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आत्मनिर्भरता का पर्याय बनता अमरोहा जिले का गांव मोहरका

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आत्मनिर्भरता का पर्याय बनता अमरोहा जिले का गांव मोहरका 

अमरोहा भारतीय गणराज्य के प्रांत उत्तर प्रदेश का एक जिला और शहर है और इस जिले का मुख्यालय भी यहीं है। यह मुरादाबाद मंडल का हिस्सा है। इस जिले का क्षेत्रफल 2,249 वर्ग किलोमीटर है। अमरोहा जिले में एक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र और चार विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र, धनौरा (सुरक्षित), नौगांवां सादत, अमरोहा और हसनपुर शामिल हैं। अमरोहा, जिसे पहले ज्योतिबा फुले नगर कहा जाता था, उत्तर प्रदेश सरकार ने 15 अप्रैल 1997 को इसका नाम बदलकर अमरोहा रख दिया साथ ही इसे जिला घोषित कर दिया। मोहरका पट्टी ग्राम पंचायत, अमरोहा जिला परिषद के गजरौला पंचायत समिति भाग में एक ग्रामीण स्थानीय निकाय है। मोहरका पट्टी ग्राम पंचायत क्षेत्राधिकार के अंतर्गत कुल 2 गाँव हैं। मोहरका पट्टी उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित एक गांव है। यह जिले का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला गांव है और क्षेत्रफल के हिसाब से जिले की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत है।

यूपी का अनोखा गांव जहां मस्जिद से होता है रोजगार का एलान, महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर: अमरोहा जनपद में गांव मोहरका पट्टी को बेटियों ने अपने हुनर से रोजगार वाला गांव बना दिया है। दिल्ली से कारोबारी गांव में आते हैं और मस्जिद में संपर्क करते हैं। वहां से काम के लिए एलान होता है, बेटियां आती हैं और आर्डर ले जाती हैं। 10 साल पहले तीन-चार घरों में शुरू हुआ काम अब 500 घरों तक फैला हुआ है। प्रशिक्षण के बिना ही पीढ़ी दर पीढ़ी हुनर बढ़ रहा है। घर-घर नारी सशक्तीकरण का नारा बुलंद हो रहा है। इस गांव में बिना सरकारी मदद के यहां की महिलाओं ने अपराध के लिए बदनाम गांव को अपने हुनर के दम पर नई पहचान दिलाई है। गांव में प्रवेश करते ही हर आंगन व चबूतरे पर महिलाएं साड़ी पर लगने वाली मोती की लेेस बनाती दिखती हैं। गांव की मस्जिद में दिल्ली के कारोबारी आते हैं, वहीं से महिलाओं को आर्डर दिए जाते हैं। 10 साल पहले तीन-चार घरों में काम शुरू हुआ था, अब करीब पांच सौ से अधिक घरों में काम किया जा रहा है। अब महिलाओं का हुनर ही यहां की पहचान है। गांव के अधिकांश घरों में महिलाएं लेस तैयार करने का काम करती हैं। ग्रामीण बताते हैं कि 10 साल पहले दो-तीन महिलाओं ने किसी तरह सीखकर लेस बनाने का काम शुरू किया। उन्हें देखकर अन्य महिलाओं में भी रोजगार को लेकर जागरूकता आई। पुरुष खेती करते हैं और घर पर महिलाएं लेेस से आय करती हैं। इसे पट्टी में जड़ी झालर भी कहा जाता है। महिलाओं के मुताबिक लेस की सप्लाई दिल्ली व गाजियाबाद के लिए की जाती हैं। उन्हें आर्डर के साथ लेस का रॉ मैटेरियल भी दिया जाता है। आर्डर भी सभी महिलाओं को बराबर-बराबर दिए जाते हैं। कारोबारी पिछले आर्डर का तैयार माल ले जाते हैं। एक झालर के सौ रुपयेः महिलाओं के मुताबिक एक झालर तैयार करने के सौ रुपये मिलते हैं। दिनभर में एक घर की महिलाएं पांच-छह लेेस तैयार कर लेती है। उन्हें पांच-छह सौ रुपये मिल जाते हैं। यानी एक परिवार को 15-20 हजार रुपये तक आय हो जाती है।

महिलाएं घर का काम भी करती हैं और खाली वक्त में लेेस तैयार करती हैं। महिलाओं के काम में परिवार के पुरुष भी पूरा सहयोग करते हैं। अधिकांश परिवार मुस्लिम होने के बाद भी किसी को महिलाओं के काम करने पर आपत्ति नहीं है। गांव में महिलाओं द्वारा मोतियों से जुड़ा हुआ काम किया जाता है।  गांव की परवीन बताती हैं कि इस कारोबार से सैकड़ों महिलाएं जुड़ी हैं। शादियों के सीजन में यह कारोबार अच्छा चलता है। नजमा का कहना है कि पांच-छह साल से इस कारोबार को कर रही हूं। परिवार का खर्चा ठीक चल रहा है। गांव की महिलाओं को देखकर ही मोतियों की लेस बनाने का तरीका सीखा था। अब आजीविका चलाने के काम आ रहा है। लेस के बारे में जानिएः लेस सादा कपड़े की 10 मीटर की पट्टी पर तैयार होती है। इसमें चमकीले धागों के साथ मोती लगाए जाते हैं। व्यापारी लेेस ले जाकर पॉलिस्टर की साड़ी पर लगवाते हैं। दिल्ली व गाजियाबाद में यह काम काफी होता है। व्यापारी भी एक लेेस को ढाई सौ रुपये तक में सा़ड़ी तैयार कराने वालों को बेच देते हैं।


लेखिका  झम्मन लाल पी. जी. कॉलेज हसनपुर जिला अमरोहा में असिस्टेंट प्रोफेसर (अंग्रेजी विभाग)  है।