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संघ का सही से पता तब चलेगा जब आप संघ की शाखा में प्रत्यक्ष आकर देखेंगे और समझेंगे-डॉ. मोहन भागवत जी

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कोलकाता व्याख्यानमाला  – 100 वर्ष की संघ यात्रा नए क्षितिज

द्वितीय सत्र

संघ शताब्दी वर्ष के निमित्त कोलकाता में आयोजित एक दिवसीय व्याख्यानमाला के द्वितीय सत्र में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी के वक्तव्य के प्रमुख बिंदु -

  • विचारों की स्पर्धा हो सकती है, लेकिन सबका मन एक रहना जरूरी है।
  • अमेरिका में अब्राहम लिंकन ने अपने विरोधी को रक्षा मंत्री बनाकर एकता सूत्र को बढ़ाया।
  • संघ का काम मित्रता के आधार पर शुद्ध सात्विक कार्य है।
  • संघ का सही से पता तब चलेगा जब आप संघ की शाखा में प्रत्यक्ष आकर देखेंगे और समझेंगे।
  • स्वयंसेवक सभी क्षेत्रों में कार्य करते हैं। संघ किसी का नियंत्रण नहीं करता – न बाहर से, न अंदर से। संघ को अंदर से देखना आवश्यक है।
  • डॉ. हेडगेवार नहीं होते तो संघ नहीं होता। संघ को समझने के लिए उनका चरित्र जरूर पढ़ना चाहिए।
  • संघ अपनी स्थापना के दिवस से ही सामूहिकता के भाव से चलता है। संघ एक सामूहिक कार्यपद्धति है।
  • हिंदुस्थान हिन्दू राष्ट्र है; डॉ. हेडगेवार के समय में इसकी मान्यता नहीं थी। उस समय वे हिन्दू समाज के संगठन के लिए खड़े हुए।
  • अत्यंत विपरीत परिस्थिति में, आर्थिक रूप से बेहद अभावग्रस्त होने के बावजूद शुद्ध अंतःकरण, निस्वार्थ बुद्धि से डॉ. हेडगेवार ने संघ का कार्य प्रारंभ किया।
  • समाज के स्नेह के भरोसे संघ आगे बढ़ा। यह ईश्वरीय कार्य है।
  • दुनिया के किसी स्वयंसेवी संगठन का इतना विरोध नहीं हुआ, जितना संघ का हुआ। हमले हुए और हत्याएं भी हुई, लेकिन स्वयंसेवक आगे बढ़े। एक भी स्वयंसेवक के मन में इसको लेकर कटुता का भाव नहीं है।
  • गुरु दक्षिणा से संघ चलता है। बाहर से कुछ नहीं लेते, स्वयंसेवक सब चलाते हैं।
  • संघ आर्थिक रूप से स्वावलंबी है। पाई-पाई का हिसाब रखा जाता है और ऑडिट होता है।
  • भारत के कुल पौने सात लाख गाँवों में से सवा लाख स्थानों में संघ है। 45,000 शहरों-नगरों में अभी हम आधे में पहुँचे हैं और आधे में पहुँचना है।
  • विरोध के वातावरण में हम सजग रहते थे। अब अनुकूलता के वातावरण में हमें तेज गति से कार्य का विस्तार करना है। कार्यकर्ताओं की गुणवत्ता का सुदृढ़ीकरण हमारे शताब्दी वर्ष का एजेंडा है।
  • समाज में बहुत बड़ी संख्या में अच्छे लोग हैं। अपने घर का पैसा लगाकर बिना प्रसिद्धि के ही समाज की सेवा में लगे लोगों की बड़ी संख्या है। हम इसे समाज की सज्जन शक्ति कहते हैं।
  • समाज की सज्जन शक्ति का नेटवर्क स्थापित करना, परस्पर समन्वय करना और इनमें पूरकता लाने के कार्य में संघ साथ रहेगा।
  • देशव्यापी कार्यकर्ताओं के आधार पर सम्पूर्ण समाज में आचरण का परिवर्तन करने का समय आ गया है।
  • आचरण अर्थात आदत में परिवर्तन करने की पांच बातों को स्वयंसेवक पहले अपने जीवन में लाएं, इसकी शुरूआत हमने संघ के शताब्दी वर्ष में की है। ये पांच विषय हैं:
  • सामाजिक समरसता : मंदिर, पानी, श्मशान – सब हिन्दुओं के लिए समान हो।
  • कुटुम्ब प्रबोधन : परिवार के सदस्यों के बीच परस्पर संवाद होना चाहिए। सप्ताह में एक दिन नियत समय पर परिवार के सभी सदस्यों को एकत्र आना। साथ बैठकर बिना मीनमेख निकाले भोजन करना। भजन करना। और चार घंटे के समय में अपने कुटुम्ब, अपनी परम्परा की चर्चा करना।
  • पर्यावरण : पर्यावरण संरक्षण की चर्चा बहुत होती है पर वह चर्चा कृति में नहीं आती। इसके लिए छोटे-छोटे उपाय हम स्वयं से करें। अपना घर स्वच्छ रहना चाहिए और सामने का रास्ता भी। पानी बचाओ, सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करना, छत पर पेड़-पौधे लगाओ।
  • स्वदेशी : स्वावलंबन और रोजगार के साथ आत्मनिर्भरता के लिए स्वदेशी वस्तुओं को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। स्वयं का बोध होना चाहिए कि हम कौन हैं। अपने आचरण में स्वदेशी भाषा, भ्रमण, भेष, भोजन और भवन होना चाहिए।
  • संविधान : प्रस्तावना, नागरिक कर्तव्य, मार्गदर्शक तत्व और नागरिक अधिकार हमें अपने बच्चों को पढ़ाने चाहिए। संविधान निर्माताओं के हिन्दू मन का भाव संविधान में प्रकट होता है।

इन पांच परिवर्तनों की पहल को लेकर हम समाज में जाने वाले हैं।

  • हिन्दुओं की शक्ति जागरूक हो रही है और निश्चित रूप से होगी।
  • भारत, हिन्दुस्थान और हिन्दू – ये सब समानार्थी हैं।
  • सबके साथ चलना, सबको साथ लेकर चलने वाला संघ के अलावा दूसरा कोई संगठन नहीं है।
  • संघ सम्पूर्ण समाज को अपना मानता है। इस अपनत्व के आधार पर हम सब एक हों। सब शाखा में आएं यह आवश्यक नहीं। आएं तो अच्छा ही है। क्योंकि संघ की शाखा के समान निस्वार्थ बुद्धि और प्रामाणिकता का प्रशिक्षण देने वाली दूसरी कोई कार्यप्रणाली (मैकेनिज्म) नहीं है।
  • संघ श्रेय लेने के लिए काम नहीं करता है ।