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अंतरिक्ष भी अछूता नहीं प्रदूषण से

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अंतरिक्ष भी अछूता नहीं प्रदूषण से 

निया में प्रगति की परिभाषा जितनी व्यापक आज दिखाई देती है, पहले कभी नहीं थी। समय के साथ विकास का अर्थ बदलता गया है और आज यह स्थिति बन चुकी है कि प्रगति का कोई निश्चित मापदंड या स्थायी मानदंड नहीं रहा। हर देश, हर संस्था और हर वैज्ञानिक संगठन अपने-अपने स्तर पर आगे बढ़ने की होड़ में जुटा हुआ है। विकास की इस दौड़ ने विज्ञान में ऐसी गति पैदा कर दी है कि मानव ने ना केवल पृथ्वी के सीमित दायरों को लांघा है, बल्कि अंतरिक्ष तक अपना अधिकार स्थापित करने की कोशिश शुरू कर दी है। चंद्रमा, मंगल, धूमकेतु, क्षुद्रग्रह - सब अब वैज्ञानिक अभियानों के लक्ष्य बन चुके हैं। अंतरिक्ष अब कल्पना नहीं रहा, बल्कि एक प्रयोगशाला बन चुका है।

लेकिन प्रगति की चमक के साथ एक छाया भी चलती है और अंतरिक्ष विज्ञान के संदर्भ में यह छाया प्रदूषण के रूप में उभर रही है। जिस प्रकार पृथ्वी का वातावरण, जल, मिट्टी, समुद्र और हवा प्रदूषण के संकट से गुजर रहे हैं, उसी तरह अब अंतरिक्ष भी इस विनाशकारी प्रभाव से अछूता नहीं बचा। यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है, क्योंकि अंतरिक्ष को अब तक मानव ने एक स्वच्छ, अनंत और सुरक्षित क्षेत्र माना था, जहां प्रदूषण का सवाल शायद ही कोई सोचता था। किंतु आज वैज्ञानिक अनुसंधान इस सच्चाई की पुष्टि करते हैं कि अंतरिक्ष में प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है और इसका असर धीरे-धीरे पृथ्वी के माहौल, मौसम प्रणाली और तकनीकी ढांचे पर पड़ने लगा है।

हाल ही में लंदन यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए अध्ययन ने अंतरिक्ष प्रदूषण की गंभीरता को नए सिरे से उजागर किया है। इस अध्ययन के अनुसार रॉकेट प्रक्षेपण और उपग्रहों से निकलने वाला रासायनिक प्रदूषण पृथ्वी की ऊपरी वायुमंडलीय परतों पर 500 गुना अधिक नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। यह प्रभाव इसलिए खतरनाक है क्योंकि ऊपरी परतों में प्रदूषण लंबे समय तक रुका रहता है और बहुत धीमी गति से नष्ट होता है। पृथ्वी का निचला वातावरण तो किसी हद तक प्रदूषण को छांट सकता है, लेकिन ऊपरी परतों में इस तरह की प्राकृतिक सफाई की प्रक्रिया न के बराबर है। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में बताया है कि पहले कभी भी मानव गतिविधियों से वायुमंडल की उच्चतम परतों में इतना रासायनिक अपशिष्ट नहीं छोड़ा गया था। अब यह स्तर लगातार बढ़ रहा है, विशेषकर पिछले एक दशक में उपग्रह प्रक्षेपणों की तीव्र वृद्धि के बाद।

पिछले कुछ वर्षों में विशाल सैटेलाइट समूहों ने अंतरिक्ष प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक पहुंचा दिया है। स्पेसएक्स की स्टारलिंक श्रृंखला और वनवेब जैसे निजी समूहों ने अंतरिक्ष में हजारों उपग्रह भेज दिए हैं। केवल स्टारलिंक ही अब तक छह हजार से अधिक उपग्रह भेज चुका है और भविष्य में दसियों हजार और भेजने की योजना है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन सैटेलाइट कंस्टेलेशनों ने अंतरिक्ष प्रदूषण को तीन गुना तक बढ़ा दिया है। इतनी बड़ी संख्या में उपग्रहों के कारण न केवल अंतरिक्ष की भीड़ बढ़ रही है, बल्कि इनके निष्क्रिय होने पर यह मलबे में बदल जाते हैं। धरती पर वापस आते समय इनके जलने से अत्यंत खतरनाक रासायनिक गैसें निकलती हैं, जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती हैं। यदि यह प्रक्रिया इसी तरह जारी रही, तो भविष्य में पृथ्वी के वातावरण की संरचना बदल सकती है।

यह सही है कि उपग्रहों ने मानव सभ्यता को अकल्पनीय सुविधाएं प्रदान की हैं। आज हमारा मोबाइल फ़ोन, इंटरनेट, टेलीविजन, डीटीएच, एटीएम, बैंकिंग सेवा, आपदा चेतावनी, मौसम पूर्वानुमान, कृषि वैज्ञानिक विश्लेषण, नेविगेशन सिस्टम, समुद्री और हवाई मार्गदर्शन सब कुछ उपग्रहों पर आधारित है। खेती में बोआई और कटाई का समय तय करने से लेकर तूफान, चक्रवात या सुनामी की चेतावनी तक, हर क्षेत्र में उपग्रह अनिवार्य बन चुके हैं। परंतु जितनी तीव्रता से अंतरिक्ष सेवाओं की मांग बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से उस पर भार और प्रदूषण भी बढ़ रहा है।

अंतरिक्ष में जमा होने वाला मलबा आज सबसे गंभीर समस्या बनकर उभर रहा है। इसे ‘स्पेस डेब्री’ कहा जाता है। यह निष्क्रिय उपग्रहों, टूटे हुए रॉकेट हिस्सों, सौर पैनलों, धातु के टुकड़ों और सूक्ष्म कणों से मिलकर बनता है। यह मलबा पृथ्वी की कक्षा में अद्भुत तीव्र गति से घूमता है। कई वस्तुएं 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं। ऐसी स्थिति में एक छोटे से पेंच या धातु के कण से टकराव भी किसी सक्रिय उपग्रह को चकनाचूर करने के लिए पर्याप्त होता है। दुखद बात यह है कि जब दो मलबे आपस में टकराते हैं, तो वे और अधिक मलबा पैदा करते हैं, जिससे समस्या और भी पेचीदा हो जाती है।

अंतरिक्ष मलबे के सबसे खतरनाक स्रोतों में से एक है एंटी-सैटेलाइट परीक्षण। कई देशों ने अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिए पुराने उपग्रहों को मिसाइल से नष्ट किया है, जिससे हजारों बड़े और लाखों छोटे कण उत्पन्न हुए। 2007 में चीन द्वारा किया गया एएसएटी परीक्षण तो इतिहास का सबसे विनाशकारी परीक्षण माना जाता है, जिसमें लगभग 3000 बड़े मलबे के टुकड़े पैदा हुए थे। इसी प्रकार 2021 में रूस द्वारा किए गए परीक्षण ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया था। इस तरह के परीक्षण अंतरिक्ष वातावरण को कई दशकों के लिए दूषित कर देते हैं, क्योंकि यह मलबा बहुत लंबे समय तक कक्षा में घूमता रहता है।

आज अंतरिक्ष का अधिकांश मलबा पृथ्वी की निचली कक्षा में जमा है, जिसे लो अर्थ ऑर्बिट (स्म्व्) कहा जाता है। यह क्षेत्र पृथ्वी से लगभग दो हजार किलोमीटर की ऊँचाई तक फैला है और अधिकांश संचार तथा पृथ्वी अवलोकन उपग्रह इसी कक्षा में रहते हैं। यह क्षेत्र अब धीरे-धीरे भीड़भाड़ वाला हो रहा है और वैज्ञानिकों को खतरा है कि यदि इसके नियंत्रण के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए, तो स्थिति केप्लर सिंड्रोम का रूप ले सकती है। केप्लर सिंड्रोम वह अवस्था है जिसमें अंतरिक्ष का एक क्षेत्र इतना मलबे से भर जाता है कि उसका उपयोग असंभव हो जाता है। यदि लो अर्थ ऑर्बिट इस अवस्था में पहुंचा, तो हमारी पूरी आधुनिक तकनीकी प्रणाली खतरे में पड़ जाएगी।

अंतरिक्ष देशों की संख्या और उपग्रहों की गिनती भी तेजी से बढ़ रही है। आज दुनिया में संचालित लगभग तेरह हजार उपग्रहों में से आधे से अधिक अकेले अमेरिका के हैं। रूस, चीन, भारत, ब्रिटेन और जापान भी बड़ी संख्या में उपग्रह संचालित कर रहे हैं। भारत ने भी पिछले कुछ दशकों में अंतरिक्ष क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। इसरो ने न केवल 1975 से अब तक 129 भारतीय उपग्रह लॉन्च किए हैं, बल्कि 36 देशों के 342 विदेशी उपग्रहों को भी अपने प्रक्षेपण यान से अंतरिक्ष में भेजा है। भारत का जी-सैटदृ7त् हाल ही में प्रक्षेपित किया गया, जिसने नौसेना की सामरिक क्षमताओं को अत्यंत सशक्त बनाया है।

लेकिन उपलब्धियों के बीच संकट भी उतना ही बड़ा है। आज अंतरिक्ष में लगभग 70 लाख किलोग्राम मलबा तैर रहा है। कई बार अंतरिक्ष यात्रियों ने वहां से गुजरते हुए छोटे मलबे से खतरा महसूस किया है। कई उपग्रह केवल टकराव के कारण नष्ट हो चुके हैं। पृथ्वी पर भी कई बार रॉकेटों के अवशेष या जले हुए टुकड़े गिर चुके हैं। केन्या और इंडोनेशिया जैसे देशों में हाल के वर्षों में ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें अंतरिक्ष से गिरने वाला मलबा नुकसान पहुंचा गया। यह स्पष्ट संकेत है कि खतरा अब केवल अंतरिक्ष तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पृथ्वी के लिए भी वास्तविक जोखिम बन चुका है।

अंतरिक्ष में बढ़ते प्रदूषण का असर पृथ्वी के पर्यावरण पर भी दिखने लगा है। जब उपग्रह पृथ्वी के वातावरण में दोबारा प्रवेश करते हैं, तो वे जलते समय विषैले धातु कण और रसायन छोड़ते हैं, जिनमें एल्युमिनियम ऑक्साइड प्रमुख है। यह गैस ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले समय में जब हजारों उपग्रह निष्क्रिय होंगे और एक-एक करके पुनः प्रवेश करेंगे, तब पृथ्वी की ओजोन परत पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है। यह परत पृथ्वी को सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचाती है। यदि इसमें छेद या कमी आती है, तो त्वचा रोग, कैंसर, फसलों की क्षति और समुद्री जीवन पर भी विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है।

समस्या की गंभीरता को देखते हुए कई वैज्ञानिक संगठन, अनुसंधान केंद्र और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ इस दिशा में समाधान खोजने में लगी हैं। लेकिन चुनौती अत्यंत कठिन है। अंतरिक्ष का कोई मालिक नहीं, इसलिए जिम्मेदारी तय करना भी मुश्किल है। हर देश और हर कंपनी अपनी सुविधा के अनुसार प्रक्षेपण करती है, लेकिन सफाई की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। अंतरराष्ट्रीय कानून अभी इतने मजबूत नहीं हैं कि कंपनियों को पुराने उपग्रह हटाने या मलबा साफ करने के लिए बाध्य किया जा सके। कुछ देशों ने अपने उपग्रहों में ऐसी तकनीक लगानी शुरू की है, जिससे वे अपने जीवनकाल के अंत में पृथ्वी के वातावरण में सुरक्षित ढंग से जलकर समाप्त हो सकें। परंतु यह उपाय अभी सीमित स्तर पर ही अपनाया जा रहा है।

अंतरिक्ष भविष्य की ऊर्जा, अनुसंधान, संचार और सुरक्षा का केंद्र बनने जा रहा है। कंपनियाँ बड़े पैमाने पर उपग्रह भेजने की योजना बना रही हैं। आने वाले समय में अमेज़न का कुईपर प्रोजेक्ट, स्पेसएक्स की विस्तारित स्टारलिंक योजना और यूरोप के नए प्रक्षेपण कार्यक्रम अंतरिक्ष में लाखों उपग्रहों की भीड़ पैदा कर सकते हैं। यह भीड़ यदि नियंत्रित न हुई तो अंतरिक्ष का वातावरण स्थायी रूप से प्रदूषित हो सकता है, जिसकी भरपाई कभी संभव नहीं होगी।

यह स्थिति स्पष्ट संकेत देती है कि अब मानव को अंतरिक्ष में अपने कदमों को सावधानी से रखना होगा। पृथ्वी के बाद अगर अंतरिक्ष भी प्रदूषित हो गया, तो हमारे पास विकल्प बेहद सीमित रह जाएंगे। विज्ञान की यह उन्नति तभी सार्थक मानी जाएगी जब हम इसकी जिम्मेदारियों को भी समझें। यदि अभी से प्रभावी कदम न उठाए गए, तो भविष्य में अंतरिक्ष में बढ़ता यह प्रदूषण पृथ्वी और मानव सभ्यता के लिए एक बड़ी आपदा का कारण बन सकता है।