26 जुलाई 1976
देश में आपातकाल थोपा जा चुका था, विपक्षी नेता जेल में डाल दिए गए थे, पत्रकारों पर प्रतिबंध लगा था, लोग घरों में कैद थे। ऐसी तानाशाही के विरुद्ध लोक संघर्ष समिति का गठन हुआ। मजदूर संघ, सीटू, एचएमएस और एचएमकेपी जैसे श्रमिक संगठनों ने संयुक्त रूप से बिगुल फूंक दिया। परन्तु धीरे-धीरे दूसरे केंद्रीय श्रमिक संगठनों के नेता संघर्ष से पीछे हटने लगे, तब एकमात्र भारतीय मजदूर संघ ही था, जिसने साहस जुटाए रखा, सड़कों पर उतरकर पूरी तरह कमान संभाली और विरोध जारी रखा। जिसका परिणाम ये हुआ कि संघ के 5,000 से अधिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया गया। यातनाएं दी गईं। जिनमें लगभग 111 पर कुख्यात मीसा (MISA) तक लगा दिया गया। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से निकले मजदूर संघ कार्यकर्ताओं ने हार नहीं मानी, उनके साहसिक प्रतिरोध और बलिदान ने देशभर के श्रमिकों का विश्वास मजदूर संघ में और प्रगाढ़ किया और आपातकाल के बाद संगठन का तेजी से विस्तार हुआ।
1977 में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के रूप में श्रद्धैय श्री दत्तोपंत जी ठेंगड़ी ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन यानि ILO के जिनेवा सम्मेलन में भाग लिया। 1980 तक कांग्रेस सरकार ने मजदूर संघ को देश का दूसरा सबसे बड़ा केंद्रीय श्रमिक संगठन घोषित कर दिया। इसके बाद मजदूर संघ को ILO सहित अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारतीय श्रमिक प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया। 1989 में कांग्रेस सरकार ने पुनः सत्यापन कराया, जिसके बाद मजदूर संघ को देश का सबसे बड़ा केंद्रीय श्रमिक संगठन घोषित किया गया। इसके फलस्वरूप 1990 के दशक से मजदूर संघ को भारतीय प्रतिनिधि मंडलों का नेतृत्व सौंपा जाने लगा।
1955 में भोपाल की एक छोटी सी धर्मशाला से शुरू हुआ भारतीय मजदूर संघ आज सबसे बड़ा मजदूर संघ बन चुका है। जो न केवल राष्ट्र हित अपितु वैश्विक स्तर पर मजदूरों के हितों की बात रखता है। BMC ने भारत में आयोजित G-20 के समय लेबर-20 की अध्यक्षता की थी, जिसमें विश्व के बड़े श्रमिक संगठन व सभी देशों के श्रम मंत्री शामिल हुए थे, जो वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को साकार करता है। वर्तमान में BMC के साथ 6300 से ज्यादा ट्रेड यूनियन संलग्न हैं, जबकि 44 अखिल भारतीय औद्योगिक महासंघ कार्यरत हैं। BMC की पहुंच जिला स्तर से लेकर ग्राम स्तर तक पहुंच चुकी है। आज जब इसकी स्थापना के 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं, मजदूरों को राष्ट्रहित के चिंतन से जोड़ने के प्रयास तेज हो गए हैं, क्योंकि विकसित राष्ट्र के लिए हर वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण है।