कृति को अनुभव कर लेता है वो इसे कभी नहीं भूलता।
तो एक बार पिथौरागढ़ में फिर सज चुका है अनूठा मेला। जहाँ
भारत-नेपाल की साँझी संस्कृति सबको आकर्षित कर रही हैं, वहीं
काली-गोरी संगम पर पारम्परिक उल्लास की गूँज सुनाई दे रही है। एक ओर जहाँ पहाड़ी
संस्कृति और हस्तकला से स्टॉल्स सजे हैं तो वहीं नेपाली स्टॉल्स भी लोगों को अपनी
ओर आकर्षित कर रहे हैं, तिब्बत के
उत्पाद भी खूब धूम मचा रहे हैं। दूसरी ओर सांझी संस्कृति के व्यंजन मुंह में रस
घोल रहे हैं।
इस बीच भारतीय सुरक्षा बलों ने सराहनीय पहल करते हुए मेला परिसर में चिकित्सा शिविर लगाया है। जहाँ जरूरतमंदों को निशुल्क उपचार दिया जा रहा है।



