देहरादून, उत्तराखण्ड
अब बच्चे और युवा सिर्फ हिंदी या अंग्रेजी ही नहीं अपितु गढ़वाली, कुमाऊँनी और जौनसारी में भी एआई टूल्स जैसे चैटजीपीटी, ग्रोक और जेमिनी पर बात कर सकेंगे। मातृभाषाएँ सिर्फ घर-गांव तक सीमित नहीं रहेंगी अपितु डिजिटल युग में जीवंत होकर दुनिया तक पहुँचेंगी। यह काम लोक संस्कृति और परंपराओं को नई पीढ़ी से जोड़ने में मील का पत्थर साबित होगा। इस सपने को साकार करने में जुटे हैं पद्मश्री प्रीतम भरतवाण और अमेरिका के वाशिंगटन में रहने वाले एआई आर्किटेक्ट सच्चिदानंद सेमवाल। सच्चिदानंद सेमवाल अपने 23 वर्षों के सॉफ्टवेयर और 4 साल के AI अनुभव के आधार पर इस पूरे डेटा सेट और एआई मॉडल ट्रेनिंग का नेतृत्व करेंगे। दूसरी ओर, प्रीतम भरतवाण भाषा की प्रामाणिकता और सांस्कृतिक पहलुओं को सुनिश्चित करेंगे। सरकार की ओर से भी इस पहल को पूरा सहयोग मिला है। मुख्यमंत्री, भाषा मंत्री सुबोध उनियाल और भाषा सचिव ने इसे उत्तराखंड की पहचान से जुड़ा सकारात्मक और ऐहासिक कदम माना है।'लोक भाषाओं पर पहले भी काम हुआ है और उसका असर दिख रहा है। लेकिन अब एआई के माध्यम से हमारी बोली भाषाएँ सिर्फ जिंदा ही नहीं रहेंगी अपितु आने वाली पीढ़ियों की जुबान और सोच का हिस्सा बनेंगी। यह वास्तव में ऐतिहासिक कदम है।' कुल मिलाकर, यह पहल केवल भाषाओं को संरक्षित करने की नहीं है अपितु उत्तराखंड की आत्मा, लोक संस्कृति और पहचान को डिजिटल भविष्य में अमर बनाने का अभियान है।