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साक्षात्कार

109 घंटे की सर्जरी और हैदराबाद मुक्त

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हैदराबाद मुक्ति संग्राम

सूचना प्रोद्योगिकी का केन्द्र हैदराबाद (Hyderabad) भारत का ह्रदय है.. परन्तु क्या आपको पता है कि 75 वर्ष पूर्व यदि सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Patel) ने जवाहर लाल नेहरू (Nehru) की एक बात मान ली होती तो आज यही क्षेत्र भारत (India) के पेट में कैंसर की भांति होता। आइए जानते हैं हैदराबाद रियासत को लेकर नेहरू (Nehru) की मंशा क्या थी? हैदराबाद (Hyderabad) 13 महीने बाद क्यों स्वतन्त्र हुआ?

1948 से पूर्व तेलंगाना, आन्ध्रप्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्र को मिलाकर हैदराबाद (Hyderabad) एक बहुत बड़ी रियासत थी। जहां निजाम (Nizam) का शासन चलता था। जिसकी गिनती विश्व के सबसे अमीर व्यक्तियों में की जाती थी। परन्तु यहां के निवासी उपेक्षित जीवन जीने को विवश थे।



हैदराबाद में क्यों भड़के दंगे?

3 जून 1947 को जब भारत-पाक विभाजन (Indo-Pak partition) हुआ तो 500 से अधिक रियासतों ने भारत में शामिल होने की इच्छा प्रकट की। जबकि हैदराबाद (Hyderabad) के निजाम ने अपनी रियासत को स्वतन्त्र देश घोषित कर दिया। परन्तु वहां की जनता भारत में शामिल होना चाहती थी। जिसके कारण हैदराबाद (Hyderabad) में दंगे भड़क गए। जिन्होंने आवाज उठाई, उन्हें कुचला जाने लगा। निजाम के इशारे पर रजाकर और पुलिस जनता को डराने-धमकाने लगी। इसका बहुत बड़ा कारण था कि वहां की 85 प्रतिशत हिन्दू जनता पर मुट्ठी भर मुस्लिम शासन कर रहे थे।


नेहरू का क्यों था लचीला व्यवहार?

प्रधानमन्त्री नेहरू (Nehru) माउण्टबेटन (Mountbatten) के परामर्श पर निजाम (Nizam) के साथ लचीला व्यवहार अपना रहे थे। जबकि पटेल (Patel) इससे सहमत नहीं थे। निजाम (Nizam) ने भारतीय करेंसी को बैन कर दिया और पाकिस्तान को लोन देकर अपने पक्ष में खड़ा करने का प्रयास किया। पाकिस्तान गुपचुप तरह से निजाम को हथियार भेजने लगा। सरदार पटेल को जैसे ही इसकी भनक लगी तो उन्होंने कहा कि ''हैदराबाद भारत के पेट में कैंसर के समान है और इसका समाधान सर्जरी से ही होगा।''



22 मई 1948 में जब रजाकारों ने गंगापुर स्टेशन पर ट्रेन में सवार हिन्दुओं पर हमला बोला। तो गृहमन्त्री पटेल से न रहा गया और उन्होंने जनरल करिय्पा को बुलाकर पूछा- यदि हैदराबाद के मामले पर पाकिस्तान की ओर से कोई सैनिक प्रतिक्रिया आती है तो क्या वे बिना अतिरिक्त मदद के निपट पाएंगे? जनरल करियप्पा ने एक शब्द में उत्तर दिया- हां।


हैदराबाद के ऑपरेशन की तैयारी

13 सितम्बर 1948 को भारतीय सेना ने हैदराबाद (Hyderabad) पर हमला कर दिया। भारतीय सेना की इस कार्रवाई को नाम मिला- ऑपरेशन पोलो (Operation Polo)। हैदराबाद (Hyderabad) को मुक्ति दिलाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने भी सेना का मजबूती से साथ दिया। जब सेना हैदराबाद (Hyderabad) में प्रवेश कर गई, तब इसकी जानकारी प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू (Nehru) को दी गई। क्योंकि पटेल को अनुमान था कि यदि नेहरू को सैन्य कार्रवाई के बारे में पहले से बताया गया तो वे इसे रोकने का पूरा प्रयास करेंगे। साढ़े 4 दिन में ही हैदराबाद (Hyderabad) की सेना ने हथियार डाल दिए। सरदार पटेल के अदम्य साहस के आगे निजाम को झुकना पड़ा। लौह पुरुष सरदार पटेल के दृढ़ संकल्प के कारण ही हैदराबाद (Hyderabad) से साढ़े 6 सौ वर्ष पुराना निरंकुश शासन समाप्त हुआ। यहां के निवासी अत्याचारी शासक से मुक्त हो गए और हैदराबाद (Hyderabad)  में भी तिरंगा लहराने लगा।

कल्पना कीजिए यदि नेहरू की बात सरदार पटेल (Patel) ने मान ली होती तो आज भारत का नक्शा (Map of India) कैसा होता। सरदार पटेल की भांति कड़े निर्णय वर्तमान सरकार भी ले रही है। जिसका परिणाम है जम्मू कश्मीर। जहां आज शान से तिरंगा लहरा रहा है। एक भारत, श्रेष्ठ भारत के सरदार पटेल के सपने को साकार होते पूरा देश देख रहा है।