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साक्षात्कार

नानक की यात्राओं का ग्रन्थ

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30 वर्ष के नानक जी (Nanak Dev) जन-जन का मन टटोलने और हिन्दू समाज की सीधी-साधी जनता को सम्बल प्रदान करने निकले। तब उनके साथ कुछ शिष्य थे, जिनके हाथ में थी पोथी और कलम। इस अद्भुत पैदल यात्रा के समय जो भी नानक (Nanak Dev) ने बोला उसे उनके शिष्यों ने सहेज लिया। साथ ही यात्रा के समय मिले 15 सन्तों के विचारों को भी लिखा। इन्हीं सन्देशों की पोथी अब सिखों के गुरु के रूप में स्थापित है।

श्रीगुरु ग्रन्थ साहिब का प्रथम नाम

विक्रम सम्वत् 1661 में गुरु अर्जुन देव (Guru Arjun Dev) ने सर्वप्रथम जिस पुस्तक का प्रकाशन कराया था, उसका नाम “गुरु ग्रन्थ साहिब” (Guru Granth Sahib) नहीं अपितु “पोथी साहिब या आदि ग्रन्थ” था। तब इस ग्रन्थ के लिए कहा गया था- “पोथी परमेश्वर की थान।”

गुरु ग्रन्थ साहिब (Guru Granth Sahib) का संकलन नानक देव (Nanak Dev) जी की जिन 4 यात्राओं से आरम्भ हुआ था उन्हें उदासियां कहते हैं।

नानकदेव की उदासियाँ

नानकदेव की पहली उदासी

विक्रम सम्वत् 1554 को जून महीने में वे सर्वप्रथम पूर्व की ओर निकले। पहली उदासी यूपी-उत्तराखण्ड के हिन्दू धर्म स्थलों पर केन्द्रित रही। नानकदेव ने यात्रा तलवण्डी से आरम्भ की और फिर लाहौर होते हुए हरिद्वार पहुंचें। जहां कुम्भ मेले का आयोजन हो रहा था। वहां से वे गढ़वाल के रास्ते राम की नगरी अयोध्या, प्रयागराज, काशी गए। जहां उनकी भेंट सन्त कबीर और रविदास से हुई। वहां से बिहार में पटना, गया जी पहुंचे। जगन्नाथ पुरी होते हुए कोलकाता गए। वहां से ढाका, नागालैण्ड होते हुए असम की ओर चल पड़े। नानकदेव अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, तिब्बत, भूटान, चीन और नेपाल भी गए। लौटते समय गोरखमठ और फिर रुहेलखण्ड में कानपुर, आगरा के रास्ते दिल्ली-हरियाणा होते हुए पंजाब लौटे।
प्रथम उदासी में नानक देव ने भूले-भटके मानवों को धर्म का सही मार्ग दिखाकर उनको सम्बल प्रदान किया।

नानकदेव की दूसरी उदासी

गुरु नानक ने दूसरी यात्रा विक्रम सम्वत् 1567 में आरम्भ की। इस यात्रा के समय उन्होंने कई नदियों को पारकर सन्तों और महापुरुषों से भेंट की। पक्खो के रंधावा गांव (पंजाब) से यात्रा आरम्भ की और राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में सन्त मीराबाई से भेंट के बाद उदयपुर, आबू पर्वत होते हुए गुजरात पहुंचे। श्रीकृष्ण नगरी द्वारका होते हुए सोमनाथ मन्दिर पहुंचे। फिर नासिक से कर्नाटक के रास्ते गोवा पहुंचे। वहां से त्रिवेन्द्रम, कन्याकुमारी के रास्ते श्रीलंका पहुंचे। नानकदेव लगभग 14 महीने श्रीलंका में रुके। रामेश्वरम होते हुए इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के रास्ते राजस्थान, हरियाणा होते हुए पंजाब लौटे।

नानकदेव की तीसरी उदासी

कुछ महीने बाद नानकदेव तीसरी यात्रा पर निकल पड़े। जो विक्रम सम्वत 1573 से 1575 तक चली। पंजाब से हिमाचल के कुल्लू, मनीकरण होते हुए कीरतपुर (पंजाब) पहुंचे। वहां से फिर नालागढ़ (हिमाचल), माहीसर होते हुए तिब्बत पहुंचे। जहां से वे कश्मीर के लेह-लद्दाख, अमरनाथ हुए पंजाब के पंजासाहिब, रावलपिण्डी पहुंचे। नानक जम्मू में कटरा होते हुए पंजाब लौट आए। यह यात्रा नानक को बहन नानकी के देहान्त के चलते जल्द समाप्त करनी पड़ी।

नानकदेव की चौथी उदासी

बहन नानकी को अन्तिम विदाई देने के कुछ दिन बाद नानक देव फिर यात्रा पर निकले। सामाजिक सौहार्द के उद्देश्य से आरम्भ की गई चौथी उदासी विक्रम सम्वत् 1575 से 1579 तक चली। पंजाब के तुलम्बा, मुल्ताननगर होते हुए सिन्ध, अरब देश के मक्का और मदीना पहुंचे। वहां से मिश्र गए। फिर इजरायल, तुर्की, ईरान, तुर्कमानिस्तान, उज्बेकिस्तान, अफगानिस्तान होते हुए पेशावर पहुंचे। जहां से पंजाब के एमनाबाद, तलवण्डी होते हुए पक्खो के रन्धावा गांव लौट आए।

मानवता का ग्रन्थ श्रीगुरु ग्रन्थ साहिब

विश्व भ्रमण के समय गुरु नानक ने ऋषि-मुनियों और सन्तों से मिलकर सनातन परम्परा (Sanatan Culture) के मूल को समझा और संकलित किया। यह अनुपम संकलन गुरु-शिष्य परम्परा का अनुपम उदाहरण है। जिस प्रकार सनातन परम्परा व्यक्ति प्रधान नहीं तत्व प्रधान है। उसी सनातन परम्परा का निर्वाहन करते हुए सिख के दशम गुरु गोबिंद सिंह श्री गुरु ग्रन्थ साहिब (Guru Granth Sahib) को प्रकाश लाए, जो आज सिख गुरु रूप में पूजनीय है।