प्रयागराज, 05 जनवरी 2025.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने आह्वान किया कि सभी देशवासी कॉर्निया दान का संकल्प लें तथा देश में कॉर्निया के कारण दृष्टि बाधितों की समस्या दूर करने में अपना योगदान दें. भारत से कई गुना छोटे देश श्रीलंका में कॉर्निया दान का प्रतिशत बहुत अधिक है, जबकि भारत में इसका अनुपात अत्यंत कम है. इसे बढ़ाने की आवश्यकता है. नेत्र कुम्भ के माध्यम से हम यह संदेश देना चाहते हैं कि 15 से 20 वर्षों के भीतर पूरे देश से हम दृष्टि बाधा की समस्या का उन्मूलन कर लेंगे.
सह सरकार्यवाह रविवार को तीर्थराज प्रयाग में गंगा के पवित्र तट पर आयोजित विशाल नेत्र कुम्भ के उद्घाटन समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे. वैदिक विद्वानों द्वारा स्वस्तिवाचन तथा भक्त कवि सूरदास एवं भारत माता के चित्र पर माल्यार्पण के साथ शुभारंभ हुआ. उन्होंने स्मरण करवाया कि प्रयाग की यह वही पावन धरती है, जहां महाराज हर्ष अपने राज्य के संपूर्ण कोष का दान देकर चले गए थे. महाराज हर्ष के राज्य की सीमा असम से लेकर के सिंध तक फैली हुई थी. उन्होंने अपने वस्त्र तक दान दे दिये थे.
हिन्दू समाज में दान देने की प्रवृत्ति कम नहीं है..अयोध्या में रामलला के मंदिर के निर्माण में हिन्दू समाज ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और तीन हजार आठ सौ करोड़ का दान मंदिर के लिए दिया. लोगों को मना करना पड़ा, तब दान का सिलसिला रुका. सह सरकार्यवाह ने कहा कि पिछली बार 156000 लोगों को चश्मा दिया गया था. विश्व कीर्तिमान का प्रमाण पत्र हमें मिल चुका है. हरिद्वार के कुम्भ में भी 12 स्थानों पर नेत्र कुम्भ लगाया गया था. 400 नेत्र चिकित्सकों ने हरिद्वार में अपना योगदान दिया था. इस बार प्रयागराज में एक नया कीर्तिमान बनाया जाएगा. यहां इस बार ढाई सौ संस्थाएं एक साथ नेत्रदान तथा ऑपरेशन में सहयोग प्रदान करेंगी. केरल से कश्मीर तक सभी लोग मिलकर काम कर दुनिया के सामने एक नया आदर्श प्रस्तुत करेंगे.
‘जीते जीते रक्तदान, जाते-जाते नेत्रदान’ के नारों के बीच उन्होंने कहा कि देश में नेत्रदान के प्रति जागरूकता बहुत आवश्यकता है. यह नेत्रकुम्भ इस कमी को पूरा करेगा. नेत्र कुम्भ के माध्यम से 60,000 लोगों के ऑपरेशन का लक्ष्य है. जो जिस नगर का रहने वाला है, उसका ऑपरेशन वहीं पर होगा. उसे केवल सूचना देने की आवश्यकता होगी.
डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि आध्यात्मिकता भारत की विशेषता है. विश्व के पास भौतिक संसाधन हो सकते हैं, लेकिन आध्यात्मिक ज्ञान का अभाव है. शांति का मार्ग भारत के पास ही है, जिसकी आवश्यकता आज पूरी दुनिया को है. अन्य पंथों के लोग अपने अनुयायियों के सुखी होने की कामना करते हैं, जबकि भारत में हर पंथ का व्यक्ति सबके सुखी होने की कामना करता है. संपूर्ण विश्व में शांति स्थापित करना भारत का उद्देश्य है. यह ईश्वरीय कार्य है.
जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि जी ने कहा कि नेत्र के बिना प्रकृति तथा परमेश्वर दोनों को ही नहीं देखा जा सकता. इसलिए नेत्रदान सबसे बड़ा दान माना गया है. अर्पण, तर्पण तथा समर्पण ही सनातन संस्कृति का संदेश है. इस्कॉन के अंतरराष्ट्रीय ट्रस्टी तथा गोवर्धन इको विलेज के निदेशक गौरांग महाप्रभु ने कहा कि नेत्र कुम्भ सेवा भाव का प्रतीक है. पूजनीय वह है जो परोपकार में रत है. नेत्र कुम्भ में भोजन प्रसाद वितरण की सेवा इस्कॉन ने संभाल रखी है. उन्होंने घोषणा की कि 120 देशों में कार्यरत इस्कॉन नेत्र कुम्भ में अपना पूरा सहयोग देगा. उद्घाटन सत्र में नवल जी द्वारा लिखित नेत्र कुम्भ एवं नेत्रदान शतक पुस्तिका का विमोचन किया गया.
नेत्र कुम्भ (महाकुम्भ 2025) में 500 नेत्र विशेषज्ञों द्वारा 5 लाख लोगों के नेत्र की जांच, 3 लाख निःशुल्क चश्मा वितरण तथा विभिन्न नेत्र चिकित्सालयों में 60000 लोगों के ऑपरेशन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. यह कार्य 50 दिनों की समय अवधि के भीतर संपन्न होगा. 2019 में प्रयागराज में संपन्न हुए नेत्र कुम्भ में 155210 चश्मों का वितरण किया गया था तथा 2 लाख 2020 लोगों का नेत्र परीक्षण हुआ था.
सक्षम के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोविंद राज ने अतिथियों का स्वागत तथा आयोजन समिति के अध्यक्ष कवींद्र प्रताप सिंह ने आभार प्रदर्शन किया. सक्षम के संगठन मंत्री चंद्रशेखर ने नेत्र कुम्भ आयोजन के उद्देश्य पर विस्तार से प्रकाश डाला. कार्यक्रम में मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य डॉ. वत्सला मिश्रा, पूर्व प्राचार्य डॉ. एसपी सिंह सहित 200 से अधिक चिकित्सक, व बड़ी संख्या में शिक्षक तथा श्रद्धालु जन उपस्थित थे.