उत्तर प्रदेश: अतीत की विरासत भविष्य की प्रेरणा
भारतवर्ष की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक चेतना में यदि किसी राज्य का सर्वाधिक गहन योगदान रहा है, तो वह है उत्तर प्रदेश। यह भूमि केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि सभ्यताओं का पालना, आंदोलनों की जन्मस्थली और संस्कारों की पाठशाला रही है। गंगा, यमुना और सरयू की निर्मल धाराओं से सिंचित यह प्रदेश हजारों वर्षों की यात्रा करते हुए आज भी अपने गौरवशाली अतीत की छाया में एक सुनहरे भविष्य की ओर अग्रसर है। उत्तर प्रदेश का इतिहास वेदों और पुराणों की ऋचाओं से आरंभ होता है। यही वह भूमि है जहाँ रामायण और महाभारत जैसी अमर गाथाओं की पृष्ठभूमि रची गई। अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मभूमि है, तो मथुरा भगवान श्रीकृष्ण की लीलाभूमि। काशी को ‘मोक्ष की नगरी’ कहा जाता है, जहाँ की गलियों में आज भी अध्यात्म की गूंज सुनाई देती है। ये स्थल न केवल धार्मिक महत्त्व रखते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति की जीवंत मिसालें भी हैं। बौद्ध धर्म के इतिहास में भी उत्तर प्रदेश का स्थान विशिष्ट है। सिद्धार्थ से बुद्ध बनने की यात्रा यहीं पूर्ण हुई। सारनाथ में भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश दिया था, जिससे बौद्ध धर्म का शुभारंभ हुआ। यही नहीं, जैन धर्म के तीर्थंकरों, सूफी संतों, और भक्ति कालीन कवियों ने भी इसी भूमि को अपनी साधना की धरा बनाया। कबीर, तुलसीदास, रहीम, सूरदास जैसे संतों ने जनमानस को भाषा, भक्ति और दर्शन के माध्यम से जोड़ा। राजनीतिक दृष्टि से भी उत्तर प्रदेश सदैव से भारत के हृदयस्थल के रूप में उभरा है। मुगल सल्तनत की राजधानी आगरा और फतेहपुर सीकरी रही, तो नवाबी संस्कृति का केंद्र अवध बना। आजादी के आंदोलन में उत्तर प्रदेश की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, चंद्रशेखर आजाद और पंडित नेहरू जैसी विभूतियों ने इसी भूमि पर जन्म लेकर स्वाधीनता की अलख जगाई। आधुनिक भारत के निर्माण में उत्तर प्रदेश की भूमिका केवल ऐतिहासिक स्मृतियों तक सीमित नहीं रही। स्वतंत्रता के बाद राजनीति, प्रशासन, साहित्य, कला, विज्ञान और खेल के क्षेत्र में इस राज्य के लोगों ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। भारत के सबसे अधिक प्रधानमंत्री इसी राज्य से हुए हैं, जिसने इसे ‘राजनीतिक राजधानी’ जैसा दर्जा दिलाया। आज उत्तर प्रदेश न केवल जनसंख्या की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य है, बल्कि इसकी विविधता भी इसे विशेष बनाती है। यहाँ की भाषाएँ-हिंदी, अवधी, ब्रज, भोजपुरी, बुंदेली-कवि हृदयों की उपज हैं। उत्तर प्रदेश की संस्कृति में होली की मस्ती से लेकर मुहर्रम की संवेदना, दीपावली की आभा से लेकर ईद की रौनक तक, सब कुछ समाहित है। यह गंगा-जमुनी तहजीब का सबसे सुंदर उदाहरण है, जहाँ विभिन्न धर्मों, जातियों और संस्कृतियों के लोग सौहार्द के साथ रहते हैं। राज्य की कृषि परंपरा इसकी रीढ़ रही है। गंगा के मैदानी क्षेत्र में उपजाऊ भूमि, नदियों की उपलब्धता और मेहनतकश किसान-इन सबने मिलकर इसे ‘भारत का अन्न भंडार’ बनाया है। गेहूँ, चावल, गन्ना, आलू और सब्जियों की भरपूर पैदावार न केवल प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाती है, बल्कि अन्य राज्यों को भी खाद्य आपूर्ति में सहायता करती है। हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश ने विकास की नई ऊँचाइयों को छुआ है। इंफ्रास्ट्रक्चर, सड़क, रेल, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा और डिजिटल क्रांति के क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, गंगा एक्सप्रेसवे, डिफेंस कॉरिडोर जैसे परियोजनाओं ने औद्योगिक विकास को नई दिशा दी है। राज्य सरकार द्वारा निवेशकों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया जा रहा है, जिससे घरेलू और विदेशी निवेश आकर्षित हो रहा है। लखनऊ, नोएडा, कानपुर और वाराणसी जैसे शहर अब केवल ऐतिहासिक या सांस्कृतिक केंद्र नहीं, बल्कि औद्योगिक और आईटी हब के रूप में उभर रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रदेश तेजी से प्रगति कर रहा है। नए विश्वविद्यालयों, मेडिकल कॉलेजों और तकनीकी संस्थानों की स्थापना से युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है। कौशल विकास योजनाओं के माध्यम से युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ठोस प्रयास हो रहे हैं। पर्यटन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का महत्त्व वैश्विक है। यहां के धार्मिक स्थलों-अयोध्या, मथुरा, काशी, प्रयागराज, चित्रकूट, श्रावस्ती की ओर लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष आकर्षित होते हैं। ताजमहल, जो विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है, भारत की पहचान बन चुका है। सांस्कृतिक उत्सवों, कुम्भ मेला, रंग महोत्सव, और देव दीपावली जैसे आयोजनों ने उत्तर प्रदेश को सांस्कृतिक पर्यटन का केन्द्र बना दिया है। स्वाभाविक है कि इस तेजी से बढ़ते विकास के साथ-साथ चुनौतियाँ भी हैं। जनसंख्या का बोझ, बेरोजगारी, शहरीकरण का असंतुलन, पर्यावरणीय दबाव और सामाजिक असमानताएँ-इन सभी से जूझते हुए उत्तर प्रदेश को सतत् विकास की ओर अग्रसर होना है। किन्तु जिस राज्य की धरती पर राम, कृष्ण, बुद्ध और कबीर जैसे महान व्यक्तित्वों ने जन्म लिया हो, वहाँ के जन-मन में समस्याओं से पार पाने की सामर्थ्य भी निहित होती है। आज उत्तर प्रदेश एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ अतीत की महान विरासत उसके पाँव तले नींव की तरह मजबूत है, और भविष्य की संभावनाएँ आकाश की तरह असीम हैं। यह राज्य भारत के सामाजिक और राजनीतिक जीवन की धुरी है और जब तक उत्तर प्रदेश प्रगति नहीं करता, तब तक भारत की समग्र प्रगति अधूरी रह जाती है। ऐसे में आवश्यकता है कि हम उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक गरिमा को केवल गौरवगाथा के रूप में न देखें, बल्कि उसे प्रेरणा का स्रोत मानते हुए आज की आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य करें। युवा वर्ग, जो आज डिजिटल क्रांति के साथ जुड़ा है, यदि अपनी जड़ों की समझ के साथ आगे बढ़े, तो उत्तर प्रदेश की पहचान केवल एक राज्य के रूप में नहीं, बल्कि भारत की प्रगति की धुरी के रूप में होगी। हमारे पुरखों ने जिस उत्तर प्रदेश की नींव संस्कृति, ज्ञान, धर्म और संघर्ष से रखी, आज उसी प्रदेश को हम नवाचार, उद्यमिता, शिक्षा और सेवा के माध्यम से नये युग की प्रेरणा बना सकते हैं। यह राज्य यदि एक समय में रामराज्य का प्रतीक था, तो आज वह सुशासन, विकास और समावेशी समाज का आदर्श बन सकता है। उत्तर प्रदेश की मिट्टी में वह सामर्थ्य है जो भारत को नेतृत्व दे सकती है-संस्कृति में, नीति में, अर्थव्यवस्था में और मूल्यों में। अतीत की यह विरासत ही वह दीप है, जिसकी रोशनी से हम भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं और जब यह दीपक प्रज्वलित होगा, तब केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरा भारत आलोकित होगा।