संघ पद्धति के महत्वपूर्ण स्तम्भ है संवाद, समन्वय और सेवाभाव
संघ यात्रा -9 (2005-2015)
संघ यात्रा की अपनी इस यात्रा में हम आ पहुंचे हैं अपने नौवें पड़ाव पर जिसमें वर्ष 2005 से 2015 तक के काल की चर्चा करेंगे। इस काल के प्रारंभ में तत्कालीन सरसंघचालक के. एस. सुदर्शन जी के नेतृत्व में भारतीय समाज के दो वर्गों, मुस्लिम और ईसाई समुदाय को लेकर विशेष मंथन हुआ। उन्हें राष्ट्र की सांस्कृतिक मुख्यधारा से जोड़ने हेतु विशेष यत्न किये गये। सुदर्शन जी मुस्लिम और ईसाई धर्मगुरुओं के साथ निरंतर संपर्क में रहे। इसी का परिणाम था कि दोनों समुदायों में संघ को लेकर जो शंकाएं पनपाई गयी थीं उनका उन्मूलन हुआ। बाद में सुदर्शन जी की प्रेरणा से 2002 में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच अस्तित्व में आया जो आज भी मुस्लिम समाज के मध्य राष्ट्रीय जागरण हेतु सक्रिय है। पूज्य सुदर्शन जी के प्रयासों से संघ की संवाद परम्परा को गति मिली। 2 अक्टूबर 2002 को दिल्ली के केशव कुंज में एक विशिष्ट संवाद बैठक हुई जिसमें सीरिया, लीबिया, सूडान, ईरान तथा संयुक्त अरब अमीरात सहित 7 मुस्लिम देशों के राजदूत और राजनयिक उपस्थित थे। अप्रैल 2004 में दिल्ली के युवा केंद्र में मुस्लिम महिलाओं के अखिल भारतीय सम्मेलन में पूज्य सुदर्शन जी ने प्रतिभागिता की। 2006 में गुजरात के सूरत में अतिवृष्टि से एक बड़ा क्षेत्र बाढ़ से ग्रस्त हो गया। प्राकृतिक आपदा के इस अवसर पर सदैव के समान इस बार भी स्वयंसेवकों ने मोर्चा सम्भाला और 4,000 बाढ़ग्रस्त परिवारों की सहायता की। इसी वर्ष पूर्वी आंध्रप्रदेश में भी बाढ़ पीड़ित 2,000 परिवारों के लिए संघ के स्वयंसेवकों ने राहत शिविर लगाकर तन-मन-धन से सेवा कार्य किया। यह वर्ष संघ के द्वितीय सरसंघचालक प.पू. श्री गुरुजी की जन्मशती के रूप में मनाया गया। श्री गुरुजी जन्मशताब्दी के निमित्त पूरे देशभर में हिन्दू सम्मेलन, समरसता बैठकों, सद्भावना सम्मेलनों और श्री गुरुजी के साहित्य का वितरण किया गया। श्री गुरुजी जन्मशताब्दी के देशभर के कार्यक्रमों का दिल्ली में विशाल हिंदू सम्मेलन से समापन हुआ। सम्पूर्ण देश में हिंदू सम्मेलनों में करोड़ों हिंदुओं का सहभाग हुआ। समरसता सम्मेलनों में 13,000 संत और विविध जाति संप्रदायों के 1,80,000 सामाजिक नेताओं का सहभाग रहा। इसी वर्ष स्वयंसेवकों द्वारा 1857 की 150वीं वर्षगांठ मनाई गई। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की प्रेरणा से इसे ‘सलाम 1857’ के नाम से देश भर में मनाया। 10 मई को दिल्ली के मालवंकर हॉल में इस कार्यक्रम का उद्घाटन हुआ जिसमें तत्कालीन सरसंघचालक सुदर्शन जी उपस्थित थे। संघ की प्रेरणा से 7 अगस्त 2009 को ‘लाल किले से लाल चौक’ अर्थात् ‘हजरत निजामुद्दीन से हजरत बल’ की यात्रा की गयी जिसका उद्देश्य कश्मीर में अलगाववादियों को यह दर्शाना था कि भारत का मुस्लिम समुदाय देश की मिट्टी से जुड़ा है और राष्ट्रहित में देशवासियों के साथ है। इसी वर्ष श्री अयोध्या धाम में राम मंदिर के विषय को लेकर सुदर्शन जी की उपस्थिति में 200 मौलानाओं एवं इमामों ने सौहार्दपूर्ण मंथन किया। मार्च 2009 में पूज्य सुदर्शन जी ने स्वास्थ्य कारणों के चलते स्वयं को दायित्व मुक्त किया और 21 मार्च को उन्होंने तत्कालीन सरकार्यवाह डॉ. मोहन भागवत जी को पूज्य सरसंघचालक मनोनीत किया। मा. सुरेश भैयाजी जोशी सरकार्यवाह चुने गये। 28 सितंबर 2009 के दिन कुरुक्षेत्र के ऐतिहासिक संग्राम स्थल से संतों द्वारा ‘विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा’ प्रारम्भ हुई जिसका उद्देश्य भारत की कृषि प्रधान संस्कृति में गौ माता के महत्त्व, गौवंश के संरक्षण और संवर्धन के विषय को जन-जन तक पहुंचाना और गौरक्षा के लिए सरकार को सन्देश देना था। संघ ने अधिकृत रूप से इस यात्रा का समर्थन किया। इस अभियान के समर्थन में 8.34 करोड़ नागरिकों के हस्ताक्षर एकत्र किए गए, जिनमें 75,668 ईसाई और 10,73,142 मुस्लिम शामिल थे। 23,300 गांवों में संपर्क कार्यक्रम आयोजित किए गए और 11,32,117 लोगों ने इसमें भाग लिया। 201 सांसदों और 867 विधायकों ने इस अभियान के समर्थन में हस्ताक्षर किए। 1,23,796 केंद्रों पर ‘स्थानीय यात्राएं’ आयोजित की गईं, जिनमें 1,48,46,274 नागरिकों ने भाग लिया। यात्रा में 26000 किलोमीटर की दूरी तय की गई। 9271 पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं और 141035 अन्य लोगों, कुल 150306 प्रतिभागियों ने यात्रा को सफल बनाया। यह यात्रा 17 जनवरी 2010 को नागपुर में संपन्न हुई। 108 दिन चली ‘विश्वमंगल गो ग्राम यात्रा’ ने देश का अनवरत भ्रमण किया और दस हजार उपयात्राओं ने पूरे देश को मथ डाला। गांव-गांव, गली-गली, नगर-नगर, डगर-डगर यात्राओं का अभूतपूर्व स्वागत हुआ। इस यात्रा से विश्व के आधुनिक इतिहास में सबसे बडे़ जनमत संग्रह के रूप में यात्रा का हस्ताक्षर अभियान स्थापित हुआ। शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, रामानंदाचार्य, महामंडलेश्वर, अखाडे, जैन मुनि, बौद्व भिक्षु, जैन मुनि एवं आचार्य, नामधारी संत, वाल्मिकी संत, राम सनेही सम्प्रदाय, गायत्री परिवार, बह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, पातंजलीयोगपीठ, आर्ट ऑफ लिविंग, चिन्मय मिशन और आर्य समाज जैसे प्रतिनिधि संगठनों की सक्रिय भागीदारी से भारत का एकात्म भाव प्रगट हुआ। 2010 में उत्तर कर्नाटक में भयंकर बाढ़ आई, इस दौरान संघ के 2400 स्वयंसेवक राहत कार्य पर लगे और उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ पारस्परिक सामंजस्यता का परिचय देते हुए 180 गांवों को तत्काल राहत सामग्री पहुंचाई। इन लोगों के पुनर्वास हेतु सेवा भारती के तत्वावधान में 9 गांवों में 1680 घर बनाने का संकल्प लिया। इसी वर्ष पूज्य सरसंघचालक जी का देशव्यापी प्रवास हुआ, उनके प्रवास को लेकर स्वयंसेवकों में बहुत उत्साह रहा। केरल, मैंगलोर और महाकौशल जैसे स्थानों पर गणवेशधारी स्वयंसेवकों की संख्या 90,000 तक पहुंच गई। फरवरी 2011 में मध्यप्रदेश की प्राचीन नगरी मंडला में माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ का आयोजन किया गया। इसका उद्देश्य समाज और राष्ट्र विरोधी तत्वों द्वारा हिन्दू समाज को कमजोर करने के प्रयासों के बारे में जन-जागरण करना था। इस आयोजन में 336 जिलों की 1179 तहसीलों के 4000 गांवों से 415 विभिन्न अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों तथा 400 अन्य सामाजिक समूहों ने प्रतिभाग किया। इस त्रिदिवसीय कुम्भ में लगभग 30 लाख तीर्थयात्रियों ने भी आस्थापूर्वक कुंभ में प्रतिभागिता की। 15 सितम्बर 2012 को पूर्व सरसंघचालक सुदर्शन जी ने अपनी पार्थिव देह त्याग दी। इसी वर्ष सुरेश भैया जी जोशी पुनः सरकार्यवाह के दायित्व पर चयनित किये गये। 2013 में पूरा देश स्वामी विवेकानंद की 150 वीं जयंती मना रहा था। संघ ने भी स्वामी विवेकानंद की जयंती को सार्धशती उत्सव के रुप में मनाया। इस उत्सव के अंतर्गत विवेकानंद केंद्र के साथ सक्रिय रुप से काम करते हुए संघ ने राष्ट्र निर्माण के इस महती कार्य में रामकृष्ण मिशन, गायत्री परिवार, शारदा मठ, चिन्मय मिशन, स्वामीनारायण संप्रदाय, जैन संस्थाओं जैसे आध्यात्मिक संगठनों द्वारा किए गए महत्वपूर्ण प्रयासों का समन्वय किया और स्वामी विवेकानंद के संदेश को समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाया, जिनमें विद्यार्थी, शिक्षक, प्रख्यात शिक्षाविद, वैज्ञानिक, शिक्षाविद, रक्षाकर्मी, सेवानिवृत्त न्यायाधीश आदि शामिल थे। 2013 में देश ने एक और भीषण प्राकृतिक आपदा का सामना किया। चार धाम यात्रा के दौरान उत्तराखंड में भीषण प्राकृतिक आपदा में हजारों तीर्थ यात्री और स्थानीय निवासी काल को ग्रसित, घायल और बेघर हो गये। संघ के सैंकड़ों स्वयंसेवक राहत कार्यों में सम्मिलित हुए और भारतीय सेना को रक्षा कार्य में अनवरत सहयोग दिया। संघ के स्वयंसेवकों द्वारा निस्वार्थ भाव से निर्बाध सेवाकार्य की पूरे देश ने प्रशंसा की। 2014-15 में संघ की शाखाओं का 33,222 स्थानों तक विस्तार हुआ और कुल 51,330 शाखाएं हो गईं। 2014 के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड बहुमत के साथ विजय प्राप्त की। इस अवसर पर संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक में प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया कि यह पहली बार है कि समाज ने भारतीय विचार और विचारधारा से प्रेरित एक राजनीतिक दल को सत्ता में लाकर अपनी आस्था व्यक्त की है। इस बैठक में देश के नवनिर्माण से सम्बंधित आगामी नीतियों को लेकर सरकार की दिशा क्या होनी चाहिए उससे सम्बंधित बिन्दुओं पर भी मंथन हुआ।
वर्ष 2002 में तत्कालीन सरसंघचालक पूज्य सुदर्शन जी की प्रेरणा से मुस्लिम राष्ट्रीय मंच अस्तित्व में आया जो आज भी मुस्लिम समाज के मध्य राष्ट्रीय जागरण हेतु सक्रिय है। पूज्य सुदर्शन जी के प्रयासों से संघ की संवाद परम्परा को गति मिली।
इस शृंखला में इतना ही, अगली शृंखला में चर्चा करेंगे संघ यात्रा के अगले दशक की...