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आजादी का अमृत महोत्सव

"स्वातंत्र्य सैनिक" श्री. वामनराव देशमुख

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स्वातंत्र्य सैनिक" श्री. वामनराव देशमुख,राजुरा(माणिकगढ) जि. चंद्रपुर, महाराष्ट्र. 

 श्री वामनराव देशमुखजीका जन्म 20 मार्च1915 (माघ कृष्ण चतुर्थी)को राजुरा मे हुआ. उनके माता-पिता श्री गोपालराव तथा श्रीमती कृष्णाबाई थी.वे उनके तृतीय पुत्र थे.

 स्वातंत्र्य के पूर्व समय राजुरा हैदराबाद के निजाम के राज्य में था। उनके पिताजी भी सरकारी नौकरी करते थे। वामनराव ने हैदराबाद की उस्मानिया विश्वविद्यालय की स्नातक की पदवी प्राप्त की थी। उस समय परिवार और समाज देशभक्ति और स्वातंत्र्य प्राप्ति के उद्दिष्ट की ओर अग्रसर था जिसका परिणाम उनके बालमन पर भी पड़ा था। महाविद्यालयीन कार्यकाल मे धनघोर विरोध होते हुये भी सार्वजनिक गणेशपूजा का आयोजन करना , देशभक्तों की टोली बनाना, हॉकी टीम बनाना ऐसी गतिविधियों मे उनका सक्रीय सहभाग रहता था।

 पदवी प्राप्त करने के बाद वे निजाम सरकार मे अबकारी (income tax) विभाग मे काम करने लगे। अगस्त1947 मे भारत स्वतंत्र हुआ, परंतु हैदराबाद का निजाम भारतीय गणराज्य मे विलय के विरुध्द था, मुस्लिम रझाकारों का आतंक हिंदुओं को परेशान कर रहा था। हैदराबाद मे एक अलग मुस्लिम सत्ता का अस्तीत्व, इसकी कल्पना भी आजके अनुभव देखते हुये भयावह प्रतीत होता है। वामनराव के देशप्रेमी कार्यकलापों की जानकारी निजाम सरकार तक पहुँच चुकी थी।  इस कारण उनकी वक्र दृष्टि उनपर थी, कार्यालय में और व्यक्तीगत जीवन मे कठिनाईयों का सामना करना पड रहा था। वामनराव जैसे एक स्वाभिमानी स्वयंसेवक के लिए यह सहना असंभव था इसीलिए नौकरी से त्यागपत्र देकर रात के अंधेरे में वर्षाकाल में भरी हुयी पैनगंगा नदी तैरकर छुपकर निजाम की सरहद को उन्होंने पार किया।  निजाम के सैनिकों की उनपर नजर थी, भगवतकृपा से सही सलामत चंद्रपूर पहुँचे। जहां उन्होनें एक शिविर में शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण लिया।

 उधर दिल्ली में सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में निजामशाही का भारतीय गणराज्य में विलीनीकरण का "हैदराबाद पुलिस एक्शन" गुप्त निर्णय हो चुका था। उसके अनुसार एक साथ चार दिशा से आक्रमण करने की रणनीती बनाई गई थी। उसमे आक्रमण का एक स्थान राजुरा के नजदिक का पैनगंगा नदी के उपर का बल्लारशा रेल्वे पुल था, जो सामरिक दृष्टी से अत्यंत महत्त्वपूर्ण था।

जिस पर सही सलामत कब्जा करना चुनौतीपूर्ण कार्य था। उस पर निजाम के सैनिकों ने सुरंग लगाकर रखी थी,परंतु पुल का सामरिक महत्व उनके लिये भी था ।

इस आक्रमण की जिम्मेदारी पंजाब रेजिमेंट के मेजर पिशोरा सिंह गहून को दी गई थी। इसी क्षेत्र के वासी होने के कारण वामनराव को आक्रमण का मार्ग निश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थीचंद्रपुर से टुकड़ी रवाना हुई,पहला काम था रेल्वे पुल पर कब्जा करना। नदी के उसपार निजाम के सैनिक थे और इसपार भारतीय सैनिक। पुल पर एक इंजन के पीछे सैनिकों की छोटी टोली छुपकर पुल पार करने के लिए भेजी गई । उसपार पहुँचने से पहले ही इंजिन चालक को, भारतीय क्षेत्र मे भागकर आने वाले लोगों के क्षतविक्षत शव पड़े हुये दिखाई दियेचालक का धैर्य टूटा और उसने इंजन तेज गती से चलायाजिसके कारण छिपे हुये कुछ भारतीय सैनिक कुचलकर शहीद हो गये।  दूसरे प्रयत्न मे पुल पर कब्जा करने में सफल हुये,और मेजर पिशोरासिंह के नेतृत्व मे टुकडी हैदराबाद की ओर बढीं, हिंदु बहुल इलाका होने के कारण रास्ते में विरोध की तीव्रता कम थी । चारो तरफ से निजामशाही पर आक्रमण हुआ, इस कारण हैदराबाद पर भारत सरकार का अधिपत्य स्थापित हुआ और वह भारतीय गणराज्य मे विलीन हुआ। सरदार पटेल की योजना सफल हुई। जो एक ऐतिहासिक कदम था, अन्यथा भारत माता के पेट मे ही एक रक्तरंजित छुरी हमेशा के लिये रह जाती। श्री वामनरावजी के इस योगदान के लिये उन्हे भारत सरकार की ओर से "स्वतंत्रता सेनानी" का प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया ।

"वंदे मातरम्" या "भारत माताकी जय"


(नोट: ये लेखिका के निजी विचार हैं)