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देश
की सीमाओं को सुरक्षित करने का जितना दायित्व प्रत्येक नागरिक का भी है, लोगों को देश की सीमाओं के प्रति जागरूक रखने के लिये तथा अपने दायित्व का बोध कराने के लिये संघ द्वारा ‘सीमा जागरण मंच’का गठन किया गया
·
राष्ट्र की
आंतरिक तथा बाह्य सुरक्षा अनिवार्य है। संघ इस तथ्य के प्रति सर्वदा जागरूक रहा है कि “शक्ति राष्ट्रीय जीवन का अमृत है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज भारत की
सार्वभौमिक मूल चेतना के ध्वज-पोत के
रूप में तो सिद्ध है ही, साथ में संसार का सबसे विशाल
स्वैच्छिक सांस्कृतिक संगठन भी स्थापित हुआ है।
माननीय डाक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार जी को, जो 20वीं शताब्दी
के दूसरे और तीसरे दशक के
स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय राजनीति के देदीप्यमान सितारे थे, स्वतंत्रता के आगमन
की आहट सुनाई दे गई थी। परन्तु, उन्हे स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् के भारत
की बनने वाली स्थिति की चिंता थी। भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस की अंग्रेजी शासन के
प्रति लचर नीति, हिन्दू समाज के दोहन व
उस के प्रति उस की
उदासीनता, हिन्दू समाज में बिखराव तथा आजादी के लिए अपने
प्राणों की बाजी लगा
देने वाले क्रांतिकारी दलों की कांग्रेस के नेतृत्व
द्वारा की जाने वाली
अवहेलना से वे चिंतित
थे। वे एक ऐसे
संगठन का निर्माण करना चाहते
थे जो राजनीति से हट
कर राष्ट्र की मुख्य सांस्कृतिक धारा अर्थात
हिन्दू समाज को एकजुट करके भारत
के पुनरुत्थान का माध्यम बने। काम
तो किसी प्रबल धारा के विरुद्ध नौका खेने
के सामान था, परन्तु उनका शिव संकल्प भी कम प्रबल
न था। आज का वटवृक्ष
रुपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उसी संकल्प का परिणाम है।
सदा से ही इस संगठन
के चिंतन का आधार भारतवर्ष
का समग्र पुनरोत्थान रहा है। मार्च 25,1973 को नागपुर में अखिल
भारतीय प्रतिनिधि सभा में दिये गए अपने अंतिम
उदबोधन में पूज्य सरसंघचालक श्री गुरूजी ने स्पष्ट किया था
कि, “हमारे सभी कार्यकलापों का एक ही
ध्येय होना चाहिए कि हम अपने
राष्ट्र को किस प्रकार
विश्व में सर्वोच्च सम्मानित स्थान पर खड़ा कर
सकें। इसे संघ की भाषा में
भारत के विश्व गुरु बनाने
की संकल्पना कहा जाता है। संघ के मनीषियों का मानना
रहा कि ‘नियति ने भारत को
एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी प्रदान की है। विश्व
ने भारत को सदा से
प्रज्ञा पुंज तथा मानव चेतना के नजरिये से देखा
है। आओ हम भारत
को उन ऊंचाइयों तक ले
जाएँ ताकि उस की चेतना
से पूरा विश्व पुष्पित हो जाये।
शक्ति ही सुरक्षा का
आधार:- नैसर्गिक है कि
संसार के लगभग 222 देशों की पंक्ति
में शीर्ष स्थान प्राप्त करने के लिए देश
को समृद्धि, शांति और सर्वांगी विकास की आवश्यकता
होगी। इन सब को
सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्र
की आंतरिक तथा बाह्य सुरक्षा अनिवार्य है। संघ इस तथ्य के
प्रति सर्वदा जागरूक रहा है कि “शक्ति राष्ट्रीय जीवन का
अमृत है। हमारे स्वतंत्र तथा समृद्धिशाली राष्ट्रीय जीवन के लिए एकमात्र
आधार अजय राष्ट्रीय सामर्थ्य ही है - एक ऐसा
सामर्थ्य जो आक्रामक शक्तियों के हृदयों
में आतंक उत्पन्न करेगा तथा अन्य राष्ट्रों को हमसे मैत्री
सम्बन्ध प्राप्त करने के लिए उत्सुक
बनायेगा। वास्तव में दुर्बल बने रहना अधिक सबल बाहरी शक्तियों को आक्रमण तथा लूट-खसोट के लिए आमंत्रण
देना है। इस प्रकार दुर्बल लोग ही
विश्व शांति के भंग होने
के उत्तरदायी हैं।
सम्भवतः इसी कारण से संघ की
वेषभूषा, संरचनाएं, समता, अनुशासन, समयबद्धता, रैयतिक विधि विधान, ध्येय निष्ठा, प्रशिक्षण विधि, सामरिक घोष इत्यादि पक्ष सुरक्षाबलों जैसे ही बने हैं।
इन पर छत्रपति शिवाजी के हिंदवी
साम्राज्य के सुरक्षाबलों की कार्य
प्रणाली की गहरी छाप
है। वास्तव में संघ उन सभी संगठनों,
समूहों तथा व्यक्तियों का हृदय से
सम्मान करता आया है जिन्होंने भारत की
संस्कृति और स्वतंत्रता की रक्षा
के लिए बलिदान दिया है या जीवन
भर
परिश्रम किया है। अतः स्वयंसेवकों के ह्रदय में राष्ट्र
की सशस्त्र सेनाओं के प्रति असीम श्रद्धा
रहती है। संघ ने तो नेताजी
सुभाष चंद्र बोस द्वारा संगठित आजाद हिन्द फौज को भी उतना
ही सम्मान दिया है जितना कि भारत
की सेवारत
सशस्त्र सेनाओं को।
संघ
का पूर्ण विश्वास है कि देश
को स्वतंत्र कराने में आजाद हिन्द फौज की
मुख्य भूमिका रही थी। द्वितीय विश्व
युद्ध की
समाप्ति पर सारा देश ‘जय हिन्द‘और ‘दिल्ली चलो' के नारों से गूँज
उठा। ब्रिटिश भारतीय सैनिक भी इस लहर
से अछूते नहीं रहे। अंग्रेज जान गए कि अब
वे ब्रिटिश भारतीय सेना के सहारे भारत पर
शासन नहीं कर सकते। इस तरह
से आजाद हिन्द फौज का शौर्य देश की
आजादी का वास्तविक कारण बना।
दिल्ली के लाल किले में आजाद हिन्द फौज के कमांडरों पर चले
कोर्ट मार्शल के दौरान कोर्ट के अधिकार
को चुनौती देते हुए जनरल शाह नवाज खान ने आजाद हिन्द
फौज को खड़ा करने
की परिस्थियों पर स्पष्टीकरण देते हुए
कहा था कि उन्होंने
युद्ध आजाद भारत की अंतरिम सरकार के नियमित
युद्धक-बलों के सदस्य के तौर
पर लड़ा था जोकि अपनी
मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए
युद्ध करने के सभ्य नियमों
के अनुरूप युद्धरत थी। अतः मैंने कोई ऐसा अपराध नहीं किया है कि मुझपर
कोर्ट मार्शल या किसी भी
अन्य कोर्ट में मुकदमा चले।
राष्ट्रीय सुरक्षा
की अवधारणा:- किसी भी
देश की सुरक्षा के कई एक
आयाम रहते हैं- जैसे कि आर्थिक सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरण सुरक्षा, भोजन और
जल की सुरक्षा, इलेक्ट्रॉनिक एवं साइबर
सुरक्षा परन्तु इन सब से
महत्वपूर्ण आयाम है अलगाववादी तत्त्वों से उसकी
आंतरिक सुरक्षा तथा उसकी भू, नभ, आकाश की निर्दिष्ट सीमाओं तथा साइबर
एवं अंतरिक्ष की असीमित सीमाओं पर निर्विरोध
नियंत्रण। “आज के सन्दर्भ
में राष्ट्रीय सुरक्षा की परिधि में एक
परिपक्व एवं आक्रमणशील लचीली राजनीतिक व्यवस्था, मानव संसाधन, मजबूत एवं समर्थ आर्थिक ढांचा, प्रौद्योगिकी क्षमता, प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता सहित औद्योगिक
आधार, तथा अंतोत्वगत्वा सैन्य शक्ति सम्मिलित
रहते हैं।”
राष्ट्रीय असुरक्षा के जो संभावित
कारण रहते हैं उन में दूसरे
देशों द्वारा किया गया सैन्य अथवा साइबर आक्रमण, विदेशी शक्तियों द्वारा पोषित आतंकवादियों की विनाशकारी गतिविधियां, गैर-सरकारी उग्र तत्वों
द्वारा घुसपैठ, नशीले पदार्थों तथा जाली नोटों के तस्कर- समूहों की आपराधिक
उग्र गतिविधियाँ और साथ में
ही प्राकृतिक आपदाएं आदि सम्मिलित रहते हैं।
इन सभी का समाधान राष्ट्र की समुचित
शक्ति, प्रचंड एवं सौम्य (हार्ड-सॉफ्ट पावर) दोनों ही मिला कर,पर निर्भर करता है। इस तथ्य को
किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है
कि भारत की प्रचंड शक्ति उस की
सशस्त्र सेनाओं में निवास करती है।
“भारतीय सेना के अनेकों गुणों ने जिन
में बहुमुखी क्षमता, अनुकूलनशीलता, निस्स्वार्थ भाव, तथा संसाधन सम्पन्नता इत्यादि प्रमुख हैं उसे इस प्रकार गठित किया
है कि वह राष्ट्र
सेवा के लिए सदा
और हर समय तैयार
रहती है। बाढ़, सूनामी या भूकंप हो, किसी शिशु
को बोरवेल से निकलना हो, साम्प्रदायिक दंगे हों
या फिर अलगावादियों का दमन करना
हो भारतीय सेनाएँ सर्वव्यापी रहती हैं। साथ ही, उन की निरंतर
दृष्टि मातृभूमि के प्रहरी के रूप
में सतत बनी रहती है। वे राष्ट्र का गौरव
हैं और उसका ब्रह्मास्त्र
भी।
संपर्क, सहयोग
तथा सहायता
काल:- आजाद भारत
के आरम्भिक वर्षों, विशेष कर 1947 में कश्मीर में पाकिस्तान के आक्रमण के पश्चात्
से, से ही संघ
का सम्बन्ध राष्ट्र की सशस्त्र सेवाओं के साथ
बनने लगा था। देश की जनतन्त्रात्मिक व्यवस्थाओं के अनुरूप
तथा सशस्त्र बलों की मर्यादाओं को ध्यान
में रखते हुए संघ ने वर्दीधारियों से उचित
दूरी तो बनाए रखी
परन्तु युद्ध की परिस्थियों में देश
हित के लिए संपर्क,
सहयोग तथा सहायता की नीति अपनाई।
वर्ष 1947-48 में जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान के विरुद्ध, 1962 में चीन के विरुद्ध तथा 1965 व 1971 में
फिर पाकिस्तान से लड़े गए
युद्धों में जिस प्रकार का सहयोग स्वयंसेवकों ने सशस्त्र सेनाओं को दिया वह
इतिहास के पन्नों में स्वर्ण
अक्षरों में अंकित है। भारत सरकार ने उस महत
योगदान से अभिभूत होकर राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के दस्ते को 1963 की गणतंत्र
दिवस की परेड में
सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया था।
किसी अ-सरकारी संगठन की इस प्रकार
की भागीदारी अभूतपूर्व घटना थी।
लगभग 25 वर्ष के इस प्रकार
से
देश के संकट काल में दिए गए अहेतु योगदान के दो
ठोस परिणाम रहे। प्रथम, निहित स्वार्थों व संघ- विरोधी सरकारी व गैर
सरकारी तंत्र द्वारा सशस्त्र सेनाओं में संघ के विरुद्ध दुष्प्रचारित भ्रांतियां दूर हुईं
और संघ की छवि एक
अ-राजनीतिक अपितु राष्ट्रनीत प्रभावी संगठन के रूप में
उभरी। दूसरा, संघ का भी अनुभव
रहा कि सुरक्षा बलों की
व्यावसायिक गतिविधियों तथा परंपरागत मर्यादाओं से अन्यतर भी राष्ट्रीय
सुरक्षा के क्षेत्र में बहुत
कुछ काम हो सकता है।
कुल मिलाकर, शनैः शनैः सेवा निवृत्ति पर सशस्त्र सेनाओं के सभी
पदों के अधिकारी और कर्मचारी
अच्छी संख्या में संघ की गतिविधिओं से जुड़ने
लगे। अनेकों ने प्रशिक्षित एवं प्रतिज्ञित
स्वयंसेवकों के नाते मुख्य
धारा तथा विभिन्न आनुसांगिक संगठनों में महत्वपूर्ण दायित्व भी संभालने आरम्भ किये। मेरा मानना
है कि इस उभरते
चित्र में संघ को एक नई
दृष्टि प्राप्त हुई
कि राष्ट्रीय सुरक्षा की रीति नीति
के सभी पहलुओं पर प्रभावी चिंतन एवं कार्य
पूर्व सैनिकों के संगठन के माध्यम
से किये जा सकते हैं ।
अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद् का गठन:- उपरोक्त विचार मंथन के
परिणाम स्वरूप एक ऐसे बहुमुखी
संगठन की अवधारणा बनी जो
सुरक्षा के परिपेक्ष में देश
हित ,समाज हित एवं सैनिक हित की दृष्टि से व्यापक
विमर्श का माध्यम बने। वैसे
भी राष्ट्र की मुख्य धारा में
पुनः सम्मिलित होने पर व्यक्तिगत रूप से
पूर्व सैनिक विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्यों में लगे
होते हैं, यदि उन की शक्ति
का सामूहिक उपयोग हो तो प्रभावी
परिणाम प्राप्त होंगे, ऐसा आंकलन रहा।आशा यह भी सटीक
थी कि ऐसे संगठन
से स्वतः ही अनेक प्रकल्पों,
कार्यक्रमों तथा उपक्रमों का सृजन होना
निश्चित होगा।
अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद् की कहानी 18 दिसम्बर, 1991
को जम्मू कश्मीर राज्य में शुरू हुई। किश्तवाड़ में लगभग 600 पूर्व सैनिक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आह्वान पर सैनिक
सम्मेलन के बैनर तले इकट्ठा
हुए। इस इकाई का
पंजीकरण 16 नवम्बर 1992 को हुआ। लगभग
उसी समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से उत्तर
प्रदेश की इकाई का
गठन और अगस्त, 1992 में दिल्ली इकाई का पंजीकरण हुआ। वर्ष
1993 में इन तीनों इकाइयों का समागम अखिल भारतीय
पूर्व सैनिक सेवा परिषदके रूप में हुआ।
इस संस्था के संविधान की रचना
प्रख्यात मनीषी तथा सांसद मा.
दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की देखरेख
में हुई। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सम्मेलन द्वारा शाहदरा (दिल्ली) की बैठक में अनुमोदन
होने के पश्चात संस्था का पंजीकरण
14 दिसम्बर 1995 को हुआ। गत 25 वर्षों में उक्त संगठन ने सशस्त्र सेनाओं एवं सुरक्षा
बलों से सेवानिवृत अधिकारियों व अन्यरेंकों
को आकर्षित किया है और उन
के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय
स्तर पर अभूतपूर्व कार्य किये हैं।
इन में वर्ष 2002 में आयोजित आजाद हिन्द फौज के गौरव सेनानियो
का अंतर्राष्ट्रीय पुनर्मिलन एवं नेताजी की इच्छा अनुसार लाल किले
में भारत सरकार द्वारा उनका नागरिक अभिनन्दन, वर्ष 2003 में कुआलालम्पुर (मलेसिया) में आयोजित स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार (जोकि वर्ष
1943 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा सिंगापुर में गठित की गई थी)
के हीरक जयंती समारोह में शिष्टमंडल के रूप में
भागीदारी उल्लेखनीय उपलब्धियाँ रहीं हैं। सुरक्षा व सुरक्षा कर्मियों एवं उन
के परिवारों से सम्बद्ध अनेक प्रभावी
न्यासों और प्रकल्पों का गठन
किया है। सुरक्षा से जुड़े वार्षिक
कार्यक्रमों में मोइरांग (मणिपुर) यात्रा, अंडमान शहीद स्मारक यात्रा, और सीमा दर्शन
यात्रा आदि कार्यक्रम उल्लेखनीय हैं।
सभी अवसरों पर सेना और
सुरक्षा कर्मियों से सम्पर्क तथा सहयोग
रहता है। राष्ट्रीय पर्वों और युद्धों की जयंतियों
के अवसर पर स्थानीय सैनिकों, नौ-सैनिकों और वायु-सैनिकों को जन-गोष्ठियों में आमंत्रित
करने की परम्परा भी रही
है। इन सब से
सेनाओं के मनोबल पर उत्तम
प्रभाव पड़ता है। कुछ लेने के लिए नहीं
अपितु कुछ देने के लिए बने
इस संगठन की छवि अनुपम
ही है“सक्रिय
सेवा से अवकाश लेने के
पश्चात भी पूर्व सेनानी बहुमूल्य मानव संसाधन
होने से अपनी युद्धीय
शक्ति तथा उच्च स्तरीय प्रशिक्षण, मनोबल, समर्पण भाव के कारण विभिन्न
रूप से तथा अनेकों
प्रोजेक्टों में देश के प्रति सेवारत रहता है।
लोग मात्र कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) को जानते हैं परन्तु
वे अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद्, जो गौरव सेनानियों
का गैरसरकारी संगठन है, की निस्स्वार्थ वालेन्ट्री सोशल रिस्पॉन्सिबिल्टी (VSR) को नहीं जानते।
सौभाग्य से, इस संगठन को प्रारंभिक
अवस्था से ही परमपूज्य
सुदर्शनजी, सर्व श्री मोरोपंत जी, शेषाद्रि जी और श्रीकांत
जोशी जी जैसे संघ
के शीर्षस्त पदाधिकारिओं का समर्थ और स्नेहमय
मार्गदर्शन प्राप्त रहा।
सुरक्षा से
जुड़े विशिष्ट
संगठनों की
रचनाः- इकीसवीं शताब्दी के आरम्भ से ही
अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद् के तत्वावधान में राष्ट्रीय सुरक्षा
से सम्बद्ध विषयों पर विशेषज्ञ- विमर्श एवं सुदृढ़
सुरक्षा के लिए भावी
रोडमैप तैयार करने हतु नए संगठन निर्माण करने का
काम शुरू हो गया था।
क्योंकि सुरक्षा एक बहु-आयामी विषय है, अतः विशेषज्ञों के एक ऐसे
समूह का गठन हुआ
जिस में सुरक्षा कर्मियों के साथ साथ
पूर्व राजदूत, अर्थ शास्त्री, वरिष्ठ पुलिस कर्मी, सूचना विशेषज्ञ, कानून के जानकार, विद्वत्तापार्षद, अकादमिक वर्ग और
प्रबुद्ध
समाज शास्त्री सम्मिलित हैं। स्तरीय रणनीति, समरनीति, सामरिक बलों के गठन, गुणवत्त सामरिक हथियारों, उपकरणों, नई प्रौद्योगिकी
के प्रवेश और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े
सभी मुद्दों पर सटीक प्रपत्र
तैयार करने के लिए एक
विशिष्ट प्रकल्प की रचना एकीकृत
राष्ट्रीय सुरक्षा मंच Forum for Integrated National Security) (FINS)
वर्ग के रूप में
की गई जो अब
संघ के एक अलग
संगठन के नाते कार्यरत
है। यहां यह कहना प्रासंगिक
होगा कि भारत सरकार
के रक्षा मंत्रालय द्वारा इस आशय से
गठित उच्च स्तरीय समिति की ‘भारतीय सेना का भावी स्वरूप
क्या होगा’
की
अध्यक्षता इसी मंच के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल डी
व बी. शेकेतकर ने की है।
इसी प्रकार सितम्बर 17, 2014 को राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच Forum
for Awareness of National Security (FANS) संगठित हुआ है ताकि सुरक्षा
विषयक सही सही
जानकारी गोष्ठियों आदि विभिन्न संपर्क विधियों से जन जन
तक पहुँच सके। साथ ही, इन
बातों को
ध्यान में रखते हुए कि भारत के
पड़ोसियों, विशेषकर चीन और पाकिस्तान की विस्तारवादी
नीतियों ने राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा
को जटिल बना दिया है और देश
की जमीनी और सागरीय सीमाओं को सुरक्षित
करने का जितना दायित्व सरकारी तंत्र का है
उतना ही प्रत्येक नागरिक का भी
है
जन जन को देश की
सीमाओं के प्रति जागरूक रखने के
लिये तथा उन को अपने
दायित्व का बोध कराने
के लिये
संघ द्वारा ‘सीमा जागरण मंच’का
गठन किया गया है।
यह मानना कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा
राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों ही पर्यायवाची अवधारणाएं हैं अतिशयोक्ति
न होगी। भारत की सर्व-आयामी सुरक्षा संघ के
चिंतन और कार्य दोनों का मूल
आधार है और जिसका
प्रेरणा स्रोत स्वयं श्रुति ही है।
इहैवैधि माप च्योष्ठाः पर्वत इवाविचाचलिः। इन्द्र
इवेह धु्रवस्तिष्ठेह राष्ट्रमु धारय ।।
(ऋग्वेद १० /१७३/२ )
हे राष्ट्रिक! पर्वत के समान अविचल
और इन्द्र की भांति दृढ़ संकल्प
रहकर राष्ट्र को धारण करो।
भ्रष्ट न होकर यहीं
अभीष्ट प्राप्त करो।
( O '
You Nationals (citizens) be firm like a mountain and unyielding like Indra to
preserve your nation- Be not thee corrupt and deviated and do fulfill your
heart's desire therein.)
पाद टिप्पणियां:-
1. माधव सदाशिवराव गोलवलकर, हो. वे. शेषाद्रि, श्री गुरूजी, सुरुचि प्रकाशन
नई दिल्लीः
पृ०- ३८-३९,
2. Kailash Chandra, Voice & Wounds of
Hindutva, Sanskritik Gaurav Sansthan New Delhi,
Selina Publishers Pvt. Ltd. Noida (UP) p-104 ( अनूदित )
3. माधव सदाशिवराव गोलवलकर, विचार नवनीत, पृ ० १६३
4. जायसवाल
बालकृष्ण, कमांडर , आजाद हिन्द फौज की शौर्य गाथा , अखिल भारतीय
पूर्वसैनिक सेवा परिषद्
समारिक-२०१५ , पृ. ६५
5.Sharma
RB, Brigadier,The Historic Legacy of the Indian National Army, ibid- pp-24,25
6.The
National Defence College of India,1966)
7. Malik
NS, Lt Gen, Army and Democracy in India, Akhil Bharatiya Poorav Sainik Sewa
Parishad, op- cit- p-21 (अनूदित
)
8.Shekatkar DB, Lt Gen, Role of Indian Armed
Forces in Nation Building and in New World Order, Akhil Bharatiya Poorav Sainik
Sewa Parishad, op. cit. p-10 (अनूदित )
(नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं)