कावड़ यात्रा से समाज को दिया संदेश
सावन के महीने में होने वाली कांवड़ यात्रा ना केवल श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि आज यह सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों को जागरूक करने का माध्यम भी बन रही है। जी हां इस वर्ष की कांवड़ यात्रा में कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां भक्तों ने अपनी आस्था के साथ-साथ समाज को एक दृढ़ संदेश देने का काम किया। किसी ने अपने माता-पिता की सेवा को प्राथमिकता दी, तो किसी ने गौ माता को ‘राष्ट्रीय माता’ का दर्जा दिलाने की मांग करते हुए यात्रा की
श्रवण कुमार बने बेटे
उत्तर प्रदेश के आगरा के पास एत्मादपुर कस्बे से दो बेटे अपने वृद्ध माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर 100 किलोमीटर की पदयात्रा कर लहरा घाट पहुंचे। पालकी में उनके माता-पिता बैठे थे। दोनों बेटों ने बिना थकान के यह यात्रा पूरी की और गंगा स्नान कराकर माता-पिता की इच्छा पूरी की। इस दृश्य ने लोगों को कलियुग में श्रवण कुमार की याद दिला दी। लोग इस परिवार से बेहद प्रभावित हुए
गौ माता को ‘राष्ट्रीय माता’ बनाने की मांग
दिल्ली के नरेला निवासी राहुल कुमार और मेरठ के छत्रीगढ़ गढ़ी गांव के रुतबा गुर्जर — दोनों ही शिवभक्तों ने इस बार कांवड़ यात्रा को केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि गौ माता को ‘राष्ट्रीय माता’ का दर्जा दिलाने के अभियान में बदल दिया। दोनों की यात्रा का उद्देश्य एक ही था — गौ माता के सम्मान और संवैधानिक मान्यता के लिए समाज को जागरूक करना। राहुल कुमार ने हरिद्वार से 121 लीटर गंगाजल लेकर 35 दिन तक पैदल चलकर एक लंबी पदयात्रा पूरी की। दूसरी ओर, रुतबा गुर्जर ने अपनी भक्ति को शारीरिक तपस्या का रूप दे दिया। उन्होंने अपने दांतों से एक बग्गी खींचकर 101 लीटर गंगाजल ले जाने का प्रण लिया और रोजाना 10 किलोमीटर की कठिन यात्रा कर रहे हैं। उनकी इस कठिन यात्रा में हरियाणा से आई बजरंग दल की एक 8 सदस्यीय टीम भी साथ चल रही है।
इन दोनों ही भक्तों की कांवड़ यात्रा भले ही अलग-अलग तरीकों से हुई हो, लेकिन उद्देश्य एक ही रहा — गौ माता को देश की ‘राष्ट्रीय माता’ के रूप में मान्यता दिलाना और पूरे समाज को जागरूक करना। बता दें कांवड़ यात्रा एक धार्मिक परंपरा के साथ साथ, सेवा, संस्कृति और समाज के प्रति जागरूकता का प्रतीक बन चुका है। आगरा के पुत्रों ने यह दिखा दिया कि माता-पिता की सेवा ही धर्म है। दिल्ली के राहुल कुमार और मेरठ के रुतबा गुर्जर ने यह सिद्ध किया कि आस्था के साथ अगर संकल्प जुड़ जाए, तो समाज में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। कांवड़ यात्रा केवल गंगाजल चढ़ाने की नहीं, बल्कि एक नई पीढ़ी को जागरूक करने की यात्रा भी है।