फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश
फर्रुखाबाद के किसानों ने दिखा दिया कि परंपरागत खेती के साथ नई सोच जोड़कर कैसे आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की जा सकती है। यहाँ के किसानों ने कम लागत और कम संसाधनों में ऐसी तकनीक अपनाई है जिससे उनकी आय बढ़ रही है और खेती में जोखिम कम हो गया है। चचेड़ा (सांप जैसा दिखने वाला पौधा) उगाकर किसान न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं अपितु स्थानीय रोजगार को भी बढ़ावा दे रहे हैं। युवा किसान रामरतन बताते हैं कि हर साल सब्जियों की बुवाई में नुकसान उठाना पड़ता था। लेकिन 'ढकाऊ पद्धति' यानी ऐसा तरीका जिसमें पॉलीथीन की चादर से शेड बनाकर सब्जियों को उगाया जाता है अपनाकर उन्होंने इस समस्या का समाधान खोज लिया। इस तकनीक से बीजों को पर्याप्त नमी मिलती है, रोगों से बचाव होता है और कम पानी में भी अच्छी फसल तैयार हो जाती है। इससे उत्पादन बढ़ा है और किसानों की आमदनी में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। चचेड़ा जैसी सब्जी, जो स्वास्थ्य से भरपूर है, अब 60 रुपए प्रति किलो की दर से बिक रही है। एक पौधे से 50 से 80 किलो तक पैदावार मिल रही है, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।
यह पहल आत्मनिर्भर भारत की भावना का जीवंत उदाहरण है। किसानों ने अपनी मेहनत, नवाचार और वैज्ञानिक सोच से दिखाया है कि यदि स्थानीय संसाधनों का सही उपयोग किया जाए तो खेती केवल जीविका नहीं, बल्कि आर्थिक समृद्धि का साधन बन सकती है। इस तरह की तकनीक से न केवल किसान लाभान्वित हो रहे हैं, बल्कि क्षेत्र में सब्जियों की उपलब्धता भी बढ़ रही है। कम लागत, अधिक उत्पादन और जोखिम से बचाव ये तीनों तत्व आत्मनिर्भरता की नींव मजबूत कर रहे हैं।