RSS
के विचार बीज
आखिर कहाँ से उपजते हैं संघ (SANGH) के विचार बीज?
किस लक्ष्य
पर टिका है इसका अस्तित्व ?
कौन सी
अदृश्य डोर में गुँथे हैं संघ (SANGH) के स्वयंसेवक (SWAYAMSEWAK)?
कौन सी
शिक्षा मिलती है सुबह-शाम चलने वाली संघ (RSS) की शाखाओं में?
किस विचार
पर काम करते हैं ये लोग ?
प्रत्येक
प्रश्न का उत्तर RSS
के वरिष्ठ
प्रचारक दत्तोपन्त ठेंगड़ी (DATTOPANT THENGADI) की जीवनशैली और विचारों में देखने को मिलता
है। दत्तोपन्त जी अत्यन्त सरल, सहज स्वभाव
वाले व्यक्ति रहे हैं।
दत्तोपन्त
ठेंगड़ी जी का परिचय
दत्तोपन्त ठेंगड़ी (DATTOPANT
THENGADI) का जन्म 10 नवम्बर 1920 में महाराष्ट्र (MAHARASHTRA)
के वर्धा
जनपद में हुआ था। वे जब RSS
के सम्पर्क
में आए तो समाज के क्रान्तिदूत बन गए। उन्होंने प्रचारक होने के नाते विभिन्न
क्षेत्रों की समस्याएं समझीं और उसमें सुधार लाने के लिए तीन संगठनों की नींव रखी।
सर्वप्रथम
वर्ष 1955
में भारतीय
मजदूर संघ (BHARTIYA
MAJDOOR SANGH) की स्थापना
की। हमारी संस्कृति के अनुरूप खेती और किसान को मजबूत करने के लिए वर्ष 1979 में भारतीय किसान संघ (BHARTIYA KISAN SANGH) को खड़ा किया। वर्ष 1991 में उन्होंने भारतीय विकास के लिए
स्वदेशी जागरण मंच (SWADESHI
JAGRAN MANCH) की नींव
रखी।
वर्तमान
में तीनों ही मंच अपने-अपने माध्यम से भारत (INDIA) के सर्वांगीण विकास में अपना महत्वपूर्ण
योगदान दे रहे हैं।
भारत के विकास
की सबसे बड़ी बाधा
दत्तोपन्त ठेंगड़ी जी (DATTOPANT
THENGADI) भारत के
विकास में पश्चिम की संस्कृति (WESTERN CULTURE) को सबसे बड़ी बाधा मानते थे। वे कहते भौतिकवादी सोच आत्मिक विचारधारा को
समाप्त करने पर तुली है,
जो मनुष्य
को अन्दर से खोखला कर रही है। जब तक समाज आत्मिक रूप से मजबूत नहीं होगा, राष्ट्र को सबल कैसे बना सकेगा?
कम्युनिस्ट
कार्लमार्क्स की भौतिकतावादी विचारधारा के पक्ष में खड़े दिखाई पड़ते हैं और
आत्मिक विचारधारा को पिछड़ी सोच बताकर किनारा कर लेते हैं। जबकि आत्मिकता का भाव
ही भारतीय संस्कृति की आत्मा है।
सच तो यह
है भौतिकता बाह्रय आवरण भर है, जबकि
आत्मिकता ही असल भाव है। जिस पर विश्व टिका है। भौतिकतावादी विचारधारा के अनुसार
बाहरी वातावरण से प्रभावित होकर मनुष्य के अन्दर भाव बनते हैं। जबकि आत्मिक
विचारधारा से तात्पर्य व्यक्ति के अन्दर के भाव बाह्य वातावरण बनाते हैं। जैसी
हमारी सोच होगी हम वैसा ही आचरण करेंगे। यही सीख सुबह-शाम लगने वाली संघ की शाखाओं
(SAKHA)
में दी
जाती है।
भारतीय विकास का
तीसरा रास्ता
उन्होंने सनातन धर्म (SANATAN)
की
विचारधारा को आधार बनाकर सामाजिक-आर्थिक विकास के तीसरे रास्ते का प्रस्ताव रखा।
कम्युनिस्ट और प्रोग्रेसिव आइडिया से हटकर उन्होंने भारतीय संस्कृति की सनातन
परम्परा को महत्व दिया। क्योंकि सनातन (SANATAN) विचारधारा ही है जहां भौतिकता और
आध्यात्मिकता दोनों की बात होती है। यहां गणपति को सबसे पहले पूजने की परम्परा है, मान्यता है कि गणेश पूजन से ऋद्धि-सिद्धि की
प्राप्ति होती है। ऋद्धि भौतिक समृद्धि जबकि सिद्धि आध्यात्मिक समृद्धि है।
ऐसे अद्भुत
विचारों वाले दत्तोपन्त ठेंगड़ी जी (DATTOPANT THENGADI) प्रशिक्षित वकील भी थे। निधन तक वे RSS के प्रचारक रहे, साथ ही 12 वर्ष तक उन्होंनेराज्यसभा सदस्य का कार्य भी सम्भाला। ऐसे दिव्य पुरुष की
जयन्ती पर शत्-शत् नमन।