कूटनीति, शक्ति और स्वाभिमान: भारत ने बदल दिया विश्व का खेल
पिछले दस वर्षों में भारत ने साबित कर दिया है कि वह केवल एक क्षेत्रीय खिलाड़ी नहीं, बल्कि वैश्विक समीकरण बदलने वाली कूटनीतिक शक्ति है। रूस-यूक्रेन युद्ध, गाज़ा संकट, अमेरिकी दबाव, तेल-डिप्लोमेसी और जी 20, ब्रिक्स (BRICS) में नेतृत्व जैसे हर मोर्चे पर भारत ने अपना कद बढ़ाया। यही कारण है कि आज विश्व केवल भारत को सुनता नहीं, दिशा-निर्देशन के लिए भी उसकी ओर निहारता भी है।
इस लेख में मैं यह बताना चाहूंगा कि, किस तरह भारत ने अपनी आर्थिक आवश्यकताओं, ऊर्जा-सुरक्षा, बहुपक्षीय भागीदारी, रक्षा व सुरक्षा रणनीति और कूटनीति के माध्यम से अपनी स्थिति मज़बूत की है; किन चुनौतियों का सामना किया है; और कैसे वह बदलती वैश्विक व्यवस्था में खुद को स्थापित कर रहा है। निस्संदेह, एशिया पावर इंडेक्स की यह रिपोर्ट कि अमेरिका और चीन के बाद भारत विश्व की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बन गया है। यह रिपोर्ट भारत की सशक्त कूटनीति को दर्शाती है।
अप्रैल 2025 के पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा पाकस्तिान के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प ने हस्तक्षेप और मध्यस्थता का बार-बार दावा किया। लेकिन भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि इस सैन्य कार्रवाई और बाद के संघर्ष विराम में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी। भारत ने यह माना कि ऑपरेशन पूरी तरह देश की सुरक्षा-नीति और आतंकी नेटवर्क के विरुद्ध है, न कि किसी बाहरी दबाव या मध्यस्थता का नतीजा।
2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ। जिस पर अमेरिका सहित कई पश्चिमी दे रूस को दोषी ठहराकर उसके खिलाफ प्रतिबंध लगा बैठे। इस अवधि में विशेष रूप से तेल और ऊर्जा आपूर्ति को लेकर रूस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव था। अमेरिका ने तो भारत पर 50 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ तक लगा दिया। लेकिन भारत ने अपनी आर्थिक आवश्यकताओं, ऊर्जा- सुरक्षा, और व्यापक राष्ट्रीय हितों को देखते हुए रूस से तेल आयात जारी रखा। इससे दुनिया में यह स्पष्ट हो गया कि भारत स्वतंत्र विदेश नीति का पालन कर रहा है। वह किसी गुट की पिच पर नहीं, बल्कि अपने हितों के आधार पर निर्णय ले रहा है।
भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार (विशेषकर ऊर्जा और उर्वरक) में 2021-22 की तुलना में 2022-23 में लगभग दोगुना बढ़ गया।
यह आर्थिक, कूटनीतिक चाल न केवल भारत के लिए लाभदायक रही, बल्कि उसने रूस को पश्चिम के आर्थिक दबावों से बचाकर उसकी स्थिति मजबूत रखने में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग किया। यह एक तरह से, भारत ने मध्य पोल की भूमिका निभाई।
रूस से तेल आयात जारी रखने के लिए पश्चिमी देश, विशेषकर पश्चिमी गठबंधन ने भारत पर दबाव और धमकियां दी थीं। पर भारत ने न केवल अपनी नीति बनाए रखी, बल्कि यह साबित किया कि वह बाहरी दबाव में नहीं झुकेगा।
विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय भारत की स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और व्यावहारिक विदेश नीति का प्रतीक है। दरअसल, भारत ने किसी एक ओर झुकाव की बजाय, देशहित, सुरक्षा, विकास और रणनीति को प्राथमिकता दिया।
भारत की अर्थव्यवस्था तथा रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए तेल और ऊर्जा की स्थिर आपूर्ति अत्यंत महत्वपूर्ण है। वास्तव में, भारत लगभग 90 प्रतिशत हिस्से का तेल (क्रूड) आयात करता है।
दरअसल, 2021 में रूस भारत के तेल आपूर्तिकर्ताओं में एक मामूली हिस्सा था, लेकिन युद्ध के बाद स्थिति बदली- रूस से तेल आयात बढ़ा, और 2024-25 में रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया।
यह पहल ”बचत और समझदारी“ की नीति न सिर्फ तेल की लागत को नियंत्रित करने में मददगार रही, बल्कि संकट के समय में भारत की आर्थिक और ऊर्जा-सुरक्षा बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण रही। वर्ष 2022-2024 की अवधि में रूस से रियायती कच्चे तेल आयात करके भारत ने लगभग 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत की।
भारत की अर्थव्यवस्था पर तेल की भारी निर्भरता के कारण अंतरराष्ट्रीय तेल मूल्यों में उतार-चढ़ाव देश की आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन, भारत ने अपने आर्थिक ढाँचे, आरक्षित विदेशी मुद्रा भंडार और चालू खाता घाटे को मजबूत बनाए रखा है।
एशिया पावर इंडेक्स की हाल में जारी रिपोर्ट ने यह बता दिया है कि भारत की अर्थव्यस्था काफी सशक्त हो गई है। इस प्रकार की आर्थिक वृद्धि न सिर्फ भारत को वैश्विक आर्थिक मानचित्र पर मजबूत करती है, बल्कि उसे रणनीतिक और कूटनीतिक शक्ति भी देती है जिससे भारत भविष्य में महाशक्ति के दावेदार के रूप में तालमेल बनाए रख सकता है।
भारत-रूस के बीच 25 वर्ष से अधिक पुरानी रणनीतिक साझेदारी है। 3 अक्टूबर 2000 को इस साझेदारी की नींव रखी गई थी, जिसे बाद में भारत ने अपनी सूझबूझ से विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी में उन्नत किया। लेकिन 2014 के बाद भारत ने यह तय किया कि रक्षा, सुरक्षा, आयात और साझेदार देशों की विविधता रखी जाए ताकि किसी एक देश पर निर्भरता कम हो। यानी, रूस के साथ रक्षा व ऊर्जा सहयोग बरकरार रखते हुए भारत पश्चिमी देशों, मध्य पूर्व, जापान, यूरोपीय देशों आदि के साथ भी रिश्ते तलाशने लगा।
इस तरह की रणनीति से भारत ने यह संदेश दिया कि वह न किसी एक गुट का फालोअर या सिपाही बनेगा, न किसी का दबाव स्वीकार करेगा, बल्कि वह अपने राष्ट्रीय हित, सुरक्षा और विकास को प्राथमिकता देगा।
परिवर्तित वैश्विक सत्ता- संरचना में, बहुपक्षीय संगठन और मंचों की अहमियत बढ़ गयी है। परिवर्तित परिस्थितियों में भारत ने समय की मांग को भांपते हुए यहां पर अपनी सक्रिय भागीदारी की। विगत वर्षों में जी20 और ब्रिक्स में भारत की भूमिका विशेष रूप से बढ़ी है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिक्स देशों का वैश्विक उत्पादन अब G 7 देशों के पार चला गया है।
भारत अपने आर्थिक, भू-राजनीतिक और कूटनीतिक महत्व के कारण ब्रिक्स में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, जिससे वह वैश्विक शक्ति संतुलन में अहम खिलाड़ी बन गया है। वहीं, G 20 जैसे मंचों में भी भारत की भागीदारी, नेतृत्व और आवाज ने उसे विश्व आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था में मजबूत स्थिति दी है।
इन पहलों ने एक बहु-धुरी विश्व की ओर भारत की भूमिका को स्थापित किया है, जहाँ भारत न सिर्फ विकासशील देशों की आवाज बन रहा है, बल्कि सामरिक, आर्थिक और राजनीतिक संतुलन का महत्वपूर्ण केन्द्र भी बन रहा है।
भारत की आर्थिक तस्वीर पिछले दस सालों में तीव्र गति से बदली। कुछ प्रमुख संस्थानों के अनुमान के अनुसार, भारत की नॉमिनल जीडीपी भविष्य में लगभग दोगुनी हो सकती है। ऐसा आंकलन है कि 2030-31 तक यह 7 ट्रिलियन यूएस डॉलर के करीब हो जाएगी। इसका मतलब है कि भारत की वैश्विक जीडीपी में हिस्सेदारी और बढ़ेगी और प्रति व्यक्ति आय में भी बढ़ोत्तरी होगी।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान, व्यापार, निवेश, ऊर्जा, रक्षा व बहुपक्षीय भागीदारी के समन्वय से बढ़ा है। इससे भारत अमेरिका और चीन के बाद तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बन गया है।
तेल आयात में रूसी कच्चे तेल ने लागत को कम किया, जिससे भारत की आर्थिक व बाहरी स्थिति, बाहरी ऋण, विदेशी मुद्रा भंडार संतुलित बना। इसी समय, रक्षा, व्यापार, निवेश और अन्य आर्थिक क्षेत्रों में विविधता लाने की नीति ने भारत की आर्थिक स्वायत्तता और रणनीतिक स्थिरता बनाए रखी। इन कार्रवाइयों ने मिलकर भारत को मात्र राजनीतिक या सामरिक महाशक्ति नहीं बल्कि आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर किया है।
भारत ने गुट-निरपेक्षता और बहुपक्षीय संतुलन की नीति अपनाई है, जिससे वह किसी एक देश और पार्टी का पक्ष नहीं लेता। हालांकि यह संतुलन हमेशा आसान नहीं रहता। रूस-पश्चिम तनाव, मध्य पूर्व ऊर्जा संकट, रक्षा सहयोग, वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों में कौन-कौन से साझेदार चुनना है, यह हमेशा रणनीतिक निर्णय मांगता है।
यह वास्तविकता है कि भारत हर दबाव, हर आर्थिक समस्या, हर रणनीतिक चुनौती में गुट-निरपेक्ष नहीं रह सकता। वह परिस्थितियों के अनुसार कूटनीतिक समझदारी, आर्थिक मजबूती और आंतरिक विकास के मध्य सामंजस्य बनाकर कदम उठाता है।
जब हम महाशक्ति या विश्व-शक्ति की बात करते हैं, तो सिर्फ विदेश नीति, ऊर्जा या आर्थिक आंकड़ों से काम नहीं चलता। देश के अंदर गरीबी, असमानता, बुनियादी ढाँचा, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय, रोज़गार इन सबका संतुलन ज़रूरी है।
भारत जैसे विशाल और विविध देश में जहां विकास असमान रहा है, महाशक्ति बनने के दावे के साथ-साथ जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं। अगर कूटनीतिक और आर्थिक सफलता का लाभ हर नागरिक तक नहीं पहुंचा, तो महाशक्ति की तस्वीर अधूरी रह जाएगी।
दुनिया आज अस्थिरता, युद्ध, खाद्य-ऊर्जा संकट, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक पुनर्रचना, सैन्य गठबंधनों, प्रतिस्पर्धा और नए राजनीतिक ढाँचों से गुज़र रही है। ऐसे में, भारत के लिए स्थिर नीति, रणनीतिक समझ और लचीलापन बनाए रखना होगा।
पिछले दस वर्षों में भारत ने यह स्पष्ट किया है कि वह न किसी एक गुट का गुलाम है, न किसी के दबाव में झुकने वाला। उसने यह साबित किया है कि उसकी विदेश नीति स्व-निर्धारित, व्यावहारिक, देशहित व राष्ट्रहित पर आधारित है।
भारत की नीति रही है, ऊर्जा-सुरक्षा और आर्थिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देना। बहुपक्षीय मंचों में सक्रिय भागीदारी और नेतृत्व। रक्षा, व्यापार, ऊर्जा आदि में साझेदारियों को विविध बनाना। बाहरी दबावों में समझदारी व संतुलन बनाए रखना। साथ ही, आंतरिक विकास, सामाजिक न्याय व आर्थिक समावेश पर ध्यान बनाए रखना। यह सब मिलकर भारत को एक नए भारत की ओर ले जा रहे हैं जो न सिर्फ क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक पटल पर अपनी छाप छोड़ने वाला है।
अतंतः यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत ने पिछले एक दशक में कूटनीति, रणनीति, आर्थिक सोच और वैश्विक भागीदारी के क्षेत्र में एक स्वर्णिम अध्याय शुरू किया है। यदि यह दृष्टिकोण, राजनीतिक इच्छा और आंतरिक सुधार और अपने रणनीतिक कदमों के साथ भारत अविरल, अडिग कदमों के साथ सतत अग्रसर होता रहता है तो वह शीघ्र ही विश्व गुरू के आसान पर विराजमान होगा।
लेखक आईएमएस, गाजियाबाद में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में विभागाध्यक्ष है।




