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आजादी का अमृत महोत्सव

स्वतंत्रता संग्राम और डॉ. हेडगेवार जी

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...जो लोग ये कहते हैं कि देश को आजाद कराने में संघ का कोई योगदान नहीं रहा, वो अपनी असफलताओं को छिपाने की राजनीति करते हैं।

अगर हम आजादी के काल खण्ड में झांकते है तो हम पाते है कि खिलाफत आन्दोलन हो या फिर असहयोग और नमक सत्याग्रह, सभी में प्रथम सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी ने स्वयंसेवकों के साथ बढ़-चढ़कर भाग लिया। असहयोग आन्दोलन और नमक सत्याग्रह के दौरान डॉ. हेडगेवार जी दो बार जेल भी गए।

स्वतंत्रता आंदोलन ही नहीं बल्कि वर्ष 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ, तब पश्चिमी पाकिस्तान से हिंदुओं और सिखों को सुरक्षित बाहर निकालने में संघ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। स्वयंसेवकों ने मुहल्ले-मुहल्ले में सुरक्षा की व्यवस्था की और रिलीफ कमेटी बनाकर लोगों तक राहत पहुंचाने का काम किया था।

1921 में महात्मा गांधी की अगुवाई में चले असहयोग आंदोलन में डॉ. हेडगेवार ने अहम भूमिका निभाई थी। देश को स्वाधीन कराने के लिए अन्य क्रांतिकारियों की तरह डॉ. हेडगेवार जी जेल जाने से भी नहीं चूके। 19 अगस्त 1921 से 11 जुलाई 1922 तक हेडगेवार जी कारावास में रहे। जेल से बाहर आने के बाद 12 जुलाई को नागपुर में उनके सम्मान में आयोजित सार्वजनिक समारोह में कांग्रेस के नेता मोतीलाल नेहरू, राजगोपालाचारी जैसे अनेक नेता मौजूद थे। यह लोगों का डॉ. सहाब के प्रति सम्मान ही था।

देश की पूर्ण आजादी का सुझाव डॉ. हेडगेवार ने ही कांग्रेस को दिया था। लेकिन यह प्रस्ताव कांग्रेस ने नौ साल बाद वर्ष 1929 के लाहौर अधिवेशन में माना। पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पास किए जाने पर डॉ. हेडगेवार ने तब संघ की सभी शाखाओं में कांग्रेस का अभिनंदन करने की घोषणा की थी।

लेकिन क्या मजबूरी रही की  कांग्रेस ने इस शपथ को भुला दिया और देश की जनता के विरोध को नजरअंदाज कर विभाजन को स्वीकार कर लिया।  

अप्रैल 1930 में जब सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ तो संघ ने बिना शर्त समर्थन का निर्णय किया था। तब डॉ. हेडगेवार ने सर संघचालक का पद डॉ. परांजपे को देकर स्वयंसेवकों के साथ आंदोलन में भाग लिया था। इस सत्याग्रह में भाग लेने के कारण उन्हें नौ महीने का कारावास हुआ था। जेल से छूटने के बाद फिर संघ के सरसंघचालक का दायित्व स्वीकार कर वह संघ कार्य में जुड़ गए।

आठ अगस्त 1942 को गोवलिया टैंक मैदान, मुंबई पर कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था। महाराष्ट्र के अमरावती, वर्धा, चंद्रपुर में विशेष आंदोलन हुआ। इस आंदोलन का नेतृत्व करने में तब संघ के अधिकारी दादा नाइक, बाबूराव, अण्णाजी सिरास ने अहम भूमिका निभाई थी। गोली लगने पर संघ के स्वयंसेवक बालाजी रायपुरकर ने बलिदान दिया था।

भारत छोड़ो आंदोलन में संघ के स्वयंसेवक राजस्थान में प्रचारक जयदेव पाठक, विदर्भ में डॉ. अण्णासाहब देशपांडेय, छत्तीसगढ़ में रमाकांत केशव देशपांडेय, दिल्ली में वसंतराव ओक, पटना में कृष्ण वल्लभ प्रसाद नारायण सिंह, दिल्ली में चंद्रकांत भारद्वाज और पूर्वी उत्तर प्रदेश में माधवराव देवड़े, उज्जैन में दत्तात्रेय गंगाधर कस्तूरे ने बढ़चढ़कर भाग लिया था।