शिमला
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अभ्युदय अध्ययन मंडल द्वारा “भारत की भारतीय अवधारणा” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य डॉ. मनमोहन वैद्य मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। संगोष्ठी में प्रांत संघचालक प्रोफेसर वीर सिंह रांगड़ा भी उपस्थित रहे। मुख्य वक्ता डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि अंग्रेजों ने भाषा और मौलिकता के आधार पर भारत के अनेक भागों को विभाजित किया और इसी कारण “इंडिया” तथा “भारत” जैसे दो नाम प्रचलित हुए। स्वतंत्रता प्राप्ति के दशकों बाद भी यह प्रश्न खड़ा है कि राष्ट्र की उन्नति हेतु हमें किस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
उन्होंने एक यूरोपीय लेखक की पुस्तक “Who are We” का उल्लेख करते हुए कहा कि उसमें यह प्रश्न उठाया गया है कि “हम कौन हैं, हमारी जड़ें कहाँ हैं और हमारे पूर्वज कौन हैं।” उन्होंने पी. मुन्शी जी द्वारा लिखित Pilgrimage to Freedom का भी उल्लेख किया, जिसमें प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था और उद्योगों पर प्रकाश डाला गया है। भारतीय संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन करते हुए मनमोहन जी ने कहा कि एकम् सत् विप्राः बहुधा वदन्ति” अर्थात् सत्य एक है, परंतु ज्ञानीजन उसे अनेक रूपों में बताते हैं। भारत की आत्मा ही उसकी “विविधता में एकता” है, प्रत्येक व्यक्ति के भीतर ईश्वर (आत्मा) का निवास है। उन्होंने कहा कि अपने अंदर के देवत्व को जागृत करने के लिए चार योग मार्ग बताए गए हैं – कर्मयोग, भक्तियोग, राजयोग और ज्ञानयोग। धर्म का अर्थ Religion नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक व्यापक पद्धति है। इस संदर्भ में उन्होंने डॉ. राधाकृष्णन की पुस्तक “Hindu Way of Life” का भी उल्लेख किया। डॉ. वैद्य ने स्पष्ट किया कि हिन्दू कोई संकीर्ण धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक मार्ग अर्थात् “Way of Life” है। उन्होंने 2014 में Sunday Guardian में प्रकाशित लेख का उल्लेख करते हुए कहा कि नई सरकार के आगमन के साथ भारतीय संस्कृति के अनुरूप शासन-प्रणाली का आरंभ हुआ, जो लंबे समय से समाज में चल रहे कार्यों का परिणाम है। अंग्रेजों ने यहाँ शासन के लिए Indian Penal Code (IPC) बनाया था, जिसका उद्देश्य भारतीयों को दंडित करना था। किंतु अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) लागू की गई है, जिसका उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को न्याय दिलाना है। मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि हमारे बोलचाल में प्रयुक्त Hinduism, Sikhism” जैसे इज्म शब्द पश्चिमी अवधारणा के परिणाम हैं, जिन्हें षड्यंत्रपूर्वक वामपंथी एवं संस्कृति-विरोधी शक्तियों ने बढ़ावा दिया। शब्दों का चयन भी अत्यंत सावधानी से होना चाहिए क्योंकि भाषा समाज की दिशा तय करती है।
संगोष्ठी में शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने सक्रिय रूप से प्रश्न पूछे और विचार साझा किए।