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इतिहास

अनिवार्य है जगन्माता के त्रिविध रूप की भक्ति – श्री गुरुजी

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अनिवार्य है जगन्माता के त्रिविध रूप की भक्ति – श्री गुरुजी

“जगन्माता का यह स्वरूप अन्य लोगों के ध्यान में नहीं आया। हमारे यहां माता, मातृभूमि और जगन्माता, मातृत्व के ये त्रिविध रूप बताए गए हैं। “सर्वज्ञान-प्रदायिनी शक्तिदात्री जगन्माता की वास्तविक भावना के अभाव और केवल स्वार्थ-सीमित दृष्टि से ही उसकी ओर देखने के कारण जीवन पशुतुल्य बनता जा रहा है। कामप्रधान जीवन सुसंस्कृत मनुष्य के जीवन का लक्षण नहीं है। अन्तःकरण में यदि कृतज्ञता का भाव नहीं रहा, तो जीवन जंगली हो जाता है। इसलिए सुसंस्कृत होकर माता के प्रति अपनी भक्ति इन त्रिविध स्वरूपों में नित्य करना अत्यावश्यक है। "

।। श्री गुरुजी समग्र दर्शन, खण्ड - 05, पृष्ठ – 106-07 ।।