23 जुलाई, 2025 को भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस, भा.म.सं.) अपनी स्थापना के 70 वर्ष पूरे कर रहा है। आज यह केवल भारत का ही सबसे बड़ा श्रमिक संगठन नहीं है, बल्कि एक ऐसा आंदोलन है, जिसने देश के श्रमिक आंदोलन की आत्मा को दिशा, उद्देश्य और भारतीय मूल्य दिए। 1955 में स्थापित, भारतीय मजदूर संघ ने उस दौर में जन्म लिया, जब भारत का श्रमिक आंदोलन वामपंथी विचारधाराओं और पार्टी की राजनीति के प्रभाव में था। लेकिन मजदूर संघ ने इस धारा से हटकर एक नई राह चुनी – राष्ट्र सर्वोपरि, श्रमिक सदा प्रथम की भावना के साथ।
स्थापना का उद्देश्य – विदेशी विचारधाराओं से आज़ादी
स्वतंत्रता के बाद भारत में श्रमिक संगठनों पर समाजवाद और मार्क्सवाद का गहरा असर था। अधिकतर यूनियन राजनीतिक दलों से जुड़ी हुई थीं और उनका मुख्य एजेंडा था “श्रमिक बनाम पूंजीपति” संघर्ष। लेकिन भा.म.सं. के संस्थापक दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने एक अलग सोच रखी। उनका मानना था कि भारत के श्रमिकों को सशक्त बनाने के लिए देशज विचारधारा की आवश्यकता है, न कि यूरोपीय संघर्ष की नकल। उन्होंने श्रमिकों को राष्ट्र निर्माण का स्तंभ माना, न कि क्रांति का मोहरा। मजदूर संघ ने श्रमिक आंदोलन को भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक जड़ों से जोड़ा – जहां श्रम केवल जीविका नहीं, बल्कि सेवा और धर्म होता है।
“राष्ट्र पहले, श्रमिक सदा” – केवल नारा नहीं, नीति है।
भारतीय मजदूर संघ का यह मूल मंत्र केवल भाषणबाजी नहीं है। यह नीति निर्धारण से लेकर जमीनी संघर्ष तक हर फैसले का मार्गदर्शन करता है।
इस सिद्धांत के तहत –
- औद्योगिक विकास का समर्थन करता है, लेकिन श्रमिक अधिकारों की कीमत पर नहीं।
- हर आर्थिक सुधार का मूल्यांकन करता है – क्या यह देश और श्रमिक, दोनों के हित में है?
- राजनैतिक दलों से पूर्ण स्वतंत्रता रखता है, जिससे उसका ध्यान केवल श्रमिक हितों पर केंद्रित रहता है।
सात दशक की यात्रा – हाशिए से मुख्यधारा तक
1955 में एक छोटे संगठन के रूप में शुरू हुआ भारतीय मजदूर संघ आज भारत का सबसे बड़ा श्रमिक संगठन है, जिसकी सदस्य संख्या 10 करोड़ से अधिक है। हर क्षेत्र में उपस्थिति – निर्माण, परिवहन, रेलवे; संगठित और असंगठित उद्योग; खेतिहर मजदूर; गिग इकॉनॉमी और प्लेटफॉर्म वर्कर्स यह विस्तार केवल नारेबाज़ी या हड़तालों से नहीं हुआ। मजदूर संघ ने नीति, संगठन और संवाद के ज़रिये यह विश्वास अर्जित किया है। भारतीय मजदूर संघ का एक बड़ा योगदान यह है कि उसने हड़ताल को अंतिम विकल्प के रूप में रखा, न कि पहला। उसका संघर्ष मॉडल है – 1. पहले संवाद; 2. फिर लिखित ज्ञापन; 3. जागरूकता अभियान; 4. शांतिपूर्ण प्रदर्शन; 5. और यदि ज़रूरत हो तो अंतिम चरण में हड़ताल। इस रणनीति के कारण बीएमएस को न केवल श्रमिकों का, बल्कि सरकार और नियोक्ताओं का भी सम्मान प्राप्त है।
श्रम संहिता में भूमिका – विरोध नहीं, सुझाव
हाल ही के वर्षों में जब केंद्र सरकार ने नई श्रम संहिताएं (Labour Codes) लागू कीं, तो भामसं ने उसका अंध विरोध नहीं किया। उसने बारीकी से हर प्रस्ताव का अध्ययन किया, और जहां ज़रूरत थी, सुझाव दिए, दबाव बनाया, और बदलाव करवाए। कुछ प्रमुख पहल – • सुरक्षा मानकों में कमी का विरोध (OSH कोड); • गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा में शामिल करने की मांग; • लेबर लॉ में छूट की सीमा पर आपत्ति भामसं ने यह दिखाया कि आप विकास के साथ चल सकते हैं, लेकिन अपनी बात मजबूती से रखकर।
नई सोच – संपत्ति का न्यायपूर्ण वितरण
भारतीय मजदूर संघ संपत्ति के ज़बरदस्ती वितरण (redistribution) की बजाय न्यायसंगत वितरण (judicious distribution) की बात करता है। इसका अर्थ है – • श्रमिकों को उत्पादन में उनके योगदान के अनुसार हिस्सा मिले; • मजदूरी महंगाई और उत्पादकता से जुड़ी हो; • स्वास्थ्य, आवास, पेंशन जैसी बुनियादी सुविधाएं हर श्रमिक को मिलें; • सहकारी संस्थाओं और श्रमिक स्वामित्व को बढ़ावा मिले।
“श्रमिक एक हों, विश्व बचे” – युद्धरत दुनिया में एक सन्देश
आज जब दुनिया युद्ध, कट्टरता और आर्थिक असमानता से जूझ रही है, मजदूर संघ का पुराना नारा “श्रमिक एक हों, विश्व बचे” और भी प्रासंगिक हो गया है। यह नारा अब सिर्फ एक आंदोलन नहीं, एक वैश्विक मानवीय अपील बन चुका है। दुनिया को श्रमिक संघर्ष की नहीं, श्रमिक एकता और सहयोग की ज़रूरत है। भारतीय मजदूर संघ का मानना है कि भारत अपने धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दुनिया को दिखा सकता है कि आधुनिकीकरण और मानवीयता साथ चल सकते हैं।
आगामी चुनौतियाँ: गिग इकोनॉमी, एआई और असंगठित क्षेत्र
बीएमएस के सामने आने वाले समय में कई नई चुनौतियाँ हैं – • गिग वर्कर्स की असुरक्षा (डिलीवरी, टैक्सी, ऐप आधारित काम); • स्वचालन और AI के कारण पारंपरिक नौकरियों का खतरा; • जलवायु परिवर्तन के चलते विस्थापन; • असंगठित क्षेत्रों में सामाजिक सुरक्षा का अभाव।
बीएमएस इनसे भाग नहीं रहा। यह मांग कर रहा है –
- श्रमिकों के लिए पुनः प्रशिक्षण (Reskilling)
- डिजिटल प्लेटफॉर्म पर श्रमिकों की निगरानी और अधिकार
- ग्रामीण व लघु उद्योगों को समर्थन
- हर श्रमिक के लिए यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी
नैतिकता और श्रमिक शिक्षा पर ज़ोर
भारतीय मजदूर संघ केवल अधिकारों की बात नहीं करता – वह कर्तव्यों की शिक्षा भी देता है। वह श्रमिक अध्ययन केंद्र, नैतिक शिक्षा शिविर, और नेतृत्व विकास कार्यक्रम चलाता है ताकि श्रमिक केवल आंदोलनकारी नहीं, जागरूक नागरिक और राष्ट्र निर्माता बन सकें। 70 वर्षों में भारतीय मजदूर संघ ने दिखा दिया कि राजनीति से स्वतंत्र रहकर, संघर्ष और समाधान के बीच संतुलन बनाकर, तथा राष्ट्र और श्रमिक को साथ रखकर, एक श्रमिक संगठन कैसे रचनात्मक शक्ति बन सकता है। आज जब वैश्विक आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी परिवर्तन की आंधी चल रही है, भारत को ऐसे श्रमिक आंदोलन की ज़रूरत है जो केवल विरोध नहीं करता, दिशा भी देता है। मजदूर संघ यही कर रहा है – और आने वाले दशकों में भी यही करेगा। क्योंकि अंततः, जब दुनिया लड़ रही हो, “श्रमिक एक हों, विश्व बचे” – यही उम्मीद, यही समाधान है।